आजकल माणिक मुल्ला पीठासीन हैं।वे तक्षशिला के देव हो गए हैं। इन्द्रसभा की कुर्सी के इर्द-गिर्द अप्सराऍ नृत्य कर रही हैं। अन्य देवतागण मुग्ध हैं। वे विरही देवता हैं। दावतें हो रहीं हैं। देवता दावत उड़ा रहे हैं। देवकुमार इस आयोजन से प्रसन्न हैं। यह घोर आश्चर्य का विषय है कि इस गरीब देश में दावत और नृत्य के सिलसिले बढ़ते जा रहे हैं। माणिक मुल्ला थे तो जनवादी आदमी लेकिन अब देवता हो गए हैं। उनकी प्रेम कथा नए रूप में प्रकट हो रही है।सत्ता की महत्ता वे पहचान चुके हैं। उन्हें पता नहीं कि जनता कितनी परेशान हैं। वे अपने रिएलटी शो के इंतजामात में व्यस्त हैं। लोकतंत्र का तकाजा है कि शो ज्यादा दिन तक नहीं चलते।
यह कथा एक पहेली है। बूझने वाले को इनाम मिलेगा। खास तौर पर अप्सराओं का नाम बताने वाले को।
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