28 जून, 2015

जापान मे हिन्दी शिक्षण: सोशल मीडिया की भूमिका

जापान मे हिन्दी शिक्षण: सोशल मीडिया की भूमिका
जापान में निवसित होने के लिए अनेक जरूरी चीजों के बारे में वहाँ की सरकार कई प्रकार के परामर्श देती है। इन परामर्शों में से एक फोन का होना भी जरूरी बताया गया है। अक्सर छात्र अौर अन्य लोग स्मार्टफोन के साथ सभी जगहों पर दिखाई देते हैं। फोन के जरिए बहुत सी सूचनाअों तक पहुँच सुनिश्चित हो जाती है। युवा लोगों में सोशल मीडिया सबसे लोकप्रिय है। इसलिए फोन की घंटी कभी नहीं बजती। ऐसा करना असभ्यता की श्रेणी में आता है। केवल सोशल मीडिया के द्वारा संदेशों अौर सूचनाअों का आदान-प्रदान करना उचित अौर शालीन तरीका है। जापान निजता को एक विशेष अधिकार के रूप में बड़ा अधिक महत्व देता है। इसलिए सीधे-सीधे बात करने में लोग संकोच करते हैं। ई-मेल या सोशल मीडिया के द्वारा बातचीत करना अधिक पसंद किया जाता है। शिक्षा सामाजिक व्यवहार का ही एक अंग है। जापानी छात्र देश की व्यवस्थित तकनीक का इस्तेमाल अपने शिक्षण के लिए करते हैं जिसमें निजता के संरक्षण का भाव हमेशा बना रहता है।  पूरी दुनिया में लगभग दो सौ सोशल-माध्यम विभिन्न जरूरतोंके अनुसार सक्रिय हैं। जिनमें शैली अौर तकनीक का व्यापक वैविध्य देखने में आता है। ऐसा भी देखा गया है कि विभिन्न देशों के अपनी आवश्यकतानुसार विभिन्न सोशल-माध्यमों को अपनाते हैं। शिक्षण में मुख्यत: चार प्रकार के सोशल मीडिया का उपयोग अधिक होता है। ट्विटर जैसे शब्द-सीमा से बँधे माध्यम, फेसबुक जिनमें शब्द, चित्र अौर वीडियो सभी का इस्तेमाल संभव है तथा यू-ट्यूब जैसे विशुद्ध वीडियो अाधारित माध्यम एवं साउंड-क्लाउड जैसे पूरी तरह ध्वनि आधारित माध्यम जापान में भाषा शिक्षण के कारगर अौजार बन गए हैं। इनके अतिरिक्त ब्लॉग, गूगल प्लस, इंस्टाग्राम, पिंटरेस्ट अौर अन्य सोशल माध्यमों का उपयोग किया जाता है। भाषा अौर संस्कृति अविभाज्य हैं इसलिए संस्कृति के बोध के साथ ही भाषा-शिक्षण का महत्व स्थापित होता है।  सोशल मीडिया समसामयिक संस्कृति अौर भाषा-प्रयोग का जीवंत मंच है। संस्कृति के विभिन्न घटकों का सोशल मीडिया के जरिए साक्षात्कार कराना सहज-सुगम अौर किफायती है। इसलिए जापान में सोशल-मीडिया का उपयोग कर हिन्दी-शिक्षण करना समय की अपरिहार्यता है।
भाषा शिक्षण के लिए चार चरण महत्वपूर्ण हैं, जिनमें पढ़ने, लिखने, बोलने अौर सुनने-समझने को सम्मिलित किया जा सकता है। तो सबसे पहले बोलने-सुनने के बारे में बात करना ठीक होगा।जापानी भाषा में हिन्दी की तुलना मेँ बहुत कम ध्वनियाँ हैं। इसलिए छात्र बहुत से हिन्दी वर्णों को ठीक से उच्चरित नहीं कर सकते।खास तौर पर ‘र’ अौर ‘ल’ की ध्वनियों को बोलने-सुनने में उन्हें अन्तर स्पष्ट नहीं होता। इसीप्रकार अन्य वर्ण भी हैं जिनके उच्चारण में जापानी छात्रों को मुश्किल का सामना करना पड़ता है।एक अध्यापक समुचित उच्चारण के लिए खुद बोलकर अौर छात्रों को उसे दुहराने को कहकर इसका अभ्यास करवा सकता है।लेकिन, एेसा करना हमेशा रोचक नहीं होता अौर यह थोड़ा उबाऊ भी हो सकता है। इस परिस्थिति में जब यू-ट्यूब का कोई वीडियो दिखाया जाता है तो छात्र उसे चाव से देखते हैं अौर हिन्दी ध्वनियों को सुनने-समझने का अभ्यास भी करते हैं। इससे दो तरह के परिणाम हासिल होते हैं। पहला यह कि विद्यार्थी सुनने-समझने की चुनौती के साथ वीडियो देखना शुरू करता है। सामान्यत: यह वीडियो भारतीय समाज अौर संस्कृति को भी अन्तर्गुंफित किए हुए होता है इसलिए वे न केवल भाषा का अभ्यास कर पाते हैं अपितु संस्कृति के भी बेहद महत्वपूर्ण पहलुअों से परिचित होते चलते हैं।
eg-youtube video Documentary- koi to Thaam lo…The shrinking Ganges. or mptourism

इस वीडियो में गंगा के विषय में जानकारी देते हुए मिथक, भूगोल, पर्यावरण जैसे मुद्दों का अनूठा संयोजन किया गया है।यह वृतचित्र सहज प्रवाह में हिन्दी का प्रयोग करता है अौर अंग्रेजी उपशीर्षकों का भी इस्तेमाल भी किया गया है। एेसे अनेक सरकारी, गैर-सरकारी, व्यावसायिक अौर गैर-व्यावसायिक वीडियो यू-ट्यूब पर हिन्दी में उपलब्ध हैं। इनका कक्षाअों में उपयोग कर हिन्दी-शिक्षण को सुगम बनाया जाता है।
हिन्दी शिक्षण करने वाले लगभग हर जापानी विश्वविद्यालय में कक्षाअों के शिक्षण के साथ-साथ अन्य गतिविधियाँ भी संचालित की जाती हैं। जिनमें भारतीय भोजन पकाना अौर नाट्य-प्रस्तुतियाँ एवं भारत की शैक्षिक-यात्रा आदि शामिल हैं।इस अकादमिक सत्र से एक दिन छात्रों के लिए सक्रिय-शिक्षण का निश्चित किया गया है।भारत अौर जापान में खान-पान की शैली में गहरा अंतर है। भारतीय व्यंजनों के बारे में जापानी छात्रों को अधिक जानकारी नहीं होती।उन्हें इस बात पर आश्चर्य होता है कि भारत के लोग केवल शाकाहार करके सारे प्रकार के पोषक तत्व प्राप्त कर सकते हैं। भोजन वैविध्य की भी जानकारी उनके पास बहुत सीमित होती है। उदाहरण के लिए हर प्रकार के सालन को वे ‘करी’ के रूप में ही पहचानते हैं।नान ज्यादा लोकप्रिय है परंतु तरह-तरह की रोटियों अौर चपातियों अौर पूरी, पराँठा के बारे में सुनकर उनको अाश्चर्य ही होता है।जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि दक्षिण अौर उत्तर भारतीय भोजन भी वैविध्य लिए हुए है, इसलिए इन सबकी पकाने की विधि अौर रूप-रंग के बारे में पाठ्य-पुस्तकें सीमित जानकारी ही दे सकती है। वे कितनी ही कुशलता से क्यों न लिखी गयी हों पर वे श्रव्य-दृश्य-माध्यमों का स्थान नहीं ले सकती। ऐसी परिस्थिति में यू-ट्यूब पर प्रेषित अनेक निजी अौर प्रोफेशनल वीडियो बड़े कारगर सिद्ध होते हैं अौर छात्र इनका आशय सुगमता से ग्रहण कर लेते हैं। छात्रों द्वारा बनाया पकवान विश्वविद्यालय-महोत्सव के समय आगंतुक लोगों को खिलाया जाता है अौर स्वाभावत: वे अपना फीडबैक भी देते हैं। इसके चलते भारतीय भोजन विश्वविद्यालय से निकल कर जापानी आमजन की पहुँच में भी आता है। मैंने पाया है कि जो छात्र इस भोजन-निर्माण की प्रक्रिया में सम्मिलित होते हैं वे बाद में अपने घर-परिवार के साथ भी भारतीय भोजन बनाते हैं अौर बार-बार यू-ट्यूब जैसे वीडियो का सहारा लेते हैं। कहना न होगा कि इससे खान-पान से संबंधित उनकी हिन्दी शब्दावली समृद्ध होती चलती है।
ध्यान देना चाहिए कि भाषा शिक्षण के लिए अब व्याकरण अौर अन्य बातों के अतिरिक्त दृश्यता का महत्व बढ़ चला है।भाषा-शिक्षण में दृश्य-भाषा के योगदान को समझना अनिवार्य हो चला है। वैसे तो फिल्में भी दृश्यता का उपयोग करते हुए हिन्दी-शिक्षण में हमेशा मददगार रहीं हैं।परंतु यू-ट्यूब जैसी सोशल मीडिया साइट्स ‘सामान्यता’ अौर ‘दैनिकपन’ से भरपूर होती हैं। इसलिए निश्चय ही इनकी भाषा वास्तविकता के अधिक करीब होती है। इन पर प्रेषित वीडियो को देखकर छात्र आजकल की बोलचाल की भाषा के अधिक करीब आ पाते हैं। यहाँ वह आजादी भी मिलती है कि वे अपने मनचाहे विषय का वीडियो देख सकें। वैयक्तिक चयन की एेसी आजादी फिल्मों समेत दूसरे माध्यम नहीं दे सकते अौर आम जन जीवन की संस्कृति का जीवंत अौर गतिशील दृश्य देख पाना अन्यत्र मुश्किल है।
जापान के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी शिक्षण को केवल प्राध्यापकीय व्याख्यानों तक सीमित नहीं रखा जाता। उनको अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों से संपृक्त किया गया है। इनमें से एक महत्वपूर्ण गतिविधि है-नाट्य-प्रस्तुति। अब एक निजी बात बताना चाहता हूँ। पिछले साल मेरे विश्वविद्यालय के छात्रों ने कालिदास के प्रसिद्ध नाटक ‘शकुंतला’ की प्रस्तुति की। नाटक में कण्व ऋषि के आश्रम का वर्णन था। छात्र ठीक से न तो ऋषि आर न आश्रम की संकल्पना समझ सकते थे। इनका ठीक-ठीक अभिप्राय समझा पाना बेहद  कठिन था।  ऐसी स्थिति में ऋषि की वेष-भूषा अौर जीवन-शैली को समझाने के लिए यू-ट्यूब वीडियो से बेहतर कोई माध्यम न हो सकता था। यह सिर्फ एक उदाहरण भर है। इस साल भी मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ पर आधारित नाट्य-प्रस्तुति होनी है जिसमें अनेक संकल्पनाएँ-मसलन हवेली, नवाब, तीतर अौर बटेर की लड़ाइअों की उपयोगिता अौर कथक-नृत्य की शैली-आदि के बारे में जानकारी देने के लिए सोशल-मीडिया का उपयोग किया जा रहा है। 
आइए अब एक दूसरे अौर लोकप्रिय माध्यम की बात करें। फेसबुक अपने चरित्र अौर व्यवहार में अनूठा माध्यम है। यह निजता अौर सामाजिक स्थितियों की अभिव्यक्ति के बेजोड़ अवसर उपलब्ध कराता है। इसमें शब्द, चित्र अौर चलित चित्रों का उपयोग कर अपने संदेश को संप्रेषित किया जा सकता है। बड़ी बात यह है कि भारत में इसके प्रयोक्ताअों की संख्या काफी अधिक है, शायद पूरी दुनिया में दूसरे स्थान पर। इन अभिव्यक्तियों को देखकर भारत के सामाजिक, वैचारिक, सांस्कृतिक अौर भौगोलिक वैविध्य का पता चलता है। ये अभिव्यक्तियाँ प्रचुर मात्रा में होती है अौर हिन्दी की विविध शैलियों के दर्शन भी यहाँ किए जा सकते हैं। हिन्दी की बोलियों में भी जब-तब लेखन देखने को मिलता है। अनेक समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, संस्थान अौर प्रसिद्ध हस्तियाँ अपने-अपने पृष्ठ उपलब्ध करवाकर इस मंच को प्रामाणिक सूचनाअों का माध्यम भी बनाती है। कुछ इसी तरह समान अभिरुचियों अौर सरोकारों से संबंधित निजी या सार्वजनिक समूहों का निर्माण भी फेसबुक संभव बनाता है। जिसमें सरोकार-विशेष से संबधित जानकारियाँ अौर सूचनाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। इसप्रकार फेसबुक पर सामग्री संस्कृति अौर भाषा-शिक्षण का अन्यतम स्रोत बन जाती है। बहुधा प्रत्येक जापानी छात्र अपनी फेसबुक आईडी बनाता है। सक्रियता हर छात्र के स्वभाव पर निर्भर करती है। यह देखने में आता है कि वे इसके माध्यम से कुछेक हिन्दी पत्र-पत्रिकाअों के अपडेट देखते रहते हैं। हिन्दी समाचार चैनलों के पृष्ठों के जरिए वे बीस-तीस सेकेंड के समाचार देखकर उन्हें समझने की कोशिश करते हैं। न समझ आने पर कक्षाअों में उनकी चर्चा करते हैं। इस प्रकार वे अपनी हिन्दी को बहुआयामी बनाने की दिशा में सक्रिय होते हैं। क्योंकि फेसबुक एक साथ परिवार, मित्रों अौर सामाजिक हलचलों से जुड़ने का अवसर मुहैया कराता है इसलिए छात्रों को हिन्दी पढ़ने अौर भारत से संबंधित गतिविधियों को जानने के लिए अलग से समय नहीं निकालना पड़ता अौर ऐसा करना उन्हें बिल्कुल भी बोझ-सा नहीं मालूम पड़ता।
जैसाकि मैंने पहले ही आपको बताया है कि जापानी लोग संकोची स्वाभाव के होते हैं। छात्र भी बहुधा कक्षाअों में सवाल नहीं पूछते। ज्यादातर वे खुद उत्तर जानने की कोशिश करते हैं। इसलिए फेसबुक जैसे सोशल माध्यम उन्हें निजी तौर पर भाते हैं। जब उनमें थोड़ा आत्मविश्वास आ जाता है तब वे छोटी-छोटी पोस्ट हिन्दी में लिखना शुरू कर देते हैं। जरूरी नहीं कि उनका लिखा व्याकरण की दृष्टि से सही हो। तब दूसरे छात्र उस पर अपनी टिप्पणियाँ कर उसे दुरूस्त बनाने का काम करते हैं। भारत हम अपने आत्मविश्वास के प्रति आत्ममुग्ध-सा होते हैं जापानी स्वाभाव इसके बिल्कुल विपरीत है। वे अपने आत्मविश्वास पर हमेशा सशंकित रहते हैं। इसलिए त्रुटि सुधार को भी बहुत ही सकारात्मक नजरिए से देखते हैं। अौर दोबारा वैसी गलती न करने के प्रति चौकस हो जाते हैं। ऐसा भी देखने में आता है कि फेसबुक के माध्यम से वे भारतीय युवाअों अौर विद्यार्थियों के संपर्क में आते हैं अौर निजी संदेशों के द्वारा एक दूसरे से अधिक बात करते हैं। अक्सर उनकी कोशिश होती है कि वे बातचीत हिन्दी में करें अौर कुछेक छात्रों ने बताया कि भारतीय लोग थोड़ी देर में ही अंग्रेजी में प्रतिउत्तर देने लगते हैं। जापानी समाज भाषाई दृष्टि से स्वाधीन समाज है। वे जापानी भाषा को ही महत्वपूर्ण मानते हैं। भाषाअों को सीखना उनकी मजबूरी नहीं अपितु चाहत है। रूचि का परिणाम है। फेसबुक जैसा मंच उनकी इस रूचि को परिपूर्ण करने में अपनी सहज भूमिका निभाता है।
सोशल मीडिया हमारी जरूरतों अौर मनोस्थितियों के अनुसार कई रूपों में विकसित हुआ है। फेसबुक ऐसा माध्यम है जहाँ आपकी निजता को सुरक्षित रखना कठिन होता है। उस पर अपनी अाईडी बनाने की एक महत्वपूर्ण शर्त है कि आप एक वास्तविक व्यक्ति हों। आपका नाम भी वास्तविक होना चाहिए। शिकायत की स्थिति में फेसबुक अाप से अपनी पहचान सिद्ध करने को कह सकता है अौर विफल रहने पर अापके खाते का खात्मा भी कर सकता है।ट्विटर पर इसकी कोई जरूरत नहीं। वह आपको अपनी पहचान छिपाए रखने की आजादी देता है। दूसरी बड़ी बात यह है कि वहाँ वर्ण-सीमा है। अधिकतम एक सौ चालीस। इसलिए आपको जो भी बात कहनी है उसे संक्षेप में ही कहनी पड़ेगी। हालाँकि आप लिंक आदि बनाकर अपने पाठक को विस्तृत प्लेटफार्म पर ले जा सकते हैं। संक्षेपण एक सुभीता देता है तो एक चुनौती भी। कुछ वाक्य जो आपको लिखने हैं वे संप्रेषणीय होने चाहिए। अनेक छात्र अपनी मनोस्थितियों को हिन्दी में लिखने की कोशिश यहाँ करते हैं जिनमें धन्यवाद ज्ञापन, अभिवादन, नींद आ रही है, स्वादिष्ट खाने आदि की सूचना सरलता से देखी जा सकती है। कुछेक वरिष्ठ छात्र अपने साथियों की सहायता के लिए विभिन्न विषयों पर जानकारी देने का काम छोटी-छोटी ट्वीटों के जरिए देने लगते हैं। एक दिलचस्प वाकया है। हमारे विश्वविद्यालय के हिन्दी विद्वान प्रो० ताकेशि फुजिइ जी ने अपनी कक्षाअों में भारत के महापुरुषों के बारे में पढ़ाना शुरू किया। महात्मा गाँधी, सरदार बल्लभभाई पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस आदि के बारे में। एक वरिष्ठ छात्र ने भारतीय महापुरूषों के बारे में एक सीरीज़-सी ही शुरू कर दी। उसमें नेहरू, अाम्बेडकर, जय प्रकाश नारायण, लोहिया, वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अौर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत सबके बारे में जानकारिया आने लगी। हालाँकि वे पोस्ट जापानी भाषा में थीं परंतु भारतीय संस्कृति अौर उसके महापुरुषों से जुड़ी संक्षिप्त-सार्थक जानकारी से सभी विद्यार्थी लाभांवित हुए। 
ट्विटर पर भी ऐसे विकल्प उपलब्ध हैं जिनसे हिन्दी भाषा, साहित्य अौर समाज के बारे में जानकारियाँ हासिल की जा सकती हैं। अनेक संस्थान, व्यक्ति अौर समूह संक्षिप्त किंतु महत्पूर्ण सूचनाएँ ट्विटर के माध्यम से प्रेषित करते हैं। विदेशी छात्रों के लिए यह संक्षिप्त जानकारी सहज रूप से ग्राह्य होती हैं। अक्सर काम की सूचनाएँ विद्यार्थयों को यहाँ मिल जाती हैं। मसलन जब मैंने इस विश्व हिन्दी सम्मेलन की आधिकारिक ट्वीट को रिट्वीट किया तो बहुत से छात्र विश्व हिन्दी सम्मेलनों के इतिहास, उसकी परंपरा, महत्व एवं उपयोगिता को समझने की दिशा में अग्रसर हुए। इसके पूर्व अधिकांश विद्यार्थी इस तरह के आयोजन से परिचित नहीं थे। इस प्रकार ट्विटर जिज्ञासाअों को उत्प्रेरित करने का सार्थक माध्यम बन गया है। क्योंकि संक्षिप्तता ट्विटर की विशेषता है इसलिए उस भाषा में अभिव्यक्ति करना भी सरल होता है जिसे हम सीखने की प्रक्रिया में हैं। शायद यह कहना सर्वथा उचित ही है कि हिन्दी पढ़ने वाले जापानी विद्यार्थी इस माध्यम का उपयोग कर अपने आत्मविश्वास में वृद्धि करते हैं।  
इनके अतिरिक्त ब्लॉग,इंस्टाग्राम, पिंटरेस्ट, टंबलर अौर विकीपीडिया जैसी सोशल-साइट्स से भी विद्यार्थियों को बहुत मदद मिलती है। गत अकादमिक-सत्र में कुछेक जापानी छात्र हिन्दी की महत्वपूर्ण बोली अवधी को बोलने-पढ़ने को उत्सुक थे। पर अवधी की बहुत अल्प सामग्री पुस्तकालय में उपलब्ध थी। जो थी भी उससे वर्तमान अवधी की त्वरा को पहचानना मुश्किल था। इसलिए फिर सोशल-मीडिया की शरण में आना पड़ा। वहाँ कुछेक वीडियो, गाने, लिखित सामग्री मिल गयी अौर एक मित्र जो बहुधा अवधी में लेखन करते थे उनका ब्लॉग भी। यह अवधी का अद्यतन रूप था। इन सबके सहारे छात्रों ने अवधी बोलने-पढ़ने का आत्मविश्वास अर्जित किया।
साउंड-क्लाउड एक अन्य ध्वनि आधारित सोशल-नेटवर्क है जहाँ अक्सर लोग विभिन्न प्रकार का संगीत, अपनी-अपनी भाषाअों में चर्चा, परिसंवाद अौर वार्ताएँ प्रसारित कर सकते हैं। श्रवण माध्यम के रूप विगत दिनों में यह काफी लोकप्रिय होता जा रहा है। यहाँ अाकाशवाणी आदि की के समाचार अौर परिचर्चाअों को आसानी से सुना जा सकता है। प्राय: यह देखने में आया है कि छात्र पढ़ने-लिखने में तो सहज हो जाते हैं। बातचीत करने में भी उन्हें महारत हासिल हो जाती है परंतु रेडियो जैसे ब्लाइंड माध्यम पर प्रसारित कार्यक्रमों को समझना कठिनाई भरा हो जाता है। साउंड-क्लाउड पर अनेक सामान्य लोगों ने हिन्दी में अपने कार्यक्रम प्रसारित किए हुए हैं। उनको सुनने का अभ्यास कर विद्यार्थी अपनी भाषाई श्रवण क्षमता का विकास करते हैं। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि जापानी भाषा में बहुत कम धवनियाँ हैं जिससे छात्रों को अनेक स्वर साफ-साफ सुनाई नहीं देते। साउंड-क्लाउड जैसे सोशल-मीडिया का उपयोग कर छात्र ध्वनियों के अंतर को समझने का भरपूर अभ्यास कर पाते हैं।

मैं उस समय की परिकल्पना करता हूँ जब ये माध्यम उपलब्ध नहीं थे। उन दिनों अध्यापकों को ज्यादातर पुस्तकालयों अौर पाठ आधारित सामग्री पर निर्भर रहना पड़ता था। छात्रों के पास भी बहुत कम विकल्प होते थे। अधिकांशत: पुस्तकें ही उसका मुख्य अवलंबन थीं। चित्र, ध्वनियों अौर दृश्यता का इतना सुभीता न था। तब शिक्षकों के सामने मंतव्य को स्पष्ट करने की गंभीर चुनौती थी। अब एक नई चुनौती पैदा हुई है। अाप कक्षा में व्याख्यान दे रहे होते हैं अौर छात्र गूगल-गुरु से जानकारियाँ ले रहे होते हैं। आप कुछ तथ्य बताते हैं तो उसकी प्रमाणिकता विकीपीडिया ही सही पर उससे चेक होने लगती है। इस डिजीटल तकनीक ने छात्र-शिक्षक रिश्तों में नया आयाम विकसित किया है। अब महज सूचनाअों अौर तथ्यों के उद्घाटन मात्र से अच्छे अध्यापन का समय खत्म हो गया है। अब अच्छे अध्यापक को वस्तु-विश्लेषण, वैचारिक नजरिए अौर एक वाजिब दृष्टिकोण से अपनी अध्यापन शैली को संपृक्त करना होगा।

सोशल-मीडिया एक प्रकार का मुक्त माध्यम है। जहाँ सूचनाअों, उपलब्ध जानकारियों की प्रमाणिकता हमेशा संदिग्ध होती है। गेट-कीपर का अभाव सोशल मीडिया के लिए एक तरफ वरदान है तो दूसरी अोर अभिशाप भी। इसलिए शिक्षण के संदर्भ में सोशल-मीडिया की भूमिका सहयोग परक है, जिसमें अध्यापकीय संस्पर्श अौर हस्तक्षेप बेहद जरूरी है।

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