कैंपस लाइफ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
कैंपस लाइफ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

09 अक्टूबर, 2008

नाटक


बात उन दिनों की है जब मैं अपनी प्रेमिका के साथ घूमा करता था और मस्‍त रहता था।दुनिया के बड़े-बड़े चिंतन का केंद्र मुझे उसमें ही दिखाई देता था और मुझे यह लगा करता था कि यही वह औरत है जो मुझे महान बनाने के लिए इस धरती पर पैदा हुई है। अपने इन निजी उन्‍माद के दिनों में मैं बड़े-बड़े विद्वानों की उपेक्षा कर जाया करता था और जब वे कक्षाओं में अध्‍यापन कार्य किया करते थे तो कॅाफी हाउस में बैठ, अपनी प्रेमिका की आँखों में डूबा मैं जीवन की सार्थकता तलाशा करता था।
स्‍त्री जाति के प्रति शायद र्इश्‍वर ने पैदा होते ही मेरे भीतर इतनी करूणा भर दी थी कि होश संभालते ही मैं उसके संसर्ग का पुरजोर आकांक्षी हो गया था और उसी परमपिता परमानंद की कृपा से मुझे सफलताऍं भी खूब मिली। मेरा एक दोस्‍त आजकल सिंगापुर पहुँच गया है। जब वह मेरे साथ पढ़ता था, पिछली बेंच पर बैठने वाला काफी फिसड्डी छात्र माना जाता था।स्‍कूल के दिनों में जब मेरी सफलता से मेरा दोस्‍त आघातित हुआ तभी उसने सोच लिया कि अब इस देश को .......(यहॉं उसने एक गाली का इस्‍तेमाल किया) कर चल देना है। सबसे पहले उसने यह क्रिया स्‍कूल के साथ की और परीक्षा से पहले ही कक्षाओं में आना बंद कर दिया। फिर उसने इसकी पुनरावृत्ति अपने परिवार वालों के साथ की और अलग रहने लगा।इस बीच उसके पास काफी पैसा आ गया था। अंतत: उसने इस देश के साथ वही किया जो कहा था और सिंगापुर पहॅुंच गया। अगर आप मुझसे झूठ की अपेक्षा न रखे तो मैं कहॅूगा कि इससे(मेरे दोस्‍त की गाली) वजनी शब्‍द अपने उन दिनों में कक्षाओं को लेकर दूसरा मन में आता ही नहीं था और अक्‍सर मैं कक्षाओं में अनुपस्थित रहा करता था।
उन दिनों हमें एक अध्‍यापक पढ़ाया करते थे ! उनका नाम था ---- खैर नाम छोडि़ए नाम में क्या रखा है । वे काफी लंबे और स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति थे । ऑखों पर रंगीन चश्‍मा लगाते थे और फिएट से आया करते थे । एकदिन जब मैं अपनी प्रेमिका के साथ लौट रहा था तो उनकी नज़र मुझ पर पड़ी और अपनी तर्जनी का इशारा करते हुए उन्‍होंने मुझे अपने पास बुला लिया । लज्‍जाशील मेरी प्रेमिका कुछ देर वहीं ठहर कर अपने घर चली गयी ।
मेरे उन शिक्षक ने पहला प्रश्‍न यही किया “भई , तुम क्‍लास क्‍यों नहीं करते”। मैं अकबका कर कुछ बताने लगा था तो उन्‍होंने कहा कि, “अब तो फुर्सत मे होगे, आज मेरे साथ चलो”। मेरी प्रेमिका चार बजे यू-स्‍पेशल पकड़ कर नियमित अपने घर रवाना हो जाती थी , उसके बाद मैं अपने दोस्‍तों और अपनी पढाई के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाता था। सो, मेरे लिए अपने इस शिक्षक के प्रस्‍ताव पर कोई आपत्ति नहीं हुई। बावजूद इसके मन रहस्‍य तथा भय से भर गया।
मैं उनकी कार में अगली सीट पर उनके साथ ही बैठा । थोड़ी देर बाद उन्‍होंने पूछा
‘पिता जी क्या करते हैं’
’जी, अपना काम है’
‘सुना है तुम पढ़ने – लिखने वाले विद्यार्थी हो’
’सर, इतना कहकर मैं चुप रह गया’
’वह लड़की कौन है’
’सर, वह ------- की बेटी है’ मैंने डरते-डरते लड़की के पिता का नाम बताया
’अच्‍छा तो वह उनकी बेटी है’
‘तो, सर आप उन्‍हें जानते हैं’
‘हॉं! वे मेरे मित्र हैं’
वे जैसे ही यह बात बोले मेरी ऑखों में चमक उत्‍पन्‍न हो गयी । यहॉ अपनी योग्‍यता सिद्ध कर इन्‍हें अपने पक्ष में किया जा सकता है ।इस समय गुरू मुझे गोविंद से भी बड़े दिखाई दिए।
‘कब से परिचय है’ उन्‍होंने आगे प्रश्‍न किया
‘पिछली 20 मई को दो साल पूरे हो गये’
’बहुत ठीक-ठाक स्‍मृति है तुम्‍हारी ‘
मैं कुछ नहीं बोला
’सूरज की अंतिम किरण से सूरज की पहली किरण तक’ किसका नाटक है’
’सर, उनका एक उपन्‍यास भी आया है इधर - कुछ ‘चॉद चाहिए’ जैसा’
‘ यहॉं उतनी एक्‍यूरेसी नहीं है।‘
’सर, हम एक दूसरे को बहुत प्‍यार करते हैं।‘
’यह किसका नाटक है।‘
’नहीं सर, मैं उस लड़की की बात कर रहा हूं। हम दोनों शादी करना चाहते हैं। ‘
’नाटक!! नाटक देखते हो कभी ।‘
’मैं उनकी बात पर ध्‍यान दिए बिना कहता रहा , ‘सर, हम दानों की शादी में सिर्फ उसके पिता बाधा उत्‍पन्‍न कर सकते हैं।‘
’यह वह कहती होगी’ वे बड़े शांत भाव से बोले
’हॉं , सर’
’बड़ा >>>नाटक!!! हिंदी में पिछले बीस सालों से कोई बड़ा नाटक नहीं लिखा गया। इतना तो तुम्‍हें मुझसे स‍हमत होना पड़ेगा। वैसे भी तुम इस विधा में पारंगत नहीं हो। ‘
’जी सर’
’खेलते क्या हो’
’चेस’
’तब तो जरूर हारते होगे’
’क्‍यों सर’
’यह खेल दिमाग से जो खेला जाता है। खैर छोड़ो। पीते क्या हो।‘
मैं समझा नहीं सर’
’अरे जिंदा रहने के लिए आदमी कुछ न कुछ पीता है। तुम......’
’समझा सर, मैं सिर्फ चाय पीता हॅू’
’और प्रेम करते हो। चाय पीकर प्रेम। रीतिकालीन कवि स्‍वर्णभस्‍म खाकर प्रेम करते थे और तुम.....। अच्‍छा आओ चलें।‘
मैंने देखा जहॉं कार रुकी थी वह एक कोठीनुमा फ्लैट था।करीने से सजा हुआ और लगता था कि किसी साहित्यिक जीव का है जो कलाओं का उपासक होगा। कॉलबेल बजने के कुछ क्षणों बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला। संभवत: वह घर की नौकरानी थी। हम एक बड़े ड्राइंग रूम में पहुँच गए थे। ड्राइंग रूम की शोभा अद्भुत थी। वॉल माउंट टी0वी0, डी0वी0डी0 प्‍लेयर, होम थिएटर सिस्‍टम आदि सब फिट। एक दूसरी आलमारी में कुछ रंगीन बोतलें। सामने एक तख्‍त पर कुछ वाद्ययंत्र और कोने में एक उद्दाम मूर्ति अपने पूरे वैभव के साथ खड़ी थी। नीचे लाल कालीन विछा हुआ था। मेरी ऑंखें फटी रह गयी थीं। मैंने सोचा इसमें रहने वाला व्‍यक्ति जरूर बड़ा रंगीन तबियत होगा। थोड़ी देर में एक प्‍लेट काजू और कोल्‍ड ड्रिंक वही लड़की हमारे सामने रख गयी थी जिसने दरवाजा खोला था। इस बार मैंने उस लड़की को थोड़ा ध्‍यान से देखा, वह साधारण कपड़ों में भले थी, पर थी बहुत सुंदर। अपने शिक्षक की उपस्थिति में भी मेरे मुंह से हूक सी निकल पड़ी। इतनी सुंदर लड़की अपने इतने करीब मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। जब मैं चैतन्‍य हुआ तो मैने पाया कि मेरा शरीर उसे देखकर एक क्षण के लिए अकड़ सा गया था।सर ने उस लड़की से पूछा, ‘स्‍वीटी किधर है ?’ उसने सिर झुकाए कहा, ‘अभी-अभी आई थीं फ्रेश हो रहीं हैं’।इतना कहकर वह चली गयी।
सर ने काजू की प्‍लेट की तरफ इशारा करते हुए कहा ‘लो’ । मैंने बिना कुछ बोले अपने हाथ में कुछ काजू के टुकड़े उठा लिए और कोल्‍ड ड्रिंक की बोतल हाथ में पकड़ी ही थी कि एक भव्‍य महिला ने प्रवेश किया। पॉंच फुट छ: इंच तो रही होंगी। दोनों हिप्‍स पर काले बाल तैर रहे थे। सर ने मेरी ओर मुखातिब होते हुए कहा- ‘यह मेरा शिष्‍य है और यह स्‍वीटी’ उन्‍होने मुझे संबोधित किया। कृष्‍ण का जो रंग मैं कैलण्‍्डरों में देखा करता था, उसका सीधा साक्षातकार मेरी ऑंखों कर रही थीं। उन बड़ी-बड़ी ऑंखों की महिमा अद्भ्‍त थी। किसी भी संयमी पुरूष को अपने में डुबो लेने की एक खास सम्‍मोहन शक्ति भरी हुई थी उन ऑंखों में। मैंने थूक लीलते हुए और गला साफ करते हुए अपने को इस खतरनाक स्थिति से उबारा। इतनी देर तक सर उनसे क्या बातें करते रहे मैंने सुना नहीं और जब उन्‍होंने पूछा कि तुम भी थोड़ी सी लोगे तो मुझे ठीक से याद है कि मैं ‘हॉं’ के सिवा और कुछ भी न कह सका था और तब मैंने उन रंगीन बोतलों में से एक को अपने सामने पाया।
मैंने देखा कि स्‍वीटी जी सामने बड़े करीने से बैठी हैां यह करीने से बैठना उनकी ‘सेक्‍स अपील’ को और भी बढ़ा रहा था। मैं एक के बाद दूसरी खाई में गिरता जा रहा था, तब तक सर ने मेरी ओर बीयर से भरा गिलास बढ़ा दिया था। मैं भी खिलाडि़यों की तरह गटा-गट चढ़ा गया। एक-एक कर कई गिलास। अब भिन्‍न प्रकार के उन्‍मादों का काकटेल मेरे दिमाग में चढ़ गया था। धीरे-धीरे दिमाग जान गया कि अब उसका नियंत्रण खत्‍म होता जा रहा है। मैं जाने कब अपनी दुनिया में डूब गया था। एक-आध बार झटका खाता तो पाता कि सामने स्‍वीटी बैठी गा रही है-
कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है
कि जैसे तुमको बनाया गया है मेरे लिए।
कि जैसे तु मुझे चाहेगी उम्र भर यूँ ही
मैं जानता हूँ तू गैर है मगर यूँ ही
कभी- कभी मेरे दिल में खयाल आता है.....
और सर मेरा साथ छोड़कर उनके बहुत करीब बैठ गए हैं। इसके अतिरिक्‍त और क्या हो रहा है, इसका मुझे होश ही नहीं था। जब तब वाद्य यंत्रों की ध्‍वनि कानों में पहुँचती तो कुछ खनकता-सा प्रतीत होता। सर मेरी हालात समझ गए थे और उन्‍होंने मेरे लिए नींबू पानी मँगवा लिया था। नींबू पानी लिए वही लड़की मेरे सामने थी। नशे की ऐसी हालत में उसे सह पाना बड़ा मुश्किल था। यह लड़की इतनी सुंदर होते हुए इतने साधारण कपड़ों में क्‍यों रहती है। यह नौकरानी की तरह काम कर रही है जिसे इसे नही होना चाहिए। मेरे ऊपर मध्‍यकालीन बोध हावी होता जा रहा था।
थोड़ी देर बाद मुझे सर ने कहा आओ डिनर करते हैं। नींबू पानी ने अपना असर छोड़ा था और दुनिया यथावत होने लगी थी। भूख अपने उत्‍कर्ष पर थी और भोजन की प्राप्ति की आशा बँध जाने से उसकी तीव्रता बढ़ गयी थी। उस दिन मैंने इतना खाया कि अगले दो रोज मुझे खाने की जरूरत ही न पड़ी।
खाना खाने के बाद मैं सर के साथ वापस लौट रहा था। उन्‍होने इन दोनों लड़कियों की कहानी बतार्इ जिसकी मुख्‍य बात यह थी कि परिस्थितिवश दोनों अनाथालय पहुँची तब इनमें दोस्‍ती हुई और जब स्‍वीटी को थियेटर में नौकरी मिली तब सविता भी इसके साथ रहने लगी। मेरा परिचय एक नाट्योत्‍सव के दौरान स्‍वीटी से हुआ था। सविता भी कई वाद्य यंत्र बजा लेती है, स्‍वीटी से ज्‍यादा अच्‍छा गा लेती है लेकिन दिल्‍ली शहर की हवा मे वह कभी आगे बढ़ पाएगी, इसका भरोसा मुझे नहीं है। वह बहुत जिद्दी और समझदार है।
मैं संयोगों में बहुत कम विश्‍वास करता हूँ लेकिन आज का यह संयाग मेरे लिए परिवर्तनकारी सिद्ध हो रहा था। मैं चाह रहा था कि सर सविता के बारे में और बातें करें, स्‍वीटी तो सर के हिस्‍से की है। वे सब बातें करें जिससे मैं उसका अतीत-वर्तमान सब समझ सकॅूं, इसलिए सर को मैंने अपने यत्‍नों से उकसाया। वे बोलने लगे, ‘इस लड़की को चित्रकला की बड़ी अच्‍छी परख है और नृत्‍य भी अच्‍छा कर लेती है’। मैंने फिर कुरेदा तो वे बोले, ‘बस और कुछ नहीं है उसमें समझे। उसकी जिद्द इस धरती से उसे मौन विदा कर देगी। वह कुछ भी नहीं कर पाएगी। यह समझ रखना।’ सर ने इस बार मुझे डपटा था। मुझे गुस्‍सा आ गया था जो मेरे दिमाग के चारों ओर फैल गया। सर की तरफ न मुड़कर उसने एक दूसरा चैनल पकड़ लिया था। ‘एक स्‍वीटी जी हैं- कितनी अच्‍छी हैं। गाना जानती हैं। बजाना जानती हैं। करीने से बैठना जानती हैं। घर केा सजाना जानती हैं। एक सविता है- चित्रकल, नृत्‍य, संगीत सबका ज्ञान है उसको। अतिथि सत्‍कार का सलीका है उसके पास और एक मेरी प्रेमिका है,’ नींबू पानी का असर खत्‍म हो रहा था, ‘बकरी की लेंड़ी की तरह, सलवार कितनी ऊँचाई पर बॉंधा जाय इ‍सका भी ठीक हिसाब-किताब नहीं। प्‍यार करने का शऊर नहीं। जो कुछ करो सब आप करो। थोड़ी बहुत सुंदरता के अलावा और कुछ भी नहीं’ । मैंने अपने आप को रोका थोड़ा शांत हुआ। ‘सविता कितनी मुश्किल से पली-बढ़ी फिर भी क्या नहीं जानती। ईश्‍वर ने आज का यह संयोग इसीलिए बिठाया कि हम दोनों मिले तो अब हमेशा के लिए मिल जाऍं। यह जिद्दी और समझदार लड़की। मेरे इस चूतिए गुरू ने जरूर इसके साथ कुछ हरकत की होगी। यह मेरा साथ पाकर इस शहर की हवा बदल देगी। मुझे बकरी की लेंड़ी अपनी पुरानी प्रेमिका नहीं चाहिए।’
‘उतरो तुम्‍हारा घर आ गया है’- सर ने कहा
‘हॉं सर हॉं’ मैं अचकचा गया
’और सुनो’ उन्‍होंने बात जारी रखते हुए कहा, ‘तुम घबड़ाओ मत, मैं उस लड़की के पिता से बात कर लूँगा।’
‘नहीं सर। अब इसकी आवश्‍यकता नहीं है।‘
वे मुस्‍कराए और मैंने अपनी बात पूरी की, ‘सर। सविता जैसी लड़कियों का जीवन सुधारने में युवा-शक्ति को लगना चाहिए।’ मैं इस मुद्दे पर ज्‍यादा बोलना चाहता था कि वे टोकते हुए बोले-
‘ना>>>टक!!! नाटक की कक्षा में भी पढ़ने आ जाया करो।‘ और उनकी फिएट गरर्र की आवाज करती हुई आगे बढ़ गयी।
रात के उस अंधरे में मैंने देखा कि सूर्योदय हो रहा है।