06 सितंबर, 2015

फ़िल्मकार हयाअो मियाज़ाकी: जापान-भारत के सांस्कृतिक सेतु

 राम प्रकाश द्विवेदी



भारत अौर जापान के सांस्कृतिक संबंधों में एक अन्तर्वर्ती धारा का प्रवाह दिखाई देता है। जो बहुधा बाह्य, स्थूल अौर सतह पर परिलक्षित नहीं होता। इस सांस्कृतिक संबंध को पहचानने का सूत्र, यदि केवल एक पद में कहा जाय, है प्राच्य भावबोध। प्राच्य भावबोध को अनेक विद्वानों मनीषियों ने पश्चिमी भावबोध से अलग किया है जो कि अब साफ तौर पर पहचाना जा सकता है। भारत-जापान के सांस्कृतिक संबंधों को जानने-समझने के लिए इस पत्र में मैंने प्राच्य भावबोध को एक केन्द्रीभूत तत्व के रूप में ग्रहण किया है जिसे जापान के विश्व प्रसिद्ध फ़िल्मकार हयाअो मियाज़ाकी की फ़िल्मों के जरिए परिभाषित करने का भी प्रयत्न  
किया गया है। 
हयाअो मियाज़ाकी की ख्याति का आधार उनकी एनीमेशन फ़िल्में हैं। वैसे वे एक सफल मांगा लेखक अौर बहुआयामी ग्राफिक डिज़ाइनर भी हैं। भारत में रहते हुए मेरा यह सामान्य अनुभव था कि एनिमेशन फ़िल्मों को बच्चों के खाते में डाल दिया जाता है अौर सांस्कृतिक विमर्श जैसी गंभीरता को पहचानने का उद्यम इनमें न के बराबर हुआ है। अपनी इसी पृष्ठभूमि के चलते शुरू में मियाज़ाकी की फ़िल्मों से मेरा तादाम्य या कहें कि साधारणीकरण संभव नहीं हो पाया। बाद में अपने विश्विद्यालय की डिजीटल लायब्रेरी का उपयोग कर मैंने उनकी लगभग सभी महत्वपूर्ण फ़िल्में देखी अौर पाया कि वे कैसे बुद्ध अौर गाँधी के करीब खड़े हैं। उनकी फ़िल्मों में भारतीय मनीषा का चिंतन बोलता है। भारतीय संस्कृति के चेहरे को पहचानने के लिए बुद्ध, गाँधी अौर अंबेडकर मुझे एक समग्र विज़न देते हैं। हयाअो मियाज़ाकी की फ़िल्मों में इन विचारकों की अनुगूँज बहुत स्पष्ट है। बुद्ध की शांति अौर अहिंसा, गाँधी का प्रकृति अौर पर्यावरण प्रेम एवं अंबेडकर का शोषितों का सशक्तिकरण मियाज़ाकी की फ़िल्मों के केन्द्रीय स्वर हैं। यह आश्चर्य में डालने वाली समानता क्योंकर है, यह एक स्वतंत्र अध्ययन का विषय है।

 मियाज़ाकी की फ़िल्मों की सूची बहुत लंबी है। तीस से भी अधिक महत्वपूर्ण फिल्में बनाकर उन्होंने जापान समेत पूरी दुनिया जो यश प्राप्ति की वह साधारणत: दुर्लभ है। यहाँ मैं उनकी कुछेक फ़िल्मों का ही उल्लेख करूँगा। ये हैं-

-तूफान-घाटी की राजकुमारी:नाऊसिका(Nausicaa of The Valley of the Wind-1984)
-किकी की डाक सेवा (Kiki’s Delivery Service-1989)
-राजकुमारी मोनोनोके (Princes Mononoke-1992) 
-चिहिरो की कहानी (Spirited Away-2001)
-मेरा पड़ोसी तोतोरो (My Neighbour Totoro-1998) 
-हवा की उड़ान (The Wind Rises-2013)

मोटेतौर पर ये उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण अौर ख्यातिलब्ध फिल्में हैं जो उनकी सोच का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। इन्हीं फ़िल्मों में जापान अौर भारत की सांस्कृतिक समानता के सशक्त दर्शन भी होते हैं। यहाँ यह देखना समीचीन होगा कि मियाज़ाकी की फ़िल्मों की विशेषताएँ क्या हैं। इन्हें निम्न रूपों में पहचाना जा सकता है- 
  1. प्रकृति अौर तकनीक के साथ मानव का संबंध
  2. नारीत्व
  3. शांतिवादी नैतिकता को बनाए रखने की मुश्किलें
  4. खलनायक की अनुपस्थिति या उसका सवाल
  5. बालपन का सघन चित्रण
  6. हवाई यंत्रों के प्रति आकर्षण
इनमें से खलनायक की अनुपस्थिति की बात छोड़ दें तो बाकी सभी विशेषताएँ भारतीय रचना विधान का अंग रही हैं। पर, हम ऐसा नहीं कह सकते कि मियाज़ाकी की फिल्मों में खलनायक नहीं है। वह शायद साफ-साफ दिखाई नहीं देता या उसे समझने के लिए हमें थोड़ी अधिक कोशिश करनी पड़ती है। मियाज़ाकी के अधिकांश फ़िल्में नायिका प्रधान है। इनमें सशक्त अौरतों अौर युवतियों का जीवन-संघर्ष, स्वप्न, चाहत, लालसा अौर प्रयत्न स्पष्ट तौर पर पहचाना जा सकता है। खलनायक वे समस्त स्थितियाँ हैं जो नायिकाअों के लिए संघर्ष के हालात पैदा करती हैं। इसलिए खलनायक का स्वरूप धुँधला अौर अस्पष्ट है। वह अदृश्य होकर जटिल हो गया है।
मियाज़ाकी अपनी फ़िल्मों में तरह-तरह के जीव-जगत उपस्थित करते हैं। विषैले वन्य-प्रदेशों से लेकर, अनोखी घाटियाँ, भुतहा रास्ते अौर जादू भरी राहों का निर्माण कर वे सर्वथा एक नए रहस्यमय लोक की रचना करते हैं। उनकी सभी महत्वपूर्ण फिल्मों में धरती, आकाश, जल, वनस्पतियाँ, अद्भुत जीव अौर मानव गतिविधियाँ एक साथ सक्रिय हो उठती हैं। ये मानव गतिविधियाँ अनेक तकनीकी वस्तुअों से समृद्ध है। गाँधी के बारे में माना जाता था कि वे सूक्ष्म तकनीकों के आग्रही व्यक्ति थे। जैसे, चरखा अौर तकली उनके प्रिय  अौजार थे। हयाअो मियाज़ाकी लघु अौर दीर्घ अौजारों में फर्क नहीं करते थे। उनके लिए झाड़ू अौर हवाई जहाज़ लगभग एक जैसा महत्व रखते हैं। कभी-कभी तो दोनों तदाकार भी हो जाते हैं। लेकिन तकनीक अौर मनुष्य के सह-संबंधों की व्याख्या दोनों में मौजूद है। ‘किकी की डाक सेवा’ में झाड़ू का हवाई यंत्र के रूप में इस्तेमाल हुआ है। भारतीय जनजीवन में आधुनिक तकनीकों के प्रति उदासीनता का भाव देखा जा सकता है जबकि जापानी समाज तकनीक को आकर्षण भरी निगाहों से देखता है। यह आकर्षण हयाअो मियाज़ाकी की फ़िल्मों में एक सूत्र की तरह विद्यमान है। अपने परिवेश का निर्माण करते हुए फ़िल्मकार मियाज़ाकी मनुष्य को ब्रह्मांडीय परिघटना का हिस्सा बना देते हैं। मनुष्य अपने कुछ अौजारों के साथ इस लोक में खड़ा है अौर अपने जीने का रास्ता ढूढ़ रहा है। अौजार ही उसे ताकतवर बना देते हैं अौर फिर वह अहंकार के दर्प में चूर प्रकृति विजय का अभियान छेड़ देता है अौर वह भूल जाता है कि वह स्वयं भी तो प्रकृति का ही हिस्सा है। प्रकृति को मारकर वह खुद भी मर ही जाएगा। अपनी फ़िल्मों में वे मनुष्य के अहंकारी भाव को तोड़ने के लिए प्रकृति की विराट शक्ति का प्रदर्शन करते हैं अौर मानव तथा प्रकृति के सह-अस्तित्व का सार्थक संदेश देते हैं। तूफान-घाटी की राजकुमारी नाऊसिका महाविनाश के बाद अपने पिता के साथ रहती है। उसके राज्य के चारों
अोर विषैले वन्य-प्रदेश अौर विध्वंसक सागर लहराते है जिनमें दैत्याकार अोम जन्तुअों का बोलबाला है। नाऊसिका इनके रहस्यों को जानना चाहती है जिससे एक स्थायी शांति कायम की जा सके। दूसरे तोमेकिअन लोग विषैले जंगलों अौर अोम जंतुअों को नष्ट करके सबकी सुरक्षा निश्चित करना चाहते हैं। पर, नाऊसिका इसमें महाविनाश की आशंका देखती है अौर विरोध करने पर बंदी बना ली जाती है। बाद में अपनी सूझ-बूझ से वह छूट तो जाती है पर अपने को विषैले जंगलों में घिरा पाती है। जब तोमोकिअन लोग युद्ध में बेबस हो महाविनाश की अोर बढ़ते है तो नाऊसिका शांतिदूत बन दोनों पक्षों के भय को खत्म कर उन्हें सह-अस्तित्व में रहने का उद्यम रचती है। सागर, जंगल, धरती अौर मनुष्य के अापसी संबंधों की अनूठी व्याख्या इस फ़िल्म में हैं जो भारतीय मनीषा की चिन्ताधारा का भी मुख्य केन्द्र रही है।
तकनीक के मनुष्य के साथ संबंधों को लेकर पूरी दुनिया के विद्वानों ने समय-समय पर अपनी राय प्रस्तुत की है। यह विमर्श आज भी जारी है। भारत का प्राचीन काल वैज्ञानिक व तकनीकी रूप से समृद्ध था। मध्यकाल में दार्शनिक उभार के चलते हम कमोवेश तकनीकी निरपेक्षता की अोर चले गए। अौर अब पश्विमी तकनीकों पर अाश्रित होकर अपने विकास की संभावनाएँ तलाश रहे हैं। जापान ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अपने नवनिर्माण के दौर में अाधुनिक तकनीक अौर विज्ञान को हृदय से अपनाया। शायद यही वह समय था जो मियाज़ाकी को मथता है अौर वे इससे थोड़ा घबराए हुए से प्रतीत होते हैं। यह घबराहट उनकी कई फ़िल्मों में परिलक्षित होती है। इसलिए उनकी फ़िल्मों में तकनीक का आकर्षण अौर भय दोनों उपस्थित हो जाता है। एक-दूसरे के सामने, एक-दूसरे से संवाद रचता हुआ। मनुष्य को तकनीक चाहिए भी अौर वही उसके लिए सबसे बड़ा संकट भी पैदा करती है। मेरा अनुमान है कि बचपन में देखे-सुने आणविक युद्ध की छाया मियाज़ाकी का हमेशा पीछा करती रही है। यह उनके लिए एक दुविधा भरा समय है जिसमें तकनीक, विनाश अौर राहत एक साथ लेकर आती है। तकनीक हमारे जीवन को सुगम बनाती है, उसमें व्यवस्था पैदा करती है। संविधान भी सामाजिक व्यवस्था रचने का उपक्रम करता है। तकनीक भौतिक रूप से प्रत्यक्ष होती है संिवधान अभौतिक होकर भी हमारा नियमन करता है। तकनीक बाह्य प्रकृति का नियमन करती है तो संविधान भीतरी प्रकृति के नियमन का उपक्रम है। एक प्रकृति बाहर है अौर दूसरी हमारे भीतर भी जिसमें सपनों के ज्वालामुखी धधकते हैं अौर इच्छाअों के तूफान उठ खड़े होते हैं। दोनों नियंत्रित करने की जरूरत होती है। जापानी समाज ने बहुत पहले तकनीक की महत्ता समझी थी। मियाज़ाकी का तकनीकी आकर्षण अौर बाबा साहब अंबेडकर का संविधान निर्माण दोनों सामाजिक नियमन के दो पहलू उभारते हैं जो कहीं जाकर एक ही राह पर आकर मिल जाते हैं भले ही एक में बाह्य प्रकृति अौर दूसरे में भीतरी प्रकृति को साधने पर अधिक बल हो। जैसे बाबा साहब ने दलितों के सशक्तिकरण का अभियान छेड़ा वैसे ही मियाज़ाकी अपनी फ़िल्मों में स्त्री की ताकत, गुणवत्ता, बौद्धिकता अौर संघर्षवाहिता का पूरे प्रभाव के साथ चित्रण करते हैं।
    इसी क्रम में ‘राजकुमारी मोनोनोके’का उल्लेख किया जा सकता है जिसका फलक बहुत व्यापक है। वह मिथकीय युग से आरंभ होकर आधुनिक युग तक की यात्रा जैसा अाह्लाद देती है। अनोखे देवी-देवताअों, राजकुमार-राजकुमारियों, दैत्यों, सघन वन प्रांतर, महाकाय पहाड़ों, वनैले रहस्यमयी जानवरों के सहारे मियाज़ाकी एक जादुई संसार बसा देते हैं। निर्जीव अौर सजीव चीजें एक दूसरे की पूरक बनकर उभरने लगती हैं। ‘पंचतंत्र’ अौर ‘विक्रम-बेताल’ का सम्मिश्रण-सा परिवेश उभरता है इस फ़िल्म में। फ़िल्मी तकनीक का उपयोग कर मियाज़ाकी अपने परिवेश को पर्याप्त डायनेमिक अौर प्रभावोत्पादक बना देते हैं जो कहानियों में शिथिल-सा दिखाई देता है। पाश्चात्य संस्कृतियों में तकनीक का डॉमिनेंश या वर्चस्व दीखता है जबकि प्राच्य संस्कृति तकनीक को मानव का अनुगामी बनाती है। इसलिए हॉलीवुड फिल्मों से हयाअो मियाज़ाकी की फ़िल्में बिल्कुल अलहदा हैं। ‘स्टार वार्स’ ‘टर्मिनेटर’, ‘किंग कांग’, ‘जुरासिक पार्क’, ‘एनाकोंडा’ अौर ‘स्पाइडर मैन’ जैसी फ़िल्मों अौर मियाज़ाकी की फ़िल्मों के विधायी तत्व-तकनीकी उपकरण, प्राकृतिक परिवेश, अनूठे जीवजंतु—भले ही एक जैसे हों पर उनके साथ किया गया ट्रीटमेंट बिल्कुल जुदा है। इसके चलते ही वे भारतीय संस्कृति अौर भावबोध के अधिक करीब दिखाई देते हैं। भारतीय परंपरा में ध्वंस अौर निर्माण के मिथक भरे पड़े हैं। जिनमें जलप्लावन अौर देव सभ्याता के विनाश की कहानी पौराणिक ग्रंथों से लेकर जय शंकर प्रसाद की रचना ‘कामायनी’ तक की केंद्रीय विषय-वस्तु है। ‘राजकुमारी मोनोनोके’ का प्रारंभ भी विध्वंस की आशंकाअों अौर आहटों के बीच होता है। राजकुमार युवक आशिताका अौर गाँव के एक बुजुर्ग को सुदूर सघन जंगल में कुछ अनहोनी सी घटित होती प्रतीत होती है। वे इसका जायजा लेने जब गाँव के वाच-टावर पर चढ़ते हैं पलक झपकते ही वन से निकला दैत्य उस टावर को तोड़ देता है। आशिताका किसी तरह एक पेड़ का सहारा लेकर अपनी जान बचाता है अौर देखता है कि दैत्य गाँव को विध्वंस करने को बढ़ा जा रहा है। अपने तीर कमान से वह दैत्य का बध कर देता है पर उसका हाथ जख्मी हो जाता है। बाद में बुजुर्गों की पंचायत अपने अनुभव से जान पाती है कि यह दैत्य कभी देव था। जो गुस्से अौर नफ़रत के अतिरेक के कारण दानव बन गया था। उसके अभिशाप के चलते आशिताका का घाव कभी नहीं भरेगा अौर अंतत: वह मर जाएगा अौर गाँव का विनाश भी निश्चित है। पंचायत यह फैसला करती है कि आशिताका यह पता लगाने के लिए पश्चिम देश की यात्रा पर चला जाय कि देव का दानव बनने का क्या कारण था। इससे ही मानवता का कल्याण हो सकता है। यह यात्रा ही फ़िल्म के केन्द्र में है जहाँ आशिताका नागो भगवान के बारे में जान पाता है जो वन-देवता था अौर बाद में मानव निर्मित लोहे की गेंद के प्रहार के चलते वही दैत्य बन गया था जिसका घाव लिए अपने याकूल पर आशिताका अभी भी घूम रहा है। इसी यात्रा में उसे लालची जिगो, लौह नगर ततारा की मलिका लेडी इबोशी, वहाँ जीवन यापन करती पुरानी वेश्याएँ अौर कोढ़ी, अजीबो-गरीब कोदामा, जंगल में रमण करती आत्माएँ, प्रचुर जल स्रोत अौर अनंत वनस्पतियाँ, भेड़िअों की देवी मोरो तथा उसके द्वारा पालित-पोषित राजकुमारी मोनोनोके, जंगल के अधिष्ठाता देव ‘विशाल रात्रिचारी’ (Nightwalker) आदि मिलते हैं। आशिताका की यह पश्चिम देश की यात्रा अौर उससे जुड़ी घटनाएँ-घृणा, प्रेम, लालच, प्रकृति अौर मनुष्य के संबंध, अौद्योगीकरण अौर उसके दुष्परिणामों का उजागर करने का काम करती है। अंतत: मियाज़ाकी यह स्थापित करते हैं कि मानव-सभ्यता अौर प्रकृति-पशु-परिंदे एक-दूसरे के साथ सह-अस्तित्व में रह सकते हैं। नफ़रत को मिटाना कितना मुश्किल है यह इस फ़िल्म में बखूबी दर्शाया गया है। यह फ़िल्म घृणा पर विजय प्राप्ति का अभियान बन जाती है। वास्तविक जगत में नफ़रत को जीतने का ऐसा उपक्रम, पूरी दुनिया में, महात्मा गाँधी ने अलावा शायद ही किसी अौर ने किया है। जब पश्चिमी सभ्यता अौद्योगिकीकरण के रथ पर आरूढ़ प्रकृति का दोहन करने में जुटी थी तो गाँधी ही ऐसे शख्स थे जिन्होंने पूँजीवाद, मशीनीकरण अौर उद्योगीकरण का सार्थक क्रिटीक उपस्थित किया।
‘चिहिरो की कहानी’ एक दस साल छोटी बच्ची की कहानी है। जो अपने माता-पिता के साथ नए घर में प्रवेश करने जा रही है। पर राह भटकने के कारण वे बिल्कुल बीहड़-सी जगह में पहुँच जाते हैं। फिर उसके माता-पिता आकर्षण अौर लालच के फेर में आकर वहाँ पहुँच जाते हैं जहाँ युबाबा की पराभौतिक शक्तियाँ काम करती हैं। इसके फलस्वरूप उसके माता-पिता सुअर बन जाते हैं। युबाबा की यह जादू भरी दुनिया अनेक रहस्यमयी घटनाअों से पटी पड़ी है। युबाबा का सिर पक्षी अौर धड़ मनुष्य जैसा है। वहाँ मानव का प्रवेश वर्जित है। इस दुनिया में उड़ंतू ड्रैगन, तरह-तरह के जानवर, जो मनुष्य के ही रूपांतरित रूप हैं, मिलते हैं। पानी पर दौड़ती रेलगाड़ी है। इस रहस्यमय दुनिया में चिहिरो किसी तरह रहने की अनुपति पा जाती है जिससे वह अपने माता-पिता, जो अब शूकर बन चुके है, को पुन: मानव रूप में लाने का संघर्ष कर सके। मियाज़ाकी इस फ़िल्म में एक मायावी, रहस्यमयी, भुतहा लोक की रचना करते हैं जिसमें छोटी-बालिका चिहिरो का संघर्ष अौर सूझबूझ बखूबी चित्रित हैं। भारतीय नैतिक कथाअों की तरह मियाज़ाकी अपनी इस फ़िल्म में यह संदेश प्रस्तावित करते हैं कि ‘लालच अौर आकर्षण’ मनुष्य को जानवर बना देते हैं।
‘मेरा पड़ोसी तोतोरो’ एक प्रोफेसर तत्सुअो अौर उनकी दो बेटियों-दस वर्षीय सत्सुकी अौर चार वर्षीय मेइ की कहानी है जो अपने दूसरे घर में रहने जा रहे हैं। जहाँ के एक अस्पताल में बेटियों की माँ स्वास्थ्य लाभ कर रही है। जब बेटियाँ इस घर में पहुँचती हैं तो उनका सूक्ष्म कजली आत्माअों से साक्षात्कार होता है। वे भय अौर आश्चर्य से भर जाती हैं। उनके पड़ोस में रहने वाला केंता उनको यह बताकर अौर डरा देता है कि इस घर में भूतों ने डेरा डाल रखा है। केंता की दादी यह सब बताने के लिए उसे झिड़क देती है। एक दिन छोटी मेइ को कपूर के पेड़ के नीचे  सकरा रास्ता  दिखाई देता है जिसमें वह कौतूहलवश प्रवेश कर जाती है जहाँ उसका साक्षात्कार तोतोरो से होता है जो इन सूक्षम आत्माअों की सरगना है। ये आत्माएँ मनुष्यों को घर में पाकर नए खाली घर की तलाश में बाहर निकल जाती हैं। बाद में दोनों बच्चियों की सहृदयता तोतोरो को प्रसन्न कर देती है अौर परिणाम स्वरूप उनकी माँ स्वस्थ हो घर लौट अाती है।
‘हवा की उड़ान’ एक आत्मकथात्मक फ़िल्म है जिसने वर्तमान समय में एक विवाद को भी जन्म दिया। इसकी कहानी एक जंगी जहाज बनाने वाले इंजीनियर जिरो अौर क्षय रोगग्रस्त उसकी प्रेयसी नहोको की कहानी। जिरो को हवाई जहाजों से बड़ा लगाव था इसलिए वह पायलेट बनने का इरादा छोड़ उनके निर्माण से जुड़ जाता है। विफलताअों के बाद जब वह एक अच्छा जहाज बनाता है तो उसका इस्तेमाल द्वितीय युद्ध में किया गया जिससे उसे बहुत आघात लगा। मियाज़ाकी इस फ़िल्म में जापान के सैन्यीकरण की दिशा में बढ़ने के खतरों के प्रति आगाह करते नज़र आते हैं। फ़िल्म ने अपने इसी संदेश के चलते राजनीतिक विवादों को भी जन्म दिया है।
हयाअो मियाज़ाकी अपनी फ़िल्मों में शहर को गाँव, जीवित अात्माअों को मृत आत्माअों, तथ्य को कल्पना, जादू को यथार्थ, निराकारता को सकार, आसमान को धरती, जंगल को जमीन, जानवर को मनुष्य, यंत्र को तंत्र, इतिहास को स्मृति अौर लघुता को विराटता से जोड़ते हैं। इसलिए इसलिए जंगल में भेड़ियों के बीच पली राजकुमारी, कुमार आशिताका से प्रेम करते हुए भी करते हुए भी वन में ही रहने का निश्चय करती है। चिहिरो भुतहा लोक से अपने माता-पिता को वापस ला पाती है। नाऊसिका एक शांतिदूत बन मानव सभ्यता अौर प्राकृतिक शक्तियों के बीच स्थाई शांति की तलाश करती है। तोतोरो एक मददगार अौर मानवीय आत्मा के रूप में हमारे सामने आता है अौर जिरो अपने आकर्षक आविष्कार के बावजूद पश्चाताप से घिर जाता है। मनुष्य अपनी ही प्रजाति के खिलाफ हो जाता है, उसी का संघारक बन जाता है। मियाज़ाकी की फ़िल्मों मनुष्य की दोहरी तानाशाही पर चोट है। एक जिसमें वह दूसरे मानव समूहों के विरूद्ध युद्ध रचता है अौर दूसरा जिसमें वह समूची प्रकृति को हस्तगत करना चाहता है। उनकी फ़िल्में प्रकृति अौर अन्य प्राणियों पर मानव-तानाशाही का प्रतिवाद करती हैं।

भारत में राजनीति अौर धर्मनीति साथ-साथ चलती हैं। बुद्ध राज-कुमार होकर सन्यासी बन जाते है, गाँधी राजनेता होकर वैष्णव भजन गाते हैं, अम्बेडकर आधुनिक भारत का संविधान रचते हुए भी बौद्ध धर्म में दीक्षा लेते हैं। हयाअो मियाज़ाकी भी राजनीति अौर कलानीति को एक साथ लेकर चलते हैं। जब उन्हें अमेरिका में अॉस्कर समारोह में सम्मिलित होने के लिए बुलाया गया तो वहाँ न जा पाने के बारे में उनका जवाब था-‘I didn’t want to visit a country that was bombing Iraq’.आखिरकार कलाएँ, धर्म, दर्शन तथा राजनीति समाज को सँवारने के लिए ही तो हैं अौर मियाज़ाकी अपनी फ़िल्मों के जरिए यही वैश्विक संदेश रचते हैं।

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