परमेश्वर
अगर तुम नशे में हो
तो माफ करना उस लड़की को
जो चुनती है अपनी राह
बिना तुमसे पूछे ।
लेती है अपने फैसले
खुद ब खुद
और
चल देती अपने सपनों की मंजिल की ओर
बेफिक्र।
तुम ताकते रहते हो
परमेश्वर!
वह औजार भर नहीं है
जिसे मनचाहे ढंग से इस्तेमाल कर
रख दिया जाय
आले पर
वह दवा की टैबलेट भी नहीं
दर्द होने पर निगल जिसे
राहत की जाय महसूस।
उसकी स्वतंत्र सत्ता भी है
और है अलग
मिजाज, मूड, सपने, संभावनाएँ, हसरतें और
काफिलें
जिनके साथ चलने का हक भी है उसे ।
परमेश्वर
इससे अगर तुम्हारा नशा काफूर हो जाता है
या कि
तुम्हारी गढ़ी सृष्टि चरमरा उठती है
तो
दोष किसका है
नशे का
खुद तुम्हारा परमेश्वर ।
1 टिप्पणी:
इसमें ईश्वर की मर्ज़ी थी इसीलिए कांडा को इतने दिन तक भागते रहने के बाद अन्दर आना पड़ा...
ईश्वर के खेल को कोई नहीं समझ सकता हाँ यह अलग बात है उस खेल के कुछ मोहरों को थोड़ी सी देर ही खेल मिलता है...
इसीलिए सब अच्छा-बुरे का परिणाम जानते हुए भी इन्सान बुराई के वशीभूत हो कर ऐसे काम कर गुजरता है या जो ईश्वर कराता है...
सिर्फ गीतिका के लिये सोचे तो कविता अच्छी है.
जैन......(सियोल)
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