14 जून, 2008



मेरे स्‍याह अंधरों को थोड़ा उजाला दे दो।
बुझती हुई धड़कन है अपनी ज्‍वाला दे दो।।
सपने थे जो देखे सब के सब टूट-फूट गए
बने जो हमराही थे बीच में कहीं छूट गए
तनहा है जिंदगी कोई हम प्याला दे दो1।मेरे...।


मोहल्‍ले में अरसा हुआ है बातचीत बंद
कोशिशें की बहुत न होता कोई रजामंद
जुटे संगत ऐसी चौपाल ऐसा शिवाला दे दो।2।मेरे...।


सीधे-साधे थे जो बनते जा रहे हैं चंट
सत्‍ता में हैं जो बैठे बकते हैं अंट-शंट
बउ़बोले हुए हैं ये इनकी जुबां पे ताला दे दो।3।मेरे...।

मटमैला आसमां है बंजर सी क्‍यूँ है धरती
सूरज है धुँधला-धुँधला न कोई रोशनी जलती
रंगो की जरूरत है थोड़ा गोरा थोड़ा काला दे दो।4। मेरे...।


ब्रज सन्‍नाटे में है गोपियाँ भी हैं खोई खोई
न गायों की घंटियाँ मुरली जाने कहाँ सोई
बड़ी उदास है राधा उसे मोहन कृष्ण-ग्वाला दे दो।5।मेरे...।


आओ जरा बैठे कुछ नयी ताजी बात करें
हुए दिन बहुत फिर खुद से मुलाकात करें
गुम एहसासो को शब्द बड़ा भोला-भाला दे दो।6।मेरे...

2 टिप्‍पणियां:

mehek ने कहा…

bahut bahut khubsurat get,kavita ,rachana,nazm jo bhi keh lo lajab hai.

Vineet Kumar ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता है

Vineet Kumar