डॉ0 राम प्रकाश द्विवेदीएसोसिएट प्रोफेसरहिंदी विभाग (पत्रकारिता एवं जनसंचार पाठ्यक्रम)
भीमराव अंबेडकर कॉलेजदिल्ली विश्वविद्यालयe-mail:rampdwivedi@gmail.com
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भाषाओं का जीवन उनके तकनीकी अनुकूलन पर निर्भर करता है और भाषा के अभाव में साहित्य और संस्कृति का निर्माण असंभव है। दुनिया की विभिन्न भाषाएँ इस चुनौती से लगातार गुजरी हैं और जो इसमें पिछड़ गयीं वे लुप्तप्राय हैं। हिंदी भी इसप्रकार की चुनोती से गुजर चुकी है और देवकीनंदन खत्री ने अपने उपन्यासों के द्वारा जब वाचिक परंपरा को पाठकीय परंपरा में तब्दील किया तो हिंदी को जीवनदान देने जैसा कार्य ही उन्होंने किया था। आज जबकि कंप्यूटर और इंटरनेट जीवन के हर क्षेत्र के नियमन में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं तो हिंदी को निश्चित तौर पर इस तकनीक के साथ ताल-मेल बिठाना पड़ेगा। इस शोध लेख से हिंदी के इसी पहलू को केंद्रीय तौर पर रेंखांकित किया गया है जिससे हिंदी भाषा और साहित्य निर्बाध रूप से अपने पथ पर अग्रसर होते रहें।
भूमंडलीकरण ने विभिन्न समूहों के विस्थापन का कार्य किया है तो तकनीक द्वारा उनके आपसी संबंध को बचाने और संपर्क सूत्र जोड़े रखने का भी। हिंदी का आभासी संसार इसीलिए अचानक महत्वपूर्ण हो उठा है। हिंदी निरंतर इंटरनेट और आभासी संसार पर अपनी उपस्थिति कायम कर रही है। वैसे तो अनेक वेब साइट समग्र रूप में हिंदी में मौजूद हैं परंतु हिंदी का मौलिक लेखन, पत्रकारीय लेखन और साहित्य भी आभासी संसार में उपस्थित हो रहा है। पुराने साहित्य और जीर्णशीर्ण हिंदी सामग्री के डिजटलीकरण की प्रक्रिया भी जोरों पर हैं परंतु मल्टीमीडिया से जुड़ी सामग्री का अभाव देखा जा रहा है। हाँ, टेक्स्ट के स्तर पर कार्य संतोषजनक प्रतीत होता है। साहित्य के साथ-साथ हिंदी में ब्लॉग लेखन भी विपुल मात्रा में हो रहे हैं। ब्लॉगिंग के जरिए अनेक दबी हुई अवाजें मसलन स्त्री और दलित विमर्श संबंधी मसलों की जानकारी सुगमता से उपलब्ध हो रही है। एक प्रकार से ब्लॉग ने सर्वथा नए मंच का विकास कर दिया है जिससे हिंदी में अभिव्यक्ति की विविध संभावनाएँ और भी पुख्ता हो चली है। इस नए परिदृश्य के मद्देनजर आभासी संसार में हिंदी के दखल, दायित्व और दिशा की पहचान करनी होगी और समुचित सुझाव प्रस्तुत करेगा। निश्चय ही इससे भूमंडलीकरण के चलते प्रकट हुई चुनौतियों को समझने में मदद मिलेगी और हिंदी भाषा, साहित्य और हिंदी जाति को बदलते परिप्रेक्ष्य में सक्षम बनाए रखने में मदद मिलेगी।
सामाजिक परिवर्तन में भाषा और तकनीक दोनो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आज हमारे जीवन के प्रशासनिक कामकाज, शिक्षण,सूचना संबंधी पारदर्शिता,मनोरंजन का प्रसार और निजी अभिव्यक्ति की अनेक राहें इंटरनेट और कंप्यूटर ने खोली हैं। मीडिया, भाषा और समाज के बीच नए किस्म के संबंध पनप रहे हैं। हमारे जीवन की कठिनाइयों को सुलझाने में आभासी संसार सक्रिय हुआ है। परंतु आभासी संसार में हिंदी की उपस्थिति अभी भी संतोषजनक नहीं मानी जा सकती है। आम लागों तक इस तकनीक की पहुँच तथा हार्डवेयर और परिचालन संबंधी कठिनाइयों की निरंतरता अभी भी विद्यमान है। आम आदमी तक इस तकनीक की पहुँच और इसके प्रभावी इस्तेमाल पर रोशनी डालनी पड़ेगी साथ ही भाषा और डिजिटल बँटवारे की समस्या को सुलझाने में मदद भी करनी होगी। आज भाषा, तकनीक, मीडिया और समाज के जटिल होते रिश्तों की मुक्कमल पहचान कर उन्हें एक दिशा प्रदान करने का उद्यम करना जरूरी हो गया है ।
नयी तकनीक भाषा और साहित्य के नये रूप और नयी विधाओं का सृजन करती है। यदि हिंदी का आधुनिक काल गद्य विधाओं और पत्रकारिता का उद्भव काल था तो पिछली सदी के अंतिम दशक ने सूचनापरक, डिजिटल कंटेंट,पटकथा,फीचर,विज्ञापन, कॉपी लेखन जैसी नयी विधाओं का निर्माण किया है। इंटरनेट जैसी तकनीक के आगमन के चलते वेब पृष्ठ सामग्री का निर्माण और ई-लेखन तथा ब्लॉग के लिये लेखन जैसी पॉपुलर विधाएँ बन कर उभरी हैं। इन विधाओंकी शैली,कथन भंगिमा,अभिव्यक्तियाँ,भाषा,शब्द-संख्या और सरोकार बिल्कुल बदले हुए हैं। वेब पृष्ठों का निर्माण और ई-लेखन एक अलग प्रकार के कौशल की माँग करता है। यहीं से हिंदी भाषा के स्वरूप और उसकी साहित्यिक विधाओं में निर्णायक बदलाव आने लगते हैं। हिंदी खुद को वेब सामग्री के अनुरूप ढालने लगती है।आइए देखें की इस अनुकूलन के लिये हिंदी को किन चुनौतियों से गुजरना पड़ा।
इंटरनेट पर लिखी जा रही हिंदी को मैं वेब-हिंदी के रूप में संबोधित कर रहा हूँ। इस हिंदी के लिये न केवल अलग किस्म की सामग्री के निर्माण की आवश्यकता होती है वरन इसके लेखन के लिये जो जरूरी औजार हैं वे कागज-कलम न होकर की-बोर्ड और कंप्यूटर हैं। इसी प्रकार इनके पठन के लिये हमारी इंद्रियों से ही काम नहीं चलता अपितु इलेक्ट्रानिक उपकरणों की भी जरूरत पड़ती है।इस तरह वेब-हिंदी एक नयी शैली और नयी विधा है जिसका उपयोग साहित्य, पत्रकारिता,सूचना,ज्ञान और प्रशासन सभी क्षेत्रों में हो रहा है।वेब-हिंदी इस अर्थ में हमारी समकालीन जरूरत भी है और भविष्य की पथ-प्रदर्शक भी। इसके महत्व को कतई नकारा नहीं जा सकता।वेब-हिंदी के स्वरूप में निर्णायक बदलाव तब आया जब यूनिकोड का विकास हुआ। इसके पहले जब फाँट के जरिये भाषाई लेखन होता तो अनेक समास्याएँ हमारे समक्ष आती थीं।कारण था कि फाँट की संख्या सैकड़ों में है और वे एक दूसरे के साथ संवाद की स्थिति में नहीं होते हैं। अर्थात, एक ही भाषा के बीच भी लेखन की तारतम्यता नहीं थी। यूनीकोड ने न केवल इस समस्या से निजात दिलवाई वरन हिंदी जैसी अनेक भाषाओं के निर्बाध संप्रेषण को इंटरनेट के जरिये सुनिश्चित कर दिया।
वेब-पटल, मुद्रण और स्क्रीन के साथ एक महत्त्वपूर्ण जगह बनती जा रही है जहाँ प्रभावशाली अभिव्यक्ति का अवसर विकसित हो रहा है।मल्टीमीडिया के समायोजन के चलते वेब माध्यम ने अपने पूर्ववर्ती माध्यमों का सक्षम विकल्प प्रस्तुत किया है। प्रिंट,रेडियो,टेलीविजन आदि के समायोजन से वेब-मीडिया ने अपनी मुक्म्मल पहचान बनाई है।
सूचना और संदेश प्राप्ति की जितनी आजादी वेब मीडिया ने प्रदान की है उतनी अन्य माध्यमों द्वारा संभव न थी।एक विकेंद्रित माध्यम होने के चलते सूचना और संदेश की पहुँच बहुतायत लोगों तक वेब मीडिया के जरिये ही सुनिश्चित हुई। इस अर्थ में वेब-हिंदी एक नव जनतांत्रिक अभिव्यक्ति की विधा बन गयी है। वह आभासी संसार में नई रोशनी से दीप्तमान हो रही है।
आभासी संसार से अभिप्राय उस संसार से है जो हमारी सूचना, संवाद और अभिव्यक्ति संबंधी जरूरतों को पूरा करता है। ज्ञानमूलक प्रक्रिया के एक बड़े सहायक के रूप में भी आभासी संसार की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। दुनिया की भाषाओं के लिए जरूरी होता जा रहा है कि वे अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए आभासी संसार पर भी अपनी पहुँच सुनिश्चित करें। हिंदी को भी ऐसा करना अनिवार्य है अन्यथा वह दुनिया की अन्य भाषाओं से पीछे रह जाएगी। विगत वर्षों खासतौर पर नब्बे के दशक के बाद हिंदी भाषी आभासी संसार एक निर्णायक भूमिका में आ खड़ा हुआ है। । एक अन्य परिघटना जिसमें विभिन्न भाषा-भाषी समूह के लोग प्रवास की प्रक्रिया में शामिल हुए हैं,उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए तथा उन्हें अपनी संस्कृति और भाषा से संवाद बनाए रखने के लिए आभासी संसार का महत्व और भी बढ़ गया है। हिंदी का आधुनिक रूप कई पड़ावों से होता हुआ अपने वर्तमान स्वरूप तक विकसित हुआ। संस्कृत और अपभ्रंश की राह तय करती हुई वह पुरानी हिंदी के रूप में सन् 1000 ई0 के आसपास अपना आरंभिक स्वरूप अख्तियार करती है।मौखिक परंपराओं से गुजरती हुई हिंदी विभिन्न बोलियों में प्रस्फुटित होती है।लेखन की तकनीक ने इसे अलग ही नजरिये से सृजित किया।आधुनिक काल में जब छापाखाना आया तब हिंदी के गद्य रूपों का गठन प्रारंभ हुआ। हिंदी के काव्य से गद्य में रूपांतरण की प्रक्रिया मुद्रण तकनीक के बिना संभव न थी।हमारे समकालीन समाज में जीवन की चुनौतियों को धारण करने की क्षमता गद्य-रूपों में अधिक है। मुद्रण की तकनीक न केवल नयी साहित्यिक विधाओं का सृजन करती है अपितु वह जीवन की अभिव्यक्ति का भी महान उपक्रम बन जाती है। भाव की भाषा को विचार की भाषा बनाने में मुद्रण तकनीक की महती भूमिका रही है। तकनीक का आगमन भाषा के भावबोध को बदल कर रख देता है और भाषा की सर्वथा नयी शैलियों का आविष्कार इनके जरिये होता है। वे भाषा-भाषी समूह के लिए अभिव्यक्ति के नए आलोक-वृत्त रचती हैं। ज्ञान के यातायात के रूप में भी तकनीक का जबर्दस्त इस्तेमाल होता है। जब हमारे यहाँ मुद्रण की तकनीक का प्रयोग बढ़ा तो पश्चिमी जीवन-दर्शन और ज्ञान की परंपराओं का आदान-प्रदान सुगमता से होने लगा और वे विश्व के हर कोने में पहुँचने लगीं। अंग्रेजों को अपना शासन स्थापित करने में मुद्रण की तकनीक से मिली सहायता की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आम आदमी का जीवन तकनीक से बहुविध प्रभावित होता है और अभिव्यक्ति के नए संदर्भ प्रकट होने लगते हैं।
हिंदी में अभिव्यक्ति के नए माध्यमों का विकास आभासी संसार के जरिए हुआ है। आज डिजिटल मीडिया में हिन्दी विज्ञापनों की प्रचुरता देखने को मिलती है। कारपोरेट ब्लॉगिंग ने व्यावसायिक गतिविधियों के लिए एक नयी जगह पैदा की है। हिंदी में विपणन और व्यापार की नई संभावनाओं का सृजन इंटरनेट और आभासी संसार के द्वारा निरंतर किया जा रहा है। ई-कामर्स ने हिंदी भाषी क्षेत्र में अपनी मजबूती कायम करनी शुरू कर दी है। व्यावसायिक गतिविधियों को नई ऊर्जा और गति देने में आभासी संसार की सघन भूमिका देखी जा सकती है।आन लाइन विज्ञापनों के जरिए व्यावसायिक प्रोन्नति और ग्राहकों तक पहुँच को सुनिश्चित करने का कार्य बड़े ही प्रभावी ढंग से किया जा रहा है। आज अनेक ऐसी वेबसाइटें हैं जिन पर हिंदी में विज्ञापन दिए जा रहें हैं और इससे दोहरा लाभ हो रहा है। एक ओर विज्ञापनदाता कंपनी को किफायती दर पर आम लोगों तक पहुँचने में सुभीता हो रहा है तो दूसरी ओर संचारकों को अपने ब्लॉग तथा वेबसाइट संचालन में सुविधा हो रही है। इस प्रकार आभासी संसार में व्यावसायिकता और अभिव्यक्ति एक दूसरे के पूरक बन कर उभर रहे हैं।
प्रशासनिक नियोजन में भाषा की अभूतपूर्व भूमिका होती है। हिंदी भारत गणराज्य की राजभाषा होने के चलते प्रशासनिक कार्यो में विपुलता से प्रयोग में लायी जाती है। आभासी संसार ने प्रशासनिक कामकाज को गति प्रदान की है। यह दो स्तरों पर दिखायी पड़ता है। एक तो प्रत्यक्ष उपस्थिति के बंधन से मुक्ति और दूसरे पारदर्शिता का सुनिश्चय। इस क्षेत्र में भारतीय रेल एक दृष्टांत बन चुकी है। लेकिन प्रशासनिक नियमन के अनेक नए आयाम विकसित होने बाकी है। इंटरनेट पर हिंदी की प्रभावशाली उपस्थिति से आम लोगों को अपने अधिकारों की मुक्कमल जानकारी मिल सकेगी और वे अपने हक पाने के लिए सक्षम तरीके से उठ खड़े होंगे। सरकार द्वारा चलायी जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी आम आदमी तक पुख्ता तरीके से पहुँचाने में आभासी संसार की भूमिका दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। परंतु इसके लिए जरूरी है कि वह आम जन की भाषा में भी हो। आभासी जगत में हिंदी की उपस्थिति इस अर्थ में कितनी हो पायी है इसे भी देखना अनिवार्य है।
संप्रेषण का सवाल किसी माध्यम पर भाषायी उपस्थिति भर से नहीं होता अपितु यह भी देखना जरूरी है कि भाषा का स्वरूप कैसा है। अधिकांश हिंदी पोर्टलों की समस्या यह रही है कि वे आम बोलचाल के शब्दों की उपेक्षा कर तत्समधर्मी शब्दों का प्रयोग करते हैं। इससे हिंदी अपनी चमक खो देती है और वह इंटरनेट माध्यम के अनुकूल भी नहीं बन पाती है। प्रशासनिक हिंदी का अब तक का स्व रूप काफी अचंभित करने वाला है। वह जटिल वर्णमाला का पर्याय बना हुआ है। इंटरनेट पर इस सरल और सहज बनाए जाने की जरूरत है। इसी प्रकार देश के विभिन्न कानूनों की जानकारी तथा संवैधानिक प्रावधानों की सूचना आम लागों तक पहुँचाकर हम उनको सशक्त बना सकते हैं। भूमि अभिलेखों के निर्माण में आभासी संसार और हिंदी की युगांतकारी भूमिका हो सकती है। बैंकिंग और शिक्षा के क्षेत्र ऐसे अन्य क्षेत्र हैं जहाँ वेब-हिंदी का व्यापक प्रचलन समाज में आमूल परिवर्तन घटित करने में सक्षम हो सकता है।यदि देखे तो भारत में किसानों का भी एक बड़ा तबका है जो रोजमर्रा के जीवन में कृषि संबंधी मामूली सूचनाओं से वंचित है । हिंदी के जरिए उस तक ये सूचनाएँ आसानी से पहुँचायी जा सकती हैं। इसीप्रकार गैर संगठित क्षेत्रों में मजदूरों की बड़ी संख्या कार्यरत है और उसे भी अपने हक-हकूक की जानकारी नहीं है। वेब हिंदी के द्वारा यह काम सरलता से किया जा सकता है। सरकार और प्रशासन अलग- थलग पड़े सामाजिक समूहों को मुख्य धारा में लाने का उद्यम भी वेब हिंदी के जरिए आसानी से कर सकते हैं। गरीबी और अज्ञान भारत के दो बड़े विषाणु हैं।रोजगार के अवसर और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी के अभाव में हमारे बहुत सारे युवजन यों ही भटकते रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अभाव और भी अधिक जटिल रूप में हमारे सामने आता है। भाषा ऐसे क्षेत्रों में एक बड़ा सवाल बनकर खड़ी हो जाती है। आभासी संसार में इसीलिए हिंदी के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। विभिन्ऩ हिंदी भाषी राज्यों में प्रशासनिक कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए सरकारों ने अपने पोर्टल निर्मित किए हैं और उनके जरिए आम जनता से जुड़ने का उपक्रम किया है। जनता की संवादशीलता की पहचान करने के लिए पोर्टल पर आ रही प्रतिक्रियाओं और प्रतिपुष्टियों की जाँच जरूरी है, जिससे उनमें (पोर्टल)सुधार किया जा सके। यहाँ यह मूल्यांकन भी जरूरी हो जाता है कि उनकी भाषाई संरचना कैसी है और वे सूचनाओं को कितने प्रभावी ढंग से संप्रेषित कर पा रहे हैं।
साहित्यिक हिंदी भी निरंतर इंटरनेट पर आरूढ़ हो रही है। वैसे तो अनेक वेब साइट समग्र रूप में हिंदी में उपलब्ध है परंतु हिंदी का मौलिक लेखन और साहित्य भी आभासी संसार में उपस्थित हो रहा है। पुराने साहित्य के डिजटलीकरण की प्रक्रिया भी जोरों पर है। हालाकि इनमें अभी भी दृश्य-श्रव्य सामग्री का अभाव देखा जा रहा है पर टेक्स्ट के स्तर पर कार्य संतोषजनक प्रतीत होता है।इसमें कविताओं और गद्य की समस्तर विधाएँ शामिल हैं।विकीपीडिया,कविताकोश,गद्यकोश और वेबदुनिया जैसे पोर्टल हिंदी साहित्य की प्रचुर सामगी को इंटरनेट पर लाने की दिशा में सक्रिय हैं। साहित्य के साथ-साथ हिंदी ब्लॉग भी विपुल मात्रा में हिंदी की सामग्री परोस रहे हैं। यहाँ गंभीर और मौजू दोनों प्रकार का लेखन हो रहा है। हिंदी भाषा में अभिनव प्रयोग भी यहीं देखने को मिल रहे हैं। सूचनाओं का एक बड़ा व्यापक संसार यहाँ देखने को मिलता है।विभिन्न क्षेत्रों से ब्लॉगर अपने अनुभव, सूचनाएँ और दृश्य ब्लॉग पर उपलब्ध करवाते हैं जिससे हमें हिंदी में एक बहुआयामी जानकारी उपलब्ध हो रही है। हिंदी ब्लॉगर केवल भारत की सीमा तक ही महदूद नहीं हैं वरन् भारत के बाहर भी उनकी एक अच्छी संख्या है और वे सक्रिय भी हैं। भूमंडलीकरण ने विभिन्न समूहों के विस्थापन का कार्य किया है तो तकनीक द्वारा उनके आपसी संबंध को बचाने और संपर्क सूत्र जोड़े रखने का भी। ब्लॉगिंग के जरिए यह बड़ी सुगमता से संभव हो पा रहा है। अनेक दबी हुई अवाजें मसलन स्त्री और दलित विमर्श संबंधी मसले भी ब्लॉग पर सुगमता से उपलब्ध हो रहे हैं। एक प्रकार से ब्लॉग ने सर्वथा नए मंच का विकास कर दिया है जिससे विविध विमर्शों की संभावना और भी पुख्ता हो चली है।
इंटरनेट पर मल्टीनमीडिया से संबंधित हिंदी की विपुल सामग्री उपलब्ध है। इसमें पॉडकास्ट , चित्र और दृश्य-श्रव्य सामग्री की विपुलता देखी जा सकती है। उदाहरण के लिए यू-ट्यूब पर अनेक छवियाँ, वीडियो आदि अपनी आहट दर्ज कर रहे हैं। इनमें मुख्यधारा की सामग्री तो है ही बहुतायत में वह सामग्री भी है जो लोकजीवन से संकलित की गयी है। अनेक सामग्री ऐसी भी है जो निजी स्रोतों से आयी हुई है। कुल मिलाकर हिंदी में ज्ञान,सूचना और मनोरंजन संबंधी सामग्री का आगम इंटरनेट पर बढ़ता जा रहा है। क्षेत्रीय भाषाएँ जो संकुचित भूगोल में सिमटी हुई थीं आभासी संसार में आकर अपना विस्तार कर रही हैं। हरियाणवी, ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, छत्तीसगढ़ी, कुमाउंनी, गढ़वाली, राजस्थानी आदि का साहित्य,संगीत और दृश्य इंटरनेट के द्वारा अपनी सीमाओं का भंजन कर रहा है। इसप्रकार हिंदी की बोलियों और उपभाषाओं का पुनर्उद्धार हो रहा है। वैसे तो चित्रों की कोई भाषा नहीं होती परंतु अपने कैप्शन आदि से वे भाषाई आधार पा जाते हैं।फ्लिकर और पिकासा वेब पर चित्रों को देखा जा सकता है जो हिंदी जाति,भाषा,संस्कृति और साहित्य से जुड़े हैं।
आभासी संसार में हिंदी की उपस्थिति हिंदी भाषी समूह की जरूरतों,आकांक्षा और अभिव्यक्ति का परिणाम है। हिंदी के प्रवासी संसार से जुड़े रहने और उन्हें जोड़े रखने के लिए जरूरी है कि वह आभासी संसार में अपनी प्रभावशाली, मार्मिक और सार्थक दस्तक दे। प्रशासनिक कामकाज और जनकल्याणकारी योजनाओं को आमजन तक पहुँचाने के लिए हिंदी का आभासी संसार में आना लगभग अनिवार्य है। साहित्य संचय और उसके प्रसरण में भी हिंदी का आभासी संसार अपनी भूमिका का निर्वाह सुगमता से कर सकता है। हिंदी के मनोरंजन जगत को समृद्ध बनाने में इस आभासी संसार की सुदृढ़ भूमिका हो सकती है।इन विभिन्न आयामों और इसकी चुनौतियों को संबोधित किया जाना चाहिए।
हिंदी मीडिया ने आजादी के दौरान अपनी क्रांतिकारी और सार्थक भूमिका का निर्वाह किया था। आज का हिंदी मीडिया पर्याप्त विकसित हो चुका है परंतु पूँजी और सत्ता का दबाव भी उस पर उतना ही बढ़ा है। सायबर पत्र-पत्रिकाओं ने इस दबाव को कम करने और एक वैकल्पिक मीडिया की स्थापना करने में अपनी महती भूमिका निभायी है। मीडिया का वास्तविक कार्य जनसरोकारों को उभारना और सरकार को उसके प्रति जवाबदेह बनाना है। आभासी संसार का हिंदी मीडिया मुख्यधारा के मीडिया की तुलना में इस कार्य को किस हद तक अंजाम दे पाने में सक्षम हो सका है और इसे कैसे अधिक सुदृढ़ बनाया जा सकता है, इस पर अभी ठीक से विचार नहीं हो सका है।
भाषा का आधार उसका साहित्य है जो भाषाई समूह की सांस्कृतिक विरासत और जीवन मूल्यों को संजोता है और उनका विकास और परिष्कार भी करता चलता है।साहित्य को बचाए रखने के लिए जरूरी है कि भाषा सर्वथा नई तकनीक पर आरूढ़ होती चले। मौखिक परंपरा के बाद लेखन और फिर मुद्रण तकनीक को अपनाते हुए ही हिंदी अपना महत्व,प्रभाव और पहुँच बनाए रख सकी है। अब बारी सायबर माध्यम पर सवार होने की है। आज रोज नई वेब साइट्स और ब्लॉग हिंदी में बन रहे हैं, परंतु उनका प्रभाव और प्रसार कितना है यह आकलन का विषय है। अंग्रेजी हुकूमत ने जब कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना कर हिंदी की पाठ्यपुस्तकों का निर्माण कराया तो उसके पीछे उनका मंतव्य हिंदी की सेवा न होकर जनता पर उनकी भाषा के जरिए प्रभावी ढंग से शासन की क्षमता हासिल करना था। आज एक प्रभावी भाषा के रूप में हिंदी का स्वरूप हमारे समक्ष है। नया मीडिया इसे नए आकार में गढ़ रहा है।माध्यम और भाषा एक दूसरे के पूरक होने बावजूद एक दूसरे को बदलते है। नया मीडिया और हिंदी इसी अन्योन्याश्रिता के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
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