23 दिसंबर, 2013

चाँद, चुप्पियाँ, चौराहे

चाँद रोज आसमान से निकलता था
पर
उस दिन उसने एेसा नहीं किया।

हर चीज 
भाषा में नहीं कही जा सकती
फिर भी
मेरे पास भाषा के सिवा
कहने के दूसरे अौजार हैं 
क्या?

चुप्पियाँ 
भी बहुत कुछ कहती हैं
खास तौर पर
जब वे चुनीं गयी हों
चुप्पी भी एक भाषा
नहीं है?

मेरा मौन
तुम्हारे भीतर छिपा है
कहीं
क्योंकि चाँद, उस दिन
आसमान से नहीं
जमींन के तालाब से उगा था ।

चाँद भी तो
भाषा ही है
जैसे 
दूरी  एक निकटता।

चौराहे
हर पल वीरान अौर आबाद 
होते रहते हैं
शायद
सबसे आबाद चौराहों पर
सबसे गहरा 
अकेलापन
होता है।

चाँद, चुप्पियाँ, चौराहे
अौर
नफरत
क्या ये कुछ भी नहीं कहते
पर
ये भाषा तो नहीं हैं
जैसे कि

जीवन .

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