19 दिसंबर, 2013

गज़ल

फिजाअों में है तेरे इश्क का फसाना
फिर गाता तू क्यूँ है तराना पुराना

ये महफिल तुझे दाद देगी हमेशा
तू है यार एैसा है तेरा जमाना

होती रहती है दरवाजे पर मेरे दस्तक
हो जरूरत तुझे तू भी खटखटाना

ये दुनिया बड़ी है जालिम मगर
इससे हमको क्या करना कराना

माना मोहब्बत है दौलत बड़ी
दौलत का होता है आना अौ' जाना

कसकती रहें तेरी तन्हाइयाँ
चलता रहे ये सुनना-सुनाना

मायूस होने से क्या फायदा
चलते से होगा मकामों का आना

रात गहरी बहुत है अंधेरा घना
हवाअों से जलती शमा है बचाना

राज़दारों से राज छिपता नहीं
जिन्हें सब पता है उन्हें क्या बताना

मुफिलसी मयखानों में आती नहीं
चलता रहता वहाँ है पीना-िपलाना

बैठे जाके वो दूसरे के पहलू में
ठीक एैसा नहीं है जलना-जलाना

राही है ये 'राम' बे-मंजिलों का

मेरा पता नहीं तेरा क्या िठकाना

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