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14 मई, 2010

सायबर मीडिया और महिलाएँ


80 के दशक में पश्चिम में इंटरनेट और सायबर मीडिया लोकप्रिय होने लगा था। 1990 के बाद और खास तौर पर इस सदी के प्रारंभ में इसका तेजी से विकास हुआ। आज सायबर मीडिया की पहुँच आम लोगों की ओर उन्मुख है। यह माध्यम अपने चरित्र और इसलिए निजी अभिव्यक्तियों के लिए नया अवसर प्रदान करता है। स्त्रियों के मुक्तिकामी व्यवहार को इंटरनेट पर सहज ही देखा जा सकता है। बाजार के लिहाज से देखें तो प्रतीत होता है कि स्त्री की यौनिकता उसकी सबसे बड़ी ताकत है, खासतौर से पितृसत्तावादी समाज में । अपने लिए मुक्ति और स्वच्छंदता की तलाश में स्त्रियों को इंटरनेट के रूप में एक नया माध्यम मिला है। इंटरनेट पर अन्य माध्यमों की ही भाँति स्त्री छवि का मूलत: विज्ञापनों में दिखाई देती है। एनीमेशन तकनीक से अपना प्रभाव डालने में समर्थ होते हैं।चूँकि यह माध्यम एक तरह से सार्वभूमिक रूप से उपस्थित है इसलिए स्त्री की छवियाँ विविधवर्गो और बहुआयामी दिखाई देती है। सामाजिक-विमर्श के नजरिए से देखें तो इस तकनीक पर अभी पश्विमी देशोम का बोलबाला है इसलिए वहाँ की सशक्त, मार्दन, तेजतर्रार स्त्री की छवि जहाँ ज्यादा उपस्थित है। इस माध्यम से सूचना का आदान-प्रदान त्वरित,प्रभावशाली और अत्यमत किफायती है इसलिए नारी आंलोलन संबंधी गतिविधियों के प्रति जानकारी और स्त्री अधिकारों की पहुँच आम कामकाजी महिलाओं तक पहुँची है। स्त्री के विचारों को आपस में बाँटने के लिए इंटरनेट पर अनेक समूह है। इन समूहों , कम्यूनिटीज ब्लागों के द्वारा स्त्रियाँ घर बैठे दूसरे देशों, समाजों और समुदाय की स्त्रियों से संवाद कर सकती हैं।
सूचना, शिक्षा और मनोरंजन को गति देने वाला इंटरनेट सबसे विकसित तकनीक है लेकिन कंप्यूटर की अनिवार्य और फोन जैसी सुविधा के साथ सामान्य अजरज्ञान सायबर मीडिया से जुड़ने के अत्यंत जरूरी पहलू हैं। भारतीय समाज में स्त्रियों का एक बड़ा वर्ग अभी अशिक्षित है और उसकी आय कंप्यूटर जैसे उपकरण की खरीद में समर्थ नहीं है या फिर टेलीविजन जैसी सुविधा के खर्च का वहन वह नहीं कर सकती। फिर भी,उच्च मध्यवर्ग इन सभी स्थितयों से उबर चुका है और स्त्री सशक्तिकरण की चिंता का केन्द्र भी फिलहाल यहीं दीखता है। सायबर मीडिया उच्च मध्यमवर्गीय स्त्री की आकांक्षाओं एवं सपनों को निरूपित करने वाली छवि ही अधिक परोसता है। इस सिलसिले में तेजी से उभरती हुई शादी-ब्याह की वेब साइट्स को देखा जा सकता है। 20-30 वर्ष आयु वर्ग की स्त्रियाँ अपने कौशल का विज्ञापन करती हुई एक बेहतर जीवन साथी पर उनकी निर्भरता इस माध्यम को कम की है। साथ ही, अपनी खोज में यह माध्यम अधिक व्यापक भी इसलिए जीवन शैली की खोज संबंधी दायरा भी विस्तृत हुआ है।
सायबर मीडिया आधुनिक स्त्री की आधुनिक छवियों का निर्माण करने में सहायक रहा है। इसके चलते प्राचीन रूढ़ियों , मान्यताएँ और नैतिकताएँ नष्ट भी हुई है। इस माध्यम में भौतिकता का आग्रह अत्यंत प्रबल दिखाई देता है। परिणामस्वरूप स्त्रियों की देहाभिव्यक्ति का प्रखर,मोहक और रागात्मक रूप इन्टरनेट पर स्त्री यौनता का वीभत्स रूप भी देखने को मिलता है। यह पितृसत्तात्मक मानसिकता का स्त्री के प्रति नजरिए को भी ग्राहक पुरुष समाज ही है। स्त्री अपनी यह छवि बेचने के लिए विवश हुई है। नेट पर यह बाजार अत्यंत व्यापक है और पितृसत्ता से बराबरी की लड़ाई में एक कारगर हथियार के रूप में कार्यरत है।इंटरनेट पर स्त्री की वास्तविक छवियों का विकास एवं निरूपण जन्वर्जेस तकनीक के आने पर होगा। मीडिया को विभिन्न तकनीकों ने सामाजिक परिवर्तन को नयी गति दी है। इस परिवर्तन का वास्तविक लाभ स्त्रियों को भी मिला है। सायबर मीडिया ने स्त्री की प्रतिभा,कौशल और दक्षता को पुरुषों की बराबरी में खड़ा किया है। रोजगार में स्त्री-पुरुष संतुलन का मार्ग प्रशस्त करने में भी सायबर मीडिया की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है। हमारे रोजमर्रा की सूचना और ज्ञान संबंधी समस्याओं का समाधान इंटरनेट के माध्यम से सुनिश्वित हो रहा है। ई- गवर्नेस के इस युग महिलाओं में प्रयत्न भागीदारी इसमें होगी,भले ही वे राजनीतिक हलकों अभी भी अपने आरक्षण की लड़ाई लड़ रही है। ई- गवर्नेंस और ई-कामर्स महिलाओं की सहभागिता के बिना संभव नहीं और इसी संभावना से उनकी नयी छवि और प्रतिभा निर्मित होगी।
हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि छवियों का प्रश्न मात्र कलात्मक जिज्ञासा न होकर सामाजिक सरोकारों का प्रश्न होता है। स्त्री -छवि का मीडिया के विभिन्न माध्यमों -प्रिंट,इलेक्ट्रॉनिक , सिनेमा और इंटरनेट पर बदलता और विकसित होता स्वरूप स्त्री संबंधी विमर्श की सामाजिक हलचल का ही परिणाम है भूले ही अपने आदमकद रूप में न सही पर थोड़े जोड़-घटाव के साथ हमें इस कथन से सहमत होना पडेगा। स्त्री छवियों के बदलते -उभरते स्वरूप की पड़ताल वस्तुत: उनके अधिकांश दायित्वों और आत्मभिव्यक्ति की गाथा का भी अध्ययन है।