16 अप्रैल, 2008
अशोक चक्रधर
अशोक चक्रधर ने सचमुच हिंदी का चक्र पकड़ रखा है। हिंदी को तकनीक की सवारी कराने का बीड़ा (कुछ कहते हैं- ठेका) उन्होंने उठा रखा है। आज जीवन-पर्यंत शिक्षण संस्थान में उनका मधुशाला का पाठ देखा। पाठ कायदे से निर्मित है। चित्र-ध्वनि- वीडियो के समवेत स्वर उसमे मौजूद हैं। वे लगातार कोशिश कर रहे हैं- हिंदी के डिजटलीकरण की। उनकी कोशिशों की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन प्रयत्न हो और ईष्या न हो यह किसी समाज में अकल्पनीय बात है । उनमें सीखने –सिखाने की अदम्य लालसा(कुछ कहते हैं- लिप्सा) है। उनके इस उद्यम को मैं सैल्यूट करता हूँ । अन्यत्र भी वे जयजयवंती के माध्यम से हिेदी का भविष्य और भविष्य की हिंदी की निरंतर खोज कर रहे हैं।
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2 टिप्पणियां:
i m agree
http://ashokchakradhar.mywebdunia.com/
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