८-१०-१९९२
इन शहरों में आकर हम ,दिल से कितने रीते हैं।
याद आ रहे वो दिन हमको जो गाँवों में बीते हैं।।१।।
कुदक फुदकती उड़न चिरैया,गदराए आमों की डाली
शाखा पर बैठे तोता मैना अौ अमराई की हरियाली
यहाँ बाहर से सब मधुर-मधुर है,भीतर से सब तीते हैं।याद।२।
घलर मलर खूब दूध दोहती,वो प्यारी बूढ़ी मैया
भरते कुलाचे छकड़े-छौने,वो अपनी उजली गैया
ताल तलैयों की वह छकपक अब सपनों से हो बीते हैं।याद।३।
सिर पर धानों को ढोती वह अपनी चंपा काकी
धूल उड़ाती बैलगाड़ियाँ, अल्हड़ मेलों की झाँकी
छूट गया वह सादा जीवन, टूटे मन अब सीते हैं।याद।४।
फागुन के रंग गुलाबी,देवर भाभी की गाली
गालों में रंग लगाती वह अपनी छोटी शाली
वे सच्चे संबंध भूलकर,नकली रिश्तों में जीते हैं।याद।५।
खींचमखाँच झुरमुटों की वह छेड़छाड़ अंधियारे की
चंदा की वह मंद रोशनी हँसी ठिठोली गलियारे की
मस्ती भरा वह मधुर ज़ाम था,नकली सुरा यहाँ पीते हैं।याद।६।
2 टिप्पणियां:
गाँव याद आ गया| बहुत अच्छा लिखा आपने|
बहुत खुब ....
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