20 फ़रवरी, 2008
पं0 राधेश्याम शर्मा 'प्रगल्भ'
जयजयवंती द्वारा आयोजित संगोष्ठी में पहली बार शिरकत करने का मौका मिला। विषय था ‘’हिंदी का भविष्य और भविष्य की हिंदी’’ । इस विषय से अधिक रोचक पं0राधेश्याम शर्मा’प्रगल्भ’ के जीवन वृत्त पर आधारित अशोक चक्रधर जी की पावर प्वाइंट प्रस्तुति थी । हॉ , वहॉ पावर प्वाइंट की वर्तनी ‘पावर पॉइंट’ मुझे अखर रही थी । प्रगल्भ जी के बारे में गोविंद व्यास और शेरजंग गर्ग हिंदी भवन की बैठकों में अक्सर चर्चा किया करते थे । लेकिन उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली और बहुआयामी है यह आज ही जान पाया। उनकी कविता के अनेक फलक अशोक जी की प्रस्तुति में समाहित थे। एक और जो मेरे लिए अच्छी रही वह बालस्वरूप राही की ग़जलों को नए सिरे से जानने का अनुभव । इस गोष्ठी में कॅुवर बेचैन भी थे पर समयाभाव के कारण उन्हे सुन न सका। वहॉ एक तनाव रहित श्रोता-समाज उपस्थित था और वागेश्वरी जी ने आतिथ्य में कोई कसर भी नहीं छेाड़ी। टेक्नोलॉजी कई बार निर्गुण ब्रह्म की तरह समझ से परे हो जाती है यह विजय कुमार मल्होत्रा जी से बातचीत में भी लगा और विश्व बिरादरी तक इस संगोष्ठी के विचारों को पहॅुचाने में भी । अंतत: प्रगल्भ जी की स्मृति को नमन करते हुए अपनी बात समाप्त करता हॅूं।
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