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विगत दिनों मेरे मित्र पुष्कर पुष्प और विनीत ने द संडे इंडियन और खालसा कॉलेज द्वारा न्यू मीडिया-यूथ मीडिया:संभावनाएँ और चुनौतियाँ विषय पर आयोजित सेमीनार पर कठोर प्रहार किया है। विषय और व्याख्यान को लेकर कम वक्ताओं की सूची को लेकर ज्यादा और मुख्य आरोप नामों को ऊपर-नीचे छापने को लेकर था। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि न्यू मीडिया के पैरोकारों की बहस कहाँ पहुँच गयी है। न्यू मीडिया जहाँ सब कुछ स्माल होता है और जो हायार्की तोड़ने वाला माध्यम माना जाता है उसमें छोटे-बडे नाम का झगड़ा निमंत्रण पत्र में ऊपर नीचे छापने को लेकर चल रहा है। पुष्कर जी आपकी ईमानदारी संदिग्ध दीखती है। लगता है अजीत अंजुम से आपकी कोई निजी रंजिश है। तो इसे आप निजी स्तर पर ही निबटाएँ हम आम पाठकों का समय जाया न करें। वैसे आयोजक अनिल पांडेय ने अपनी तरह से इसका जवाब भी दिया और एक बहस भी खड़ी हुई है। विनीत जी आपसे भी एक गुजारिश है आपने अपने फेसबुकी प्रोफाइल और अन्य जगहों पर जो लाइव इंडिया और आज तक तमगा लटका रखा है उसे हटा लो। मठाधीशी का आरोप लगाते हुए मठाधीश बनने की चाह रंगे हुए सियार की कहानी ही बनकर रह जाता है। क्या बार्टर सिस्टम तब तक गलत है जब तक आप उसमें शामिल नहीं हो जाते और आपके शामिल होते ही वह लोकतांत्रिक हो जाता है । माफ काजिए।
इन सारी बहसों में जो नाम बार-बार छूट रहा है वह अशोक चक्रधर, बालेंदु शर्मा दाधीच आदि का है जो हिन्दी/देवनागरी को न्यू मीडिया के अनुरूप बनाने की कोशिश कर रहे हैं चुपचाप। नामवर सिंह, राजेंद्र यादव और राम बहादुर राय को गलियाने से आपको मंच पेश कर दिया जाएगा इस मुगालते से बाहर आ जाइए।
विगत दिनों मेरे मित्र पुष्कर पुष्प और विनीत ने द संडे इंडियन और खालसा कॉलेज द्वारा न्यू मीडिया-यूथ मीडिया:संभावनाएँ और चुनौतियाँ विषय पर आयोजित सेमीनार पर कठोर प्रहार किया है। विषय और व्याख्यान को लेकर कम वक्ताओं की सूची को लेकर ज्यादा और मुख्य आरोप नामों को ऊपर-नीचे छापने को लेकर था। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि न्यू मीडिया के पैरोकारों की बहस कहाँ पहुँच गयी है। न्यू मीडिया जहाँ सब कुछ स्माल होता है और जो हायार्की तोड़ने वाला माध्यम माना जाता है उसमें छोटे-बडे नाम का झगड़ा निमंत्रण पत्र में ऊपर नीचे छापने को लेकर चल रहा है। पुष्कर जी आपकी ईमानदारी संदिग्ध दीखती है। लगता है अजीत अंजुम से आपकी कोई निजी रंजिश है। तो इसे आप निजी स्तर पर ही निबटाएँ हम आम पाठकों का समय जाया न करें। वैसे आयोजक अनिल पांडेय ने अपनी तरह से इसका जवाब भी दिया और एक बहस भी खड़ी हुई है। विनीत जी आपसे भी एक गुजारिश है आपने अपने फेसबुकी प्रोफाइल और अन्य जगहों पर जो लाइव इंडिया और आज तक तमगा लटका रखा है उसे हटा लो। मठाधीशी का आरोप लगाते हुए मठाधीश बनने की चाह रंगे हुए सियार की कहानी ही बनकर रह जाता है। क्या बार्टर सिस्टम तब तक गलत है जब तक आप उसमें शामिल नहीं हो जाते और आपके शामिल होते ही वह लोकतांत्रिक हो जाता है । माफ काजिए।
इन सारी बहसों में जो नाम बार-बार छूट रहा है वह अशोक चक्रधर, बालेंदु शर्मा दाधीच आदि का है जो हिन्दी/देवनागरी को न्यू मीडिया के अनुरूप बनाने की कोशिश कर रहे हैं चुपचाप। नामवर सिंह, राजेंद्र यादव और राम बहादुर राय को गलियाने से आपको मंच पेश कर दिया जाएगा इस मुगालते से बाहर आ जाइए।