राम प्रकाश द्विवेदी की क्लास-फिल्म समीक्षा(FILM Review)
आपने अखबारों और पत्रिकाओं में तो फिल्म समीक्षाऍं पढ़ी होंगी। ये समीक्षाऍं फिल्म–पत्रकारों द्वारा की जाती हैं। लेकिन आम पाठकों को ध्यान में रखकर इनको बड़े हल्के-फुल्के ढंग से ही लिखा जाता है । यदि आप भी फिल्म-समीक्षक बनना चाहते हैं तो आपका इस क्लास में स्वागत है। यह कक्षा उन्हीं के लिए अधिक उपयोगी है जो बिल्कुल नए हैं। यहॉ हम फिल्म के अनेक रूपों में से केवल फीचर फिल्म पर ही अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।
आइए शुरुआत करें-
पहला
काम जो आपको करना है
समीक्षक बनने से पहले यह जरुरी है कि आपने बहुत सी फिल्में देख ली हों। यदि अभी तक आपने ऐसा नहीं किया है तो कोर्इ बात नहीं अब शुरू हो जाइए। अच्छी–बुरी जो भी मिलें देख डालिए फिल्में। क्योकि बुरे से ही अच्छे की पहचान होती है।
फिल्मोत्सव में भाग लें
आपके शहर में फिल्मोत्सव तो होते होंगे। इनमें शिरकत कर आप दो-चार दिन में ही विविध फिल्म विधाओं के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं। अनेक भाषाओं समेत देश-विदेश की अच्छी फिल्में इन फिल्मोत्सवों में आपको आसानी से देखने को मिल जाती हैं।
टी0वी0 पर सिनेमा
लोकसभा टी0वी0 और वर्ल्ड मूवीज़ बेहतरीन फिल्में दिखातें हैं। इनके अतिरिक्त स्टार मूवीज़, स्टार गोल्ड, एच0बी0ओ0 , बिंदास , जी सिनेमा, सहारा फिल्मी, सोनी पिक्स आदि भी कभी-कभी अच्छी फिल्में प्रसारित करते हैं। इन चैनलों की फिल्में देखने के लिए आपको बाहर भी नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन कर्इ बार हमारा ध्यान घर में बँट जाता है और हम फिल्म के मर्म से दूर हो जाते हैं। इसलिए पूरी तरह फुर्सत में होकर ही टी0वी0 पर सिनेमा देखें।
फिल्म के मूल अवयव
फिल्में को बनाने में तकनीक और कल्पना का योग रहता है। निर्माण तकनीक की सामान्य जानकारी आपको बेहतर समीक्षक बनने में होगी। जैसाकि आप जानते हैं कि फिल्में -
(1)कैमरे से शूट होती हैं जिसके लिए स्क्रिप्ट उपलब्ध होनी चाहिए
(2)उनमें मानव चरित्र होते हैं
(3) इनकी एक कहानी होती है
(4) यह कहानी एक भाषा में होती है
(5)फिल्म का देश-काल होता है
(6) दृश्यों का संपादन होता है
(7) ध्वनियों का दृश्यों के साथ मिलान किया जाता है
(8) इसमें विशेष प्रभाव जोड़े जाते हैं
(9) गीत-संगीत
(10) फिल्म की रिलीज होने से पहले परख की जाती है
(11) इसे दर्शक समूह में देखते हैं , और
(12) अपना फीडबैक देते हैं
(13) यह फीडबैक हमेशा फिल्म की गुणवत्ता तय नहीं करता
इन अवयवों को जानकर हम आगे बढ़ सकते हैं। आइए देखें कि हमें समीक्षा की शुरुआत कैसे करनी चाहिए।
कहानी तो बताओ
समीक्षा शुरु करने से पहले जरुरी है कि फिल्म की कहानी संक्षेप मे अवश्य बता दें। इससे फिल्म संबंधी मूल जिज्ञासा शांत होती है। यह कुछ उसी तरह है जैसे आप किसी अजनबी से पहली बार मिलने पर नाम पूछने के बाद ही संवाद शुरू करते हैं।
यह मेरा हीरो वह तेरी हीरोइन
फिल्म के नायक/नायिकाऍं और वास्तविक जीवन के हीरो/हीरोइन दर्शकों के लिए एक दूसरे मे घुले-मिले होते हैं।इसलिए यह बता ही दें कि किसने क्या रोल निभाया है। अभिनय
पर गंभीर टिप्पणी यहॉं अवश्य करें।
तो कपड़े कैसे थे
अभिनय के बाद कास्टयूम्स और मेकअप के बारे में बता सकते हैं।
यह सब हुआ कहॉ
जो नायक/नायिकाऍं हैं उन्होने जो कुछ किया वह सब किस जगह घटित हुआ इसका खुलासा करें। यानि लोकेशन पर राय देना जरुरी है।
नाच गाने का क्या हुआ
यहॉं आप फिल्म के गानों और संगीत की चर्चा करें । अधिकांश फिल्में अपने गानों और संगीत की वजह से रिलीज होने से पहले ही लोकप्रिय होने लगती हैं।
हर शॉट कुछ कहता है
शॉट मूलत: तीन हैं
1. क्लोज अप 2. मिड , और 3. लांग
इनमें ही दो शॉट –एक्सट्रीम क्लोज अप तथा एक्सट्रीम लांग और जोड़े गए जिससे जोड़े गए जिनसे इनकी संख्या पॉच हो जाती है। वैसे देखे तो लगभग तीस शॉट फिल्म में बहुधा उपयोग में लाए जाते हैं।
ये शॉट फिल्म का व्याकरण रचते हैं। अर्थ को पैदा करने में इनकी गहरी भूमिका होती है।मसलन-
एक्सट्रीम क्लोज अप: सूक्ष्म भावों की सघनता दिखाता है।
क्लोज अप:चेहरे की भंगिमा को पकड़ता है
मिड शॉट: सामान्य भावों का प्रकटीकरण करता है
लांग शॉट: दुनियावी हलचल से रूबरू कराता है, तो
एक्सट्रीम लांग शॉट: पूरी प्रकृति के बीच इंसानी गतिविधि को दर्शाता है
एक समीक्षक के तौर पर आप शॉट संरचना, मीजा-अ-सीन और दृश्य-विधान पर अवश्य अपनी राय जाहिर करें। यह देखे की कैमरे ने अपना काम ठीक से किया है या नहीं।
रंग और रोशनी की जॉच
फिल्म में हरेक स्थिति के लिए रंग और रोशनी की अलग-अलग जरूरत पड़ती है। आप जानते ही है कि प्रेम का पंगा ज्यादातर फिल्मों में होता ही है। अब इसे दिखाने के लिए अगर तेज रोशनी और मरियल रंगों का इस्तेमाल किया जाय तो बात बनेगी कैसे। इसलिए देखे कहीं गड़बड़ तो नहीं रह गयी। और अगर यह काम बेहतर है तो हुजूर प्रशंसा भी तो कर दीजिए।
संपादन में लोचा
हर फिल्म एडिटिंग टेबल पर पुनर्निर्मित होती है। शूटिंग के ढीलेपन की कसावट यहॉ की जाती है। विशेष प्रभावों का करिश्मा यहीं पैदा किया जाता है।यह अंतिम मौका होता है फिल्म को गढने का। संपादन पर टिप्पणी कर आप फिल्म के मूल्य को घटा-बढा सकते हैं।
निर्देशक कहॉ गया
हर निर्देशक की एक फितरत होती है जो उसकी फिल्मों में दिखती है। निर्देशन के बारे में राय देकर आप दर्शक को फिल्म की परंपरा से जोड़ते हैं।
अरे ये भी तो हैं
फिल्म रिलीज होने से पहले सेंशरबोर्ड के पास जाती है। उसमें सामाजिक, संवैधानिक, सांस्कृतिक आपत्तियों का निराकरण कर लिया जाता है जिससे बाद में लफड़ा न हो। सेंशरबोर्ड की राय को भी आप अपनी समीक्षा में शुमार कर सकते हैं।
आप समीक्षक हैं दर्शक नहीं
कई बार फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पिट जाती है। लेकिन बाद में वह एक महत्वपूर्ण फिल्म के रूप में याद की जाती है। इसलिए दर्शकों की प्रतिक्रया को तवज्जो देते हुए भी आप पूरी तरह उसकी गिरफ्त में आऍं और अपनी स्वतंत्र राय रखें।
बस हो गया- इतनी बातों से फिल्म समीक्षा शुरू कर दीजिए फिर भी कुछ जानना है तो फोन उठाइए और कॉल कर लीजिए नीचे लिखे नं0 पर, शाम 5.00 से 6.00 के बीच कुछ बता ही दूँगा। मेरा जाता ही क्या है।
फोन नं0 09312276633
4 टिप्पणियां:
ये अच्छा किया सर आपने,क्लास के साथ-साथ ब्लॉग के जरिए भी ज्ञान देने लग गए। ये बदलाव जरुरी है, अब ग्लोबल लेबल पर आपके शिष्य होंगे और पुराने शिष्यों को भी अपडेट क्लासेज मिलती रहेंगी।
काफ़ी अच्छी जानकारी है. मुझे लगता है कि बेसिक इन्फो तो पूरी आ गई. सही तरीका सीखने के बाद ही बदलाव की गुंजाईश है.
बहुत अच्छा सर.
फिल्में तो हम सब देखते हैं.. पर आपके ब्लॉग से फिल्मों के बारे और कैसे बनती है फिल्में और अन्य पहलू से समझाने की कोशिश से बल मिलेगा. दंयावाद इस ज्ञान के लिए... और लिखते रहिये ... हमारे जैसे छात्र आपकी क्लास में रहेंगे.
बहुत ज्ञानी टाईप का महसूस कर रहा हूँ यह पढ़कर. लगाते रहिये क्लास. शुभकामनाऐं. :)
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