मैं
तुम्हें क्या दे सकता हूँ
केवल अपना अहं
जो तुम्हारी छाती पर
सलीब-सा टंगा
सोखता रहेगा
जीवन-रक्त।
आसमान सितारों से
भरा पड़ा है
टूटते हुए तारे
थोड़ी देर ध्यान खींचकर
लुप्त ही तो हो जाते हैं
फिर भी
बची रहती है सितारों की जगमागाती दुनिया
आकाश के विस्तार में
क्योंकि
उम्मीद एक कला है।
पेड़ों पर टंगी पत्तियाँ
मचलने के लिये करती हैं
इंतजार
हवा के झोंकों का
आनंद आत्मनिर्भर नहीं होता
दार्शनिक पाखंड भी नहीं।
एक चौकस समाज में
जिंदा रहते
अौर
संशय भरे, कोलाहल समय में
सोते हुए
सपने नहीं आते।
हँसी कितने मुश्किल दौर से
गुजर रही है
अौर
अभिव्यक्तयाँ कितने दबाव में।
उम्मीद एक प्रतीक्षा भी है
कीचड़ में
रंगों की आजादी एक फरेब है
बर्फीले तूफान में
फूल एक प्रार्थना
तितलियों के पंख
जब सिले हों
महक पराग की
मर जाती है, स्थिर ।
एक बोझिल आत्मा
अौर
झुलसा हुआ मन
भला क्या दे सकता है
तुम्हें।
अहं, कला, प्रतीक्षा
उम्मीद?
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