(मुंशी प्रेमचंद की कहानी
पर आधारित एवं सत्यजीत राय की फिल्म से प्रेरित नाट्य-प्रस्तुति)
{तोक्यो विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय हिन्दी द्वितीय
वर्ष के छात्रों की प्रस्तुति 2015}
मार्गदर्शन
प्रो0 ताकेशी फुजिइ
प्रो0 योशिफुमि मिज़ुनो
परामर्श
प्रो0 केइको शिराइ
प्रो0 क्योसुके अदाची
लेखन व परिकल्पना
राम प्रकाश द्विवेदी
चरित्र
वाजिदअलीशाह-गेन यामागुचि
मिर्जा-तकायुकि हारा
मीर-कजुकी हदानो
नौकरानी-रूना फुरुसे
मि0 बेगम- काना
शिमाउचि उर्फ छोटी काना
मी0
बेगम/नृत्य निर्देशन - मिनामी काशिमा उर्फ काशी
सैनिक/सिपाही
–केइसुके किकुचि
- काना कोमात्सुबारा उर्फ मझली काना
स्लीमन-केइ नोबुओका
भांजा-मिओ
तेरूया
डलहौजी-रयो फुवा
बुर्का
बेचनेवाली- मिनामी काशिमा उर्फ काशी
लडका-सोनोको हरादा
वाजिदअली की माँ-
प्रकाश
ध्वनि एवं संगीत
वेश-भूषा
माको
सवादा
काना
ओमोरी उर्फ बडी काना
जनसंपर्क
नकागावा
हाना
नाट्य सामग्री
ताकाशी तातेउचि / नकागावा हना
तकाहिरो
इनोमाता
यू
वातानाबे
शुन्ता यामाओका
यूता योकोसे
हितोमी फुकुदा
शिन्जी
यमामोतो
अंक-एक
दृश्य-१
(
पर्दे
पर
1850 का
लखनऊ
)
समूह
:
कथक
नाचती लड़की के साथ
LUCKNOW
CITY SONG.wmv (shankar pandey) 2 मिनट
०००००००००००००
दृश्य
२
(
पर्दे
पर
1850 का
लखनऊ
)
[सड़कों पर लोग
लोग राग-रंग में मस्त
घूम रहे हैं। अपना समय व्यतीत करने के लिए वे तरह-तरह के कामों
में लगे हुए हैं। कोई तीतर
लड़ा
रहा है तो कहीं भेड़ों-बकरों की लड़ाइयाँ चल रही हैं।एक जगह पर बकरों
की लड़ाई का मजा लेते लोग]
एक
व्यक्ति
(अपने
बकरे को)-टटटटटटट चल चचच
चल बेटा चल,
तोड़
गर्दन-फोड़ खोपड़ी
दूसरा
व्यक्ति
(अपने
बकरे से)-अरेरेरेरे मार
मार तू क्या देखता है। चढ़ जा छाती पर। पटक जमीन पर।
(दोनों बकरे तेजी
से लड़ने लगते हैं। लोग तालियाँ बजाते हैं।सज्जाद मिर्जा और मीर रोशन
अली रास्ते से गुजर रहे हैं)
मिर्जा: देखो इन जाहिलों
को ये घटिया किस्म के खेलों में अपना समय जाया कर रहे हैं।
मीर: अरे मिर्जा साहब
इनके पास इतना दिमाग कहाँ जो हमारी आप की तरह शतरंज खेल सकें।
मिर्जा: चलें जल्द चलें।
आ ज देर हो रही है।
मीर: रफ्तार बढ़ाएँ
हुजूर। अभी से बूढ़े हो चले क्या?
मिर्जा: बूढ़े होंगे तुम।
तुम्हारा बाप। तुम्हारी———
मीर: अमा मियाँ नाराज
क्यो हो रहे हो। इत्ती सी बात पर। मैंने तो बस ऐ से ही कह दिया।
मिर्जा: ऐसे बेहूदे मजाक
मुझे पसंद नहीं हैं।
मीर: चलें न। आप जवान
ठहरे। सोलह साल के छोकरे। अब खुश।
(मिर्जा साहब की
हवेली आ जाती है।हवेली में बेगम अपने नौकरानी -चाकरों के साथ
सज-सँवर रही हैं।
मिर्जा के आते ही एक
नौकरानी
सामने
हाजिर हो जाता है)
मिर्जा: आ इए तशरीफ लाइए।
क्या पिएँगे
?
मीर: पीने को तो बस
हुक्का चाहिेए।
मिर्जा (नौकरानी से): हमारे हुक्के तैयार करके
ले आइए और बेगम को बता दीजिए कि हम आ गए है।
नौकरानी
:
जी
हुजूर
(नौकरानी अंदर जाकर हुक्के भरते हुए, बेगम से)
नौकरानी
:
बेगम
साहिबा नवाब साहब आ गए हैं। आपको इत्तिला करने को कहा है। साथ में जनाब मीर अली भी
आए हैं।
बेगम: अरे तो मैं क्या
करूँ। उनके आने न आने से मेरा क्या मतलब। और वो मुआ मीर अली यहीं पड़ा रहे। उसके घर में क्या
तमाशा
हो
रहा है वो न देखे।
नौकरानी
:
जी
बेगम साहिबा। मैं तो बस बता रहा था।
बेगम: मुझे क्यों बता
रहा है। जाकर उन्हें खबर कर कि मेरे सर में दर्द हो रहा है।अन्दर आ जाएँ।
नौकरानी
:
जी
(नौकरानी हुक्के लेकर बैढक में आ जाता है। जहाँ शतरंज कि बिसात
पर मिर्जा और मीर दोनों की निगाहें जमीं हुई हैं।)
नौकरानी
(मिर्जा से): हुजूर बेगम साहिबा के सर में दर्द है।
मिर्जा (अनमने से): अच्छा। तो कोई
दवा वगैरह ले लें।
नौकरानी
:
जी
(नौकरानी अंदर आकर, बेगम से)
नौकरानी
:
बेगम
साहिबा नवाब साहब कह रहे हैं कि सर में दर्द है तो कोई दवा ले लें।
बेगम: अरे जाकर कह कि ‘सरररर’ में दर्द है।
सरररररर में। अंदर आ जाएँ।
नौकरानी
:
जी
(नौकरानी फिर बाहर आता है, दोनों का अपनी
चालों पर ध्यान केंद्रित है, वह सहमा हुआ खड़ा रहता है)
नवाब (मीर से): जनाब, इस बार आ प अपने
बादशाह को न बचा पाएँगे।
मीर: पहले आप अपनी
बेगम बचाइए।
नौकरानी
(टोकते हुए): जी हुजूर बेगम
साहिबा के सरररररर में दर्द है। आ पको तुरंत अंदर बुलाया है।
नवाब: कहाँ दर्द है?
नौकरानी
:
सररररररर
में,
हुजूर।
मीर(हँसते हुए): नवाब साहब ये
सरररररर क्या है। कहाँ होता है हमारे बदन में?
मिर्जा: तुम जाओ, हम अभी आते हैं।
और सुनों जाकर कह दो अभी हम मशरूफ हैं, फुर्सत में होते
ही खुद आ जाएँगे। बेवजह संदेशे
न
भेजें।
मीर (ठहाके मार कर
हँसते हुए):
सरररररर
में दर्द।
मिर्जा (गुस्से से): आप क्यों बेहूदों
की तरह हँस रहे हैं? क्या मजा आ रहा है आपको इसमें।
मीर (गंभीर होते हुए): आप गुस्सा क्यों
होते हैं नवाब साहब। अपना घोड़ा बचाइए।
(दोनों की निगाहें
फिर बिसात पर जम जाती हैं)
नौकरानी
(अंदर आकर बेगम से): बेगम साहिबा मैंने
कह दिया कि आपके सरररर में दर्द है वे फिर भी नहीं आय रहे। कह रहे कि
जाकर
कह
दो कि बेवजह परेशान न करें।
मि०
बेगम:
मैं, मैं उन्हें बेवजह
परेशान कर रही हूँ। तू रुक, मैं इन दोनों को ठीक किए देती हूँ।
(मि०बेगम साहिबा
एक झाड़ू लेकर बाहर निकलती हैं, सामने दोनों शतरंज में मशगूल हैं)
मीर: मिर्जा साहब अपना
हाथी बचाइए। हाथी ~~~~~(long intonation)।
मिर्जा (चाल चलते हुए): जनाब मेरा हाथी
तो बच गया,
अपनी
बेगम पर गौर फरमाएँ।
(मि० बेगम झाड़ू
से बिसात तितर-बितर करते हुए
और दोनों को झाड़ू से पीटते हुए)
मि०
बेगम:
मरदूदों
कहीं के हम बेगमों को अब तुम्हारी कोई जरूरत नहीं। हम खुद ही बच जाएँगी। जाओ भागो यहाँ
से। निठल्ले कहीं
के।
(मिर्जा और मीर
बचने की कोशिश करते हुए स्टेज से अंदर भागते हैं)
[
मंच
पर अंधेरा]
दृश्य
३
(वाजिद अली शाह
अपने दरबार में बैठे हैं। चारों ओर नौकरानी -चाकर हैं।दरबार
में कुछेक कीमती सजावटें हैं। दरबार में हल्का संगीत
बज
रहा
है)
वाजिद
अली
(एक
गजल-सी गुनगुनाते
हुए):
[some Ghazal] वाह
क्या ग़ज़ल बनी है। वाह-वाह-वाह।(अपने एक सैनिक
को पास
बुलाकर) बस अल्लाह अपना
करम रखे और मैं यूँ ही ताउम्र ग़ज़ले करता
रहूँ।
सैनिक: हुजूर का इकबाल
बुलंद रहे। खुदा ने चाहा तो एैसा ही होगा।
वाजिद
अली:
ठीक
फरमाया सैनिक। अब अंग्रेजी हुकूमत के हिफाजत में अवध को कोई
खतरा नहीं। कहो सैनिक, हमारे मुल्क की
रियाया
खुशहाल तो है न।
सैनिक: हुजूर के होते
रियाया को भला क्या कमी। सब खुशहाल है हुजूर। आ समान में पतंगों के परचम लहरा रहे हैं
हुजूर। जमीन पर
तीतर
और बटेर लड़ रहे है। गली-गली बकरे-भेड़ों की मुठभेड़ें
हो रही है।सैनिक अपनी आरामगाहों में आराम फरमा रहे हैं-जंग तो है
नहीं हुजूर, इसलिए हमेशा जश्न
में डूबे रहते हैं। जनता के पास न कोई रोजगार है हुजूर न उद्यम।
वाजिद
अली
(थोड़ा
गुस्से में):क्या मतलब सैनिक? हमारी जनता बेरोजगार
है?
तुम
क्या कहना चाहते हो?
सैनिक: गुस्ताखी माफ
हुजूर। जनता काम ही नहीं करना चाहती यानी उसे काम करने की जरूरत ही नहीं है हुजूर।सब
हुक्के गुड़गुड़ाने
में
मगन हैं हुजूर।
वाजिद
अली:
क्या
कहते हो सैनिक?
सैनिक: यही हुजूर कि
जैसा राजा वैसी परजा।
वाजिद
अली(गुस्से में): मेरा मजाक उड़ाते
हो सैनिक!
छींटा-कशी करते हो ?
सैनिक: गुस्ताखी माफ
हुजूर। मेरी एैसी जुर्रत कहाँ। मैं तो बस इतना फरमा रहा था कि हुजूर भी खुश है, जनता भी खुश है
और तो और
हुकुमत-ए-बरतानिया भी खुश
है हुजूर। क्या मैं कुछ गलत कह रहा था हुजूर?
वाजिद
अली:
वाह
सैनिक वाह!
मेरी
सल्तनत में सब खुश हैं। क्या खूब फरमाया तुमने। क्या खूब। वाह मजा आ गया। जश्न शुरू
हो।
(स्टेज पर छोटा
नृत्य-दृश्य[इन्हीं
लोगों ने ले लीन्हा], जिसमें सब नाचने
लगते हैं,सैनिक बाद में
शराब की बोतल के साथ )
सैनिक :मजा आ रहा है
लाले। अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा ।
[मंच पर अंधेरा]
दृश्य
४
(एक सुबह, रेजीडेंट कमिश्नर
का कार्यालय,
एक
सिपाही वहाँ मौजूद है। दूर से अजान की आवाज आ ती है।)
स्लीमन(सिपाही से): इट्स वेरी नाइस
प्लेस।द किंग ऑ व औ उद इस वेरी फैंटास्टिक पर्सन। अ पोएट, अ ड्रामाटिस्ट, अ
लिरिसिस्ट, अ डांसर एंड सो
ऑन । हहहहहह।बट नॉट अ गुड एडमिनिस्ट्रेटर। हहहहहहहहह।सिपोय नॉट अ गुड एडमिनिस्ट्रेटर।आय
एम
गोइंग टू
सबमिट
अ रिपोर्ट अबाउट इट टू गवर्नर-जनरल।
सिपाही: यस सर। आय एग्री
विद यू। एंड सर,
आ
ई हैव अरेंज्ड अ गुड उर्दू टीचर फॉर यू।
स्लीमन: वॉव, वेरी गुड। व्हेन
कैन ऑय मीट मॉय टीचर?
सिपाही: सर, शी इज जस्ट आउट-साइड, वेटिंग।
स्लीमन: ओह प्लीज कॉल
हर।
(अध्यापिका अंदर
आती है।वह देखने में सुंदर है। हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी की
विदुषी है
)
रोशनी: गुड मॉर्निंग
सर!
माय
सेल्फ रोशनी,
रोशनी
अमन।
स्लीमन: गुड मॉर्निंग।नाइस
टू मीट यू। बट डोंट कॉल मी ‘सर’। यू आर माय टीचर।
रोशनी: इट्स ऑलराइट।
देन,
व्हॉट
शुड आय कॉल यू।
स्लीमन: स्लीमन। जस्ट
स्लीमन।
रोशनी: ऑल राइट। ऑलराइट।
व्हेन वी कैन बिगिन?
स्लीमन: राइट नाव।
रोशनी: ओॆॆॆॆॆके
स्लीमन (सिपाही से):सिपोय।आय अम बिजि
नाउ।
सिपाही: या, आय कैन सी सर! (बाहर जाता है।)
(मंच पर कुछ देर
के लिए प्रकाश जलता-बुझता रहता है। उर्दू / हिन्दी के कई
शब्द स्क्रीन पर उभरते रहते हैं। जो वाक्यों में बदल जाते
हैं।)
रोशनी: नाउ यू कैन स्पीक
उर्दू परफेक्टली।
स्लीमन:सच
रोशनी:मुच
स्लीमन (सिपाही को आवाज
देते हुए):
सिपाही
चाई लेखर आहो
सिपाही: जी जनाब
(सिपाही चाय रख
रहा है,
इसी
बीच)
स्लीमन: आपके नाम का क्या
मतलब है?
रोशनी: रोशनी मीन्स लाइट
एंड अमीन मीन्स पीस
स्लीमन: बउत अच्छा। बउत
अच्छा!!!
(सिपाही चाय के
कप-प्लेट को खड़खड़ाता
है और दोनों को देखता रहता है, चाय बाहर गिरने लगती है)
स्लीमन(आश्चर्य से): टुमको किया हुआ
सिपाही?
सिपाही: कुछ नहीं जनाब
वो रोशनी—————
अ-अअ—रोशनी——नहीं नहीं अंधेरा ————जनाब ।जनाब यहाँ
अंधेरा
था
तो चाय गिर गई।
स्लीमन: कोई बाट नहीं ! कोई बाट नहीं।
बस टोड़ी-टोड़ी ही पिएँगे।
सिपाही:जी अच्छा।
(सिपाही चाय देकर
बाहर आ जाता है)
सिपाही (आत्मगत): वाह-वा-वा-वा अल्लाह खैर
करे। रोशनी में स्लीमन साहब की आ ँखें चौंधिया गई हैं।
(अंदर, स्लीमन साहब और
रोशनी चाय खत्म कर हाथ मिलाते हुए)
रोशनी: चाय के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।
कल फिर मिलेंगे।
स्लीमन: आपका भी बहुट-बहुट शुक्रिया।
जी कल मिलेंगे
(रोशनी जा रही
है। स्लीमन अकेले)
स्लीमन: रोशनी मीन्स लाइट।
अमन मीन्स पीस। ओह रोशनी यू आर माय लाइट, यू आर माय पीस। यू आर
माय लाइट। यू आर माय
लाइफ, यू आर माय पीस।
[मंच पर धीरे-धीरे अंधेरा होता
है]
अंक २
दृश्य
१
(मिर्जा की हवेली
में मीर और मिर्जा शतरंज के मोहरे ढूंढ रहे हैं)
मिर्जा: कमबख्त यहीं तो
रख कर गए थे मोहरे।
मीर: तो कहाँ उड़ गए।
मिर्जा: अमा यहीं कहीं
होंगे।
(दोनों बहुत ढूढ़ते
है पर मोहरे नही मिलते, थक कर बैठते हुए, पास में सब्जियों
की टोकरी रखी है)
मीर: अब क्या करें, मियाँ।
(तभी मिर्जा का
ध्यान सब्जी की टोकरी पर जाता है)
मिर्जा: अरे वा```````ह! वाह! वा! वा! वा! काम बन गया । (सब्जी की टोकरी
से टमाटर,
प्याज, आ लू, बैगन, मूली और मिर्च वगैरह
निकालकर
बिसात पर सजा देते हैं।)
मीर: क्या कमाल का
दिमाग पाया है आपने मिर्जा साहब।
मिर्जा: अमा मियाँ! एैसे ही थोड़े
रियासत-ए-अवध चल रही है।
मीर: चलिए।चलिए मैंने
अपना प्यादा चल दिया है।
मिर्जा: प्यादे से क्या
होता है मीर। मैं तो शुरुआत घोड़े से करूँगा।
(दोनों एक-एक कर बोलते हैं)
ये
रही चाल
!
ये
रही चाल!
(दोहराते हैं)
[मिर्जा खेल जीतने
वाले हैं। खड़ा होकर नाचने लगता है]
मिर्जा:मीर हारने वाला
है। मीर हार जाएगा! मीर हार जाएगा। (नाचता रहता है)
(अंदर - मिर्जा बेगम नौकरानी
से)
मि०
बेगम:
क्या
मिर्जा साहब आ गए हैं ?
नौकरानी
:
जी
बेगम साहिबा और मीर साहब भी हैं।
मि०
बेगम:
हैं ————-! कर क्या रहे हैं?
नौकरानी
:
वही
शतरंज का खेल।
मि०
बेगम:
पर
कैसे?
मोहरे
तो मेरे पास हैं।(मोहरे दिखाती है)
नौकरानी
:
अरे
बेगम साहिबा। ये खिड़की से देखिए। क्या जुगाड़ लगाया है। मिर्जा साहब ने।
(मि० बेगम खिड़की
से देखती हैं। बिसात पर सब्जियाँ सजी हैं। मिर्जा नाच रहे हैं)
मि०
बेगम(गुस्से में): जाकर कह मेरे
बदन में दर्द हो रहा है। अंदर आ जाएँ।
नौकरानी
:
जी
(बाहर आकर, मिर्जा से)
नौकरानी
:
हुजूर
को बेगम याद कर रही हैं। बदन में बहुत दर्द है।
(मीर हँसते हुए, मिर्जा से)
मीर: मिर्जा साहब ।
जाइए!
जाइए।
अंदर जाइए।
मिर्जा: नहीं। कतई नहीं।
पहले बाजी खत्म होने दीजिए।
मीर: अमां मीरजा साहब।
भाभी जान का ठीक से इलाज क्यूँ नहीं कराते। वे वक्त-बेवक्त बीमार
पड़ जाया करती हैं।जाइए! अंदर
जाइए !
मिर्जा: नहीं, पहले बाजी खत्म
होने दीजिए।
मीर: नहीं पहले आप
अंदर जाइए!
मिर्जा: नहीं आप हारने
वालने हैं।
मीर: नहीं पहले आप
अंदर जाइए।
(मि० बेगम अंदर
से देखते हुए,
झाड़ू
लेकर बाहर आती है और मिर्जा की पिटाई शुरू कर देती हैं)
मि०
बेगम:
इस
मुए की असल बेगम तो संभलती नहीं शतरंजी बेगमों को बचाता फिर रहा है। हरामखोर, निठल्ले कहीं
के।
मीर(खुशी से): भाग मिर्जा भाग।
मिर्जा: भाग मीर भाग।
(दोनों भागते हैं)
[मंच पर अंधेरा]
दृश्य
२
(मीर की हवेली, नौकरानी सामने हाजिर है। बिसात बिछने लगती है)
मीर (नौकरानी से): अरे देख नहीं रहा मिर्जा
साहब आ एँ हैं। कुछ पान-हुक्का लेकर आ।
नौकरानी
:
जी
हुजूर
मिर्जा: जनाब यहाँ तो
मेरे गरीबखाने से भी ज्यादा शुकून है।
मीर: अरे अब यहीं जमा
करेंगीं बाजियाँ।
मिर्जा: पर कहीं आपकी
बेगम साहिबा भी नाराज़ होने लगीं तो——
मीर: खुदा खैर करे।
वे तो बहुत खुश मिजाज और त है। और मुझे तो
हमेशा हौसल अफजाई करती
रहती हैं शतरंज खेलने के लिए।
मजाल
है कभी टोका हो आपके यहाँ जाने के लिए। देर से आने पर भी सर में रोगन-बादाम की मालिश
करती हैं। तरह-तरह के लजीज
खाने
रख देती सामने।हमारा कभी झगड़ा ही नहीं होता मिर्जा साहब।
मिर्जा: अरे वाह ! मीर साहब, क्या ग़जब की
बेगम हैं आपकी- जहीन-शहीन, शानदार-जानदार (धीरे से) नमक हराम, मक्कार,
धोखेबाज।
(नौकरानी हुक्का और पान वगैरह रख देता है)
मीर (गुस्से और आश्चर्य से): क्या बक रहे हैं
मिर्जा साहब आप?
मिर्जा (मुस्कराते हुए): अरे यही कि अल्लाह
आप जैसी बेगम सभी को दे। हुस्न-ओ-हसीन, बला की खूबसूरत।
शौहर के लिए हमेशा
फिक्रमंद।
मीर साहब आप वाकई बड़े खुश किस्मत इंसान है जो आपको ऐ सी बेगम मिली।(पान मुँह में
रखते हुए,
धीरे
से)
बेईमान,
बेवफा ,
बदजात——
मीर (गुस्से में): क्या-क्या कहे जा रहे
है जनाब आप?
मिर्जा: अरे यही कि आप
बड़े किस्मत वाले है। आप चाल चलने के बजाय झगड़ा क्यों करने लगते है। चाल चलिए चाल।
बचाइए
अपनी
बेगम
मीर: क्या मतलब
मिर्जा: बेगम बचाइए यहाँ।
मीर साहब।
मीर (खिसिया कर): ये लो बच गयी
बेगम।
मिर्जा: वाह क्या चाल
चली है मीर साहब। क्या चाल है। लीजिए अब हाथ से गयी आप की बेगम—— हहहहहहह
मीर: आप जरा ठहरे मैं
गुसल से होकर आता हूँ।
मिर्जा: होकर आइए मीर
साहब। होकर आइए।
(हवेली में मीर
की खाबगाह-
bedroom)
मी०
बेगम
(दरवाजे
की ओर देखते हुए): मेरे खाबों के राजा कब आएगा तू। (गला उठाकर देखती
है)
आ
जाओ मेरे दिल-ओ-जानी।
भांजा (अंदर आते हुए): दिल बईमान बईमान
रे दिल०००००००००
मी०
बेगम:
दिल
बेईमान बेईमान रे । (एक दूसरे का हाथ पकड़कर) दिल बईमान बईमान
बईमान रे। हा हा हा दिल बईमान बईमान
बईमान
रे।
भांजा (हँसते हुए): कहिए मेरे दिल
की मलिका कैसी हैं आप?
मी०
बेगम:
सब
खुदा का खैर है। पर, सुनो आज वो यहीं हैं। घर पर ही।
भांजा (आश्चर्य से): हैं।सच। ताज्जुब
है।
मी०
बेगम:
अरे
वो मिर्जा,
मरदूद
को बेगम ने झाड़ू मार कर हवेली से बाहर कर दिया। अब आकर यहाँ पड़ा है। दोनों शतरंज
की
बाजियों
पर जमे हुए हैं।
भांजा (ताली बजाते हुए): फिर तो डरने की
कोई बात नहीं। जानती हो मेरी जान-ए-जाना जो लोग शतरंज खेलते
हैं उनकी निगाहें
बिसात
के अलाव कहीं नहीं टिकती।
मी०
बेगम:
सच
भांजा: मुच
(दोनों हाथ पकड़
कर)
दिल
बेईमान बेईमान बेईमान रे। दिल000000
(मीर के अंदर आने
की आवाज)
मी०
बेगम:
अरे।अरे! वो आ रहे हैं।यहाँ
यहाँ छुप जाओ।
(भांजा छिपने की
कोशिश करता है,
तभी
मीर वहाँ पहुँच जाता है)
मीर: अरे ये कौन हैं? ये क्या कर रहे
हैं?
मी०
बेगम:
जी
जी ये छिप रहे हैं। क्यों छिप रहे हैं। मैं कह रही हूँ कि क्यों छिप रहे हैं?
मीर: हाँ हाँ क्यों
छिप रहे हैं?
मी०
बेगम:
हाँ
हाँ इसलिए छिप रहे है कि वो इनके पीछे पड़े हैं।
मीर: कौन इनके पीछे
पड़े हैं?
मी०
बेगम:
वो
फौज वाले। नवाब की फौज वाले।
मीर: भला क्यों?
मी०
बेगम:
इन्हें
फौज में भर्ती करना चाहते हैं। अभी-अभी यहाँ से गुजर रहे हैं वे।
मीर: तो ये कुछ बोलते
क्यों नहीं। क्या हो गया है इन्हें
मी०
बेगम:
बहुत
डर गए हैं ये।
(भांजा के सिर
पर हाथ रखती है और उससे कहती है)
मी०
बेगम:
बोलिए! बोलिए! आप बोलिए कि आप
डर गए हैं।
भांजा (मीर से): जी जी मैं डर गया था।
मीर: अमा मियाँ। अब
डरने की कोई बात नहीं। आप बड़ी महफूज जगह पर हैं।
भांजा: जी जी बहुत शुक्रिया।
मीर (बेगम से): अरे इन्हें कुछ
शर्बत वगैरह पिलाइए। शिकंजी दीजिए। पसीने से तरबतर हो गए हैं। मैं जरा अपनी बाजी खत्म
करके
आता
हूँ।
मी०
बेगम:
जी
जैसा आप कहें।
(मीर जाते हैं, बेगम और भांजा
गाते हैं)
दिल
बईमान बईमान बईमान रे।
(मंच पर अंधेरा)
दृश्य
३
(वाजिदअली शाह
सजदे में नमाज पढ़ कर उढते हुए, आसपास सैनिक और दरबारी लोग हैं)
वाजिदअली:खुदा अवध की शान
बरकरार रखे।
सैनिक: आप दिन में पाँच
बार इबादत करते हैं। अल्लाह के करम से अवध की शान को कोई खतरा न होगा।
वाजिदअली: काश! अवध में कला और
संस्कृति की एैसी ही बहार रहे। संगीत एैसे
ही फलता-फूलता रहे। रात-दिन कथक के घुंघरू
कानों
में छम्म-छम्म बजते रहें।
बरतानिया हुकूमत हमारी हिफाजत करती रहे और हम कविताएँ रचते रहें।
सैनिक(व्यंग्य से): हुजूर ने ठीक
फरमाया। सड़कों पर तीतर-बटेर लड़ते रहें। गलियों में भेड़ों-बकरों की मुठभेड़ें
चलती रहें। सिपह-सलार
शतरंज
की बाजियाँ चलते रहें और ००००००००००
वाजिदअली (आश्चर्य और गुस्से से): क्या बकते हो
सैनिक।
सैनिक: हुजूर मैं तो
बस ये फरमा रहा था कि लोग अपने-अपने कामों में बहुत मशरूफ हैं। आप अपने काम में।
आम लोग अपने काम
में।
बरतानिया हुकुमत अपने काम में। सुनता हूँ लॉर्ड डलहौजी को चेरियाँ बहुत पसंद है।
वाजिदअली: अरे वाह। क्या
बात करते हो सैनिक। चेरियाँ पसंद हैं लार्ड साहब को। काश हमारे अवध में भी चेरियाँ
होतीं। पर हम उन्हें
आम
खिलाएँगे। अवध का आम का खाकर लॉर्ड डलहौजी चेरियाँ खाना भूल जाएँगे। क्यों मैंने ठीक
फरमाया ना।
सैनिक: वाह हुजूर! क्या बात है।
क्या बात है।
वाजिदअली: तो हम अभी लॉर्ड
साहब की खिदमत में आम के टोकरों के तोहफे भिजवा देते हैं। हमारी दोस्ती पक्की बनी रहनी
चाहिए।
सैनिक: बहुत उम्दा विचार
है,
हुजूर
का। पर सुनता हूँ वे खुद ही जल्द ही नवाब-ए-अवध के नाम अपना
पैगाम भिजवाने वाले हैं।
वाजिदअली: सच सैनिक।
सैनिक: सच हु उउउउउउउ
जू उउउउउउउ र
वाजिदअली: कैसा पैगाम? सैनिक
सैनिक: हुजूर हमारी दोस्ती
को पक्का करने का पैगाम। और कैसा पैगाम हो
सकता है भला।
वाजिदअली: तुम्हें कैसा
पता चला,
सैनिक
सैनिक: स्लीमन साहब के
हवाले से खबर मिली है हुजूर। वे जल्द आपसे मुलाकात करने वाले हैं।
वाजिदअली: अरे वाह! तो स्लीमन साहब
के लिए भी आमों के टोकरे तैयार रखना सैनिक।तख्लिया।(एक ग़ज़ल गाने
लगता है)
सैनिक: जी हुजूर। (और लोगों से) सुना तुमने आमों
के तोहफे तैयार करो। हुजूर, डलहौजी का इस्तकबाल करने वाले हैं। सुना
नहीं
तुमने।
जाओ जाओ आम के बागों में जाओ।नवाब साहब गजल बनाने में मशरूफ हैं।
सभी
लोग:
राजा
खाए आम। हो गया उसका काम तमाम।राजा खाए आम। हो गया उसका काम तमाम।
{मंच पर अंधेरा}
दृश्य
४
(डलहौजी का कार्यालय)
डलहौजी: मि० स्लीमन। अकार्डिंग
टू योर रिपोर्ट। द कॉमन पीपुल ऑफ अवुद आर नॉट हैफी। द नवाब इस बिजी इन हिज लाइफ।
स्लीमन:दैट्स राइट सर।
द रिपोर्ट इज इन फंर्ट ऑफ यू फॉर कंसिडरेशन।
डलहौजी: व्हाट काइंड ऑफ
पर्सन इस दिस फेलो। यू टोल्ड, 100 वाइव्स।(हहहहहहहहहहहहहह) नेवर टच्ड वाइन
इन हिस लाइफ
(हहहहहहहह)
स्लीमन: हिस एक्सलेंसी।
एंड रिफ्यूज्ड टू बी ट्रीटेड बाइ अ ब्रिटिश डॉक्टर डिस्पाइट हिस सीवीयर इलनेस।(हहहहह)
डलहौजी: हहहहहहहहहहह।
फूल। आय हैव डिसाडेड टू एनेक्स अउध एंड वेटिंग फॉर द ऑर्डर्स।
स्लीमन (संशय से): बट हिस एक्सलेंसी००००००००
डलहौजी: नो नो नो , मि० स्लीमन, नो बट। आय वांट
डारेक्ट कंट्रोल ओवर अउध।दिस फनी करेक्टर मस्ट गो।
स्लीमन: यस सर।
(फौजी ड्रम बजने
लगता है)
[मंच पर अंधेरा]
अंक 3
दृश्य 1
(मिर्जा और मीर
लखनऊ की सड़क पर चल रहे हैं )
मीर: अब कमबख्त कहाँ
महफूज जगह बची है । मिर्जा साहब क्या दिन आ गए लखनऊ के शतरंज तक खेलने की कोई महफूज
जगह
नहीं बची है।
मिर्जा: जब हमारी बेगमों
ने ही हमसे हमारी जगहें छीन ली हों तो हम किससे शिकवा करें मीर साहब।
मीर: मुझे याद आती
है वो मस्जिद जो शहर के बाहर वीरने में है। अब वहीं चला जाय। वहीं जमेगीं अपनी चालें।
न किसी का खटका
न
झंझट।
मिर्जा: ठीक फरमाया मीर
साहब आपने। चलो चाल बढ़ाओ।
(दोनों तेज-तेज चलने लगते
हैं,
रास्ते
में कुछेक आम लोग उन्हें आदाब करते हैं)
आम
लोग:
मिर्जा
साहब आदाब।
मिर्जा: आदाब आदाब
आम
लोग:
मीर
साहब को भी आदाब पहुँचे।
मीर: जी हजरात आपको
भी आदाब।
आम
लोग:
कहाँ
भागे जा रहे हैं जनाब आप दोनों
मीर
और मिर्जा (एक साथ): बस थोड़ा तफरीह
करने निकले हैं।
मिर्जा: शहर से बाहर ताजी
हवा की खुशबू लेने।
मीर: जरा खुले आसमान
के नीचे घूमने से तबीयत अच्छी रहती है न।
आम
लोग:
सो
तो है। पर जनाब कहीं आपकी बीवियों ने धक्के मार कर निकाल तो नहीं दिए।
मीर: कैसी बातें करते
हों तुम लोग। जरा भी तमीज नहीं।
मिर्जा: कमबख्त कहीं के।
आम
लोग(दोनों के आगे
आकर):
अरे
सच बात है तभी कड़वी लग रही है न।
मिर्जा
और मीर (एक साथ): चलो हमारा रास्ता
छोड़ो। जलील कहीं के।
(दोनों फिर तेजी
से चलने लगते हैं)
मिर्जा: ये लखनऊ शहर को
क्या हो गया मीर साहब। घरों की बातें आम लोगों तक मालूम होती जा रही हैं।
मीर: ठीक फरमाते हैं
साहब। शहर से तहजीब ही गायब हो गयी। निठल्ले कहीं के। दूसरों की जिंदगी में ताका-झांकी करते हैं।
मिर्जा: चलिए चलिए। वो
देखिए वहाँ एक सुनसान गाँव दिखाई दे रहा है।
मीर: अरे हाँ। चलिए।
वहीं जमेगी आज की बिसात।
(दोनों गाँव में
पहुँच जाते हैं,
चटाई
बिछाते हुए इधर-उधर देखते हैं)
मिर्जा: यहाँ तो कोई नहीं
मीर मेरे यारा।
मीर: सच। मजा आ गया।
मिर्जा: पर यार ये भूख-प्यास मिटाने
के लिए कोई तरीका तो निकालो। शतरंज से पेट थोड़ी भरेगा।
(तभी एक लड़का
आता हुआ)
लड़का: नवाब साहिब आदाब।
मीर
और मिर्जा (दोनों एक साथ): आदाब! आदाब!
मीर: अरे ये बताओ गाँव
वाले कहाँ चले गए। कोई मेला-जलसा है क्या।
लड़का: अरे हुजूर आपका
नाही मालूम का। ब्रिटिश सेना लखनऊ पै कब्जा करै आ रही है।
मीर
और मिर्जा (एक साथ, आश्चर्य से): हैं००००००००।तुम्हें
कैसे पता।
लड़का: साहिब। रोजइ चरचा
होइ रही है यही बात कै। नवाब वाजिदअली साहब डलहौजी लाट साहब के सामने समर्पण करि दिए।
मीर
और मिर्जा (एक दूसरे से): बड़ा गजब हो रहा
है। लखनऊ की फिजा ही खराब होती जा रही है।
मिर्जा: खैर छोड़िए। चाल
चलिए मीर साहब।
मीर: ये ली———जिए।
लड़का: साहिब गर खाना-पानी चाहिए तो
हुक्म कीजिएगा।
मीर
और मिर्जा (एक साथ): वो तो चाहिए ही।चाहिए
ही।
मिर्जा: अच्छा ये बताओ
तुम क्यों नहीं गए गाँव छोड़कर?
लड़का: हमैं साहिब बरतानिया
फौज की वर्दी बहुत पसंद आवत है। हम ऊका देखै खातिर रुक गए हैं।
मीर: बरतानिया फौज
की वर्दी???
क्या
मतलब?
लड़का: मतबल यह कि हमैं
बरतानिया फौज की लाल-पीली-काली वर्दी बहुतै
पसंद है साहिब। हम ऊका अपनी आँख से देखा चाही
थे
साहिब।
मिर्जा: अच्छा। अच्छा।
सुनो हमारे लिए चौक से बढ़िया कबाब और रूमाली
रोटियाँ ले आओगे?
लड़का: बिल्कुल साहिब।
मीर: ये लो पैसे (पैसे देता है)
मिर्जा: चलिए, चाल चलिए मीर
साहब।
मीर: ये लीजिए शह, अपना बादशाह बचाइए।
मिर्जा: ये लो बचा लिया।
मीर: कब तक बचाओगे
मिर्जा
मिर्जा: मेरा बादशाह तो
बचे न बचे पर आपकी बेगम गयी हाथ से मीर साहब।
मीर (आश्चर्य से): क्या कहना चाहते
हैं,
मिर्जा
साहब?????
मिर्जा: वही जो आप समझना
नहीं चाहते मीर साहब।
मीर: क्या ???? क्या???? मतलब आपका।
मिर्जा: यही कि भांजे
साहब के क्या हाल हैं???
मीर: आप साफ-साफ कहिए न। क्या
कहना चाहते हैं?
मिर्जा: अपनी बेगम बचाओ
मीर साहब।
मीर(खड़े होकर, गुस्से में): जाहिल कहीं के
। गँवार। बेजा बात करते हैं। तमीज खो बैठै हैं आप।
मिर्जा: सच तो बुरा लगता
ही है मीर साहब।
मीर (तमंचा निकालकर): अब आप ने एक भी
लफ्ज बोला नहीं कि मैं०००००००००
मिर्जा: क्या कर लेंगे
आप।गोली चलाएँगे न! चलाइए चलाइए! पर सच तो सच ही
रहेगा न।
मीर(फायर करते हुए, गोली मिर्जा के
कंधे पर लगती है): बस अब चुप। चुप्प नाशुक्रे इंसान।साला, बेईमान, बेगैरत।
(मिर्जा कंधा पकड़
कर बैठ जाता है)
मिर्जा: अरे मीर मेरे
यार। दिल पर चलाई होती गोली दिल पर। दोस्त थे इसलिए सच कह दिया। तुम्हारी गोली से डर
कर मैं झूठ तो नहीं
बोलूँगा।
मीर(तमंचा फेंक कर, रोते हुए): सच कहते हो मिर्जा।
दुनिया में अब कोई अपना नहीं रहा। माफ कर दो मुझे मेरे दोस्त, माफ कर दो।
(दोनों गले मिलते
हैं)
(मंच पर अंधेरा)
दृश़्य
२
(वाजिदअली शाह
का दरबार)
सैनिक: हुजूर।हमारे आम
लाट साहब को इतने पसंद आए कि वो अब अवध से आपकी बेदखली का पैगाम भेज चुके हैं।
वाजिदअली: कुछ इस तरह सौदा
किया वक्त ने मुझसे। तजुर्बे देकर मासूमियत ले गया मेरी। सही कह रहे हो, सैनिक। अंग्रेज
कभी
किसी
के दोस्त नहीं हो सकते। मैंने क्या-क्या नहीं किया इनके लिए। समय-समय पर तरह-तरह के तोहफे
दिए। मनमाने पैसे दिए। अपनी
आन-बान-शान इनके कदमों
में रख दी। फिर भी बरतानिया हुकूमत खुश नहीं।
सैनिक: हुजूर, आपकी इजाजत हो
तो अवध की जनता लड़ने के लिए तैयार है।
वाजिदअली: सैनिक! दोनों ओर से हमारे
ही लोग मारे जाएँगे। अंग्रेजी फौज में भी हमारे ही मजलूम लोग हैं। हमने भी सोचा था
कि
अंग्रेजो
से दोस्ती कर हम महफूज है।क्या पता था वे ही बेवजह हमारे दुश्मन बन बैठेगें। नहीं अब
मैंने अपनी जनता को लड़ने के
काबिल
ही नहीं
छोड़ा।
सैनिक: यह तो सच है।
वाजिदअली: हमारी जनता अब
तीतर-बटेर, भेड़-बकरे लड़ाने में
मशगूल है। वह शतरंज की बिसात पर शह-मात का खेल खेल रही
है।
नहीं नहीं अब हम अंग्रेजों से नहीं लड़ सकते। सब कुछ खत्म हो चुका है सैनिक। कब आ रहे
है जनाब डलहौजी?
सैनिक: हुजूर, इत्तिला मिली
है कि वे रास्ते में ही हैं।
वाजिदअली: अम्मी जान को
भी बता दो।
सैनिक: जी जरूर
वाजिदअली: आ ने दो आने दो
मेरे अजीज दुश्मन को आने दो। करने दो उसे बेवफाई करने दो।
दृश्य
३
(डलहौजी का काफिला
आता हुआ,
गाँव
में मिर्जा,
मीर
और लड़का)
लड़का: हुजूर हम खाना
लेके आइ रहे हैं पर उ देखिए हुआँ अंग्रेजी फौजें भी आय रही हैं।
मीर: आने दो, आने दो। वाजिदअली
हो या डलहौजी हमें क्या फर्क पड़ता है। लाओ खाना लाओ।
मिर्जा: ये लो बड़े लजीज
कबाब है।
मीर: अमा मियां ये
टंगड़ी-चिकन तो उठाओ।
क्या मजेदार बने हैं।
मिर्जा: वाह। वाह ! मजा आ गया।
(खाना खत्म करते
हुए)
मीर: तो चलो आज की
आखिरी बाजी और हो जाय।
मिर्जा:क्यों नहीं, क्यों नहीं
(लड़का बीच में
बोलते हुए)
लड़का: साहिब आप लोग
न लड़िहौ अंग्रेजी फौज से।उ लखनऊ मा घुसी जाय रही है।
मीर
और मिर्जा (एक साथ, हँसते हुए): हहहहहहहहहहहहह
अरे हम लड़ ही तो रहे है। ये देखो पूरी की पूरी दो फौजें हैं आमने-सामने।
बादशाह, बेगम, हाथी, घोड़ा, ऊँट, पैदल सब तो हैं
हमारी पलटन में। फिर भी तुम कह रहे हो कि हम लड़ नहीं रहे हैं।
लड़का (नाचते हुए): अरे वाह अरे वाह।
मर गए महाराज मजा आ गया है। मर गए महाराज मजा आ गया है।
मीर
और मिर्जा (एक साथ नाचते
हुए):मर गए महाराज
मजा आ गया है। मर गए महाराज मजा आ गया है।
(मंच पर अंधेरा)
दृश्य
४
(वाजिदअली शाह
का दरबार में तथा वाजिदअली की माँ और कुछ और लोग)
वाजिदअली
की माँ:यह स्लीमन और
डलहौजी साहब ने अच्छा नहीं किया। हैं तो वे
महारानी बरतानिया के मुलाजिम ही। उनसे बिना
पूछे
एैसा कैसे कर सकते हैं ये लोग।
वाजिदअली: हम कर भी क्या
सकते हैं अम्मी जान। अब तो सारी बागडोर इन्हीं के हाथों में है।
माँ: मैं लन्दन जाऊँगी।
इनके खिलाफ महारानी के दरबार में अपील करूँगी। सुनती हूँ महारानी बहुत ही गैरतमंद इंसान
हैं। वे जरूर
कुछ-न-कुछ कार्यवाही
करेंगी।
वाजिदअली: मुझे तो लगता
है अब कोई फायदा न होगा। फिर भी आप जाना चाहें तो जाएँ। मुझे कल ही नजरबंदी में कलकत्ता
ले
जाएँगे।
पूरे परिवार के लिए १२ लाख रूपये सलाना पेंशन मुकर्रर कर दी है।
माँ: बात पैसे की नहीं
है। सम्मान की है। इसलिए मैं लन्दन तो जरूर जाऊँगी
वाजिदअली:जैसा ठीक समझें
आप।
माँ:अच्छा अब मैं
जाती हूँ। खुदा खैर करेगा। अपना ख्याल रखना।
वाजिदअली:जी ।(माँ जाती है।गाते
हुए)
-गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डाले केश
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देश
(मंच पर अंधेरा)
दृश्य
५
(लखनऊ की ब्रिटिश
सुबह,
फौजी
सैनिक गश्त कर रहे हैं। मीर और मिर्जा अपनी शतरंज लिए खेलने की जगह ढूँढ रहे हैं)
मीर: अब कहाँ चले मिर्जा? ससुरे बरतानी
सिपाही सब जगह मौजूद हैं। पकड़े गए तो देश निकाला तय मानो।
मिर्जा: अब तो हवेली में
भी रहना ठीक नहीं मेरे मीर।
मीर: पर बाजी न खेलें
तो बेचैनी सी रहती है। नींद कैसे आएगी बिना दो-दो हाथ हुए।
मिर्जा: अमाँ मियाँ यही
तो परेशानी है। नवाब साहब को तो पेंशन मिल गयी। भेजे जा रहे हैं कलकत्ते। हम ठहरे ठेठ
अवधी। न छोड़ेंगे
शहर
लखनऊ।
मीर: कैसी बात करते
हो। कौन जाएगा लखनऊ शहर छोड़कर जनाब।
(तभी एक सैनिक
सामने से आता हुआ)
मीर
और मिर्जा (एक साथ, धीरे से): छिपो! छिपो! फौजी आ रहा है।
(सैनिक चला जाता
है)
मिर्जा: मीर इस तरह तो
मुश्किल है। छिप-छिप कर जीना। पकड़ लिए गए तो सीधे जेल जाना पड़ेगा।
मीर: ठीक कहते हो।
पर करें भी तो क्या??
(सामने एक बुर्के
की दूकान दिखाई देती है)
मिर्जा: ओ मीर मेरे यारा।देख
सामने देख।
मीर: क्या देखूँ।सामने
तो दूकान है।
मिर्जा: दूकान नहीं, कमबख्त बुर्के
की दूकान है
मीर: तो______!
मिर्जा: तो हम बुर्का
पहन लेते हैं।इन बरतानिया जालिमों से तो बचेंगे।
मीर: ला हौल बिला कुव्वत।
अब नाजनीन बनेंगे क्या। कैसी शान के खिलाफ बातें करते हो, मिर्जा।
मिर्जा: अरे मीर मेरे
यारा। बात को समझ न। समझ न बात को। यहाँ से बुर्का पहन कर चलते हैं उसी दूर गाँव में।
वहाँ न किसी का डर न
कोई
खौफ। आराम से बाजियों पर बाजियाँ चलते रहेंगे। और उस लौंडे से लजीज कबाब और रूमाली रोटियाँ और टँगड़ी कबाब
मँगा-मँगा कर खाते
रहेंगे। यहाँ मरने-कटने दे नवाब वाजिदअली शाह को।
मीर: वाह! वाह! शाबाश मिर्जा।शाबाश।
क्या दिमाग पाया है तुमने।चलो दो बुर्के खरीदते हैं।
(बुर्के की दूकान
में जाकर,
बेचनेवाली
से)
मिर्जा: मोहतरमा कैसे
दिए बुर्के।
दूकानवाली(आश्चर्य से): आप को चाहिए।
मिर्जा (शरमाते हुए, मीर की ओर इशारा
करते हुए):
नहीं
नहीं इन्हें।
मीर(मिर्जा की ओर): नहीं नहीं इन्हें।
मिर्जा: नहीं इन्हें।
मीर: नहीं इन्हें
मीर
और मिर्जा(एक साथ): नहीं हमें
मीर और मिर्जा(एक साथ): नहीं हमें
दूकानवाली: हैंएएएएएएएएएए।
आप हजरातों को बुर्के की क्या जरूरत आन पड़ी?
मीर
और मिर्जा(एक साथ): अरे क्या बकती
हो?
हम
अपने लिए थोड़े ही ले रहे हैं।
दूकानवाली: फिर जनाआआआआआआआब???
मीर
और मिर्जा(एक साथ): अरे हमें अपनी
बेगमों को तोहफे देने हैं।
दूकानवाली: जीइइइइइइइ। कौन
सा दूँ?
मीर
और मिर्जा(एक साथ): बस ये काले वाले
निकाल दें । दो दीजिए।
दूकानवाली(दो बुर्के निकाल
कर देती हुई):
लीजिए
जनाब।
मीर
और मिर्जा(एक साथ): बहुत-बहुत शुक्रिया।
दूकानवाली: आपका भी शुक्रिया
(दोनों आगे चले
जाते हैं)
दूकानवाली: ये शान-ए-अवध को क्या हुआ? आ दमी भी बुर्के
पहनने लगे। हहहहहहहहहह।
(थोड़ी दूर जाकर
सुनसान जगह पर मीर और मिर्जा)
मिर्जा: जल्दी पहन मीर
। यहाँ कोई देखने वाला न है मियाँ।
मीर(बुर्का पहनते
हुए):
हाँ! हाँ! जल्दी।जल्दी करो।
(दोनों बुर्का
पहन कर चलने लगते हैं, एक सैनिक आता हुआ इन दोनों को देखता है)
सैनिक(अपने आप से): लखनऊ की और तों
में अब वो नफासत न रही। वो नजाकत न रही। हाय।
मिर्जा: देखते हो मीर
अब वो हममे नजाकत और नफासत ढ़ूँढ़ रहा है।
मीर: वाकई मिर्जा साहब।
सोचा न था एैसे दिन भी देखने लिखे हैं अपनी किस्मत में।
मिर्जा: वाह रे खुदा ।
तेरी क्या-क्या मर्जी। चलो
रफ्तार बढ़ाओ मियाँ।
(सामने गाँव दिखाई
देता है)
मीर: चलो अपना ठिकाना
आ गया।
मिर्जा: हाँ मीर साहब।
बड़ा मुश्किल दिन था। अब कुछ समय शुकून से गुजरेगा। उतार फेंकिए ये बुर्का
(बुर्का उतारकर
मीर और मिर्जा चटाई बिछा कर बैठते हैं और शतरंज की बिसात लगाते हैं)
मिर्जा: मीर साहब जरा
लौंडे को आवाज दीजिए
मीर: अरे जनाब लौंडे
मियाँ। कहाँ हो?
हम
बुला रहे हैं। हम।
(कोई आवाज नहीं
आती)
मिर्जा: अबे वो लौंडे, कहाँ मर गया।
बाहर आ। कुछ खाने-पीने का इंतजाम कर।
(लड़का ब्रिटिश
सैनिक के ड्रेस में बाहर आता है)
लड़का: कौन है?
मीर
और मिर्जा(एक साथ, डर कर): अरे अरे आप!
लड़का: वाह क्या बात
है।नवाब साहब। बड़े दिन से ढ़ूढ़ रहे थे। अब जाकर मिले आप। वो भी यहीं।(लड़का आवाज देते
हुए)
लड़का:फौजियों गिरफ्तार
कर लो दोनों को। ये है अवध के नवाब वाजिदअली के खास मुलाजिम मिस्टर सज्जाद अली और जनाब
रोशन
अली।
मीर
और मिर्जा(एक दूसरे से): बुर्के पहनों
मियाँ बुर्के।
(मीर और मिर्जा
एक साथ बुर्के पहनने लगते हैं, लड़का बुर्के छीन लेता है)
लड़का (दूसरे सैनिकों
से):
गिरफ्तार
करो दोनों को और लगवाओ ऊठक-बैठक।
(सैनिक दोनों को
गिरफ्तार कर लेते हैं)
लड़का: कान पकड़ कर लगाइए
दस ऊठक-बैठक नवाब साहिब।
(मीर और मिर्जा
झिझकते हैं)
लड़का(गुस्से में, कड़क आवाज में): सुना नहीं नवाब
साहिब। या तमंचा चलाऊँ टांगों के नीचे।
(दोनों कान पकड़कर
ऊठक-बैठक शुरू कर
देते हैं और दस तक गिनती गिनते हैं)
लड़का: अब मुर्गा बनिए
नवाब साहब। मुर्गा।
मीर
और मिर्जा: अरे मुर्गा कैसे
बनते हैं। हम इंसान हैं। मुर्गे नहीं।
लड़का ( दूसरे सैनिक से): इन्हें मुर्गा
बन कर दिखाइए
(सैनिक मुर्गा
बनता है)
लड़का: एैसे नवाब साहिब।
एैसे।आप ने शतरंज की बिसातों पर बड़े ऊँट-घोड़े दौड़ाए
हैं। अब मुर्गा बन कर दौड़िए।
(मीर और मिर्जा
संकोच करते हैं। तभी लड़का हवा में गोली चला देता है, दोनों झटपट मुर्गा
बन जाते हैं)
लड़का: बहुत अच्छा नवाब
साहिबों। बहुत अच्छा। अब कुकड़ू कूँ बोलते-बोलते दौड़ लगाइए।
(मीर और मिर्जा
कुकड़ू कूँ बोलते हुए दौड़ लगाते हैं। बार गिर जाते हैं। फिर दौड़ते हैं)
[मंच पर धीरे-धीरे अंधेरा]
समापन
नृत्य –कजरारे, कजरारे
समाप्त
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