09 नवंबर, 2011

रवीश की गप्‍पें


कल(08 नवम्‍बर) शाम भाई रवीश कुमार ने एन डी टी वी इंडिया पर प्राइम टाइम में अपनी महफिल सजायी। विषय था स्‍वामी अग्निवेश का बिग बॉस शो में शामिल होना।

दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के कई सेमिनारों में वे प्राइम टाइम जैसी चर्चाओं को फालतू-का घोषित कर चुके थे खासकर तब जब पंकज पचौरी इस कार्यक्रम को करते थे उन दिनों खुद रवीश ‘जिंदगी को जुमलों’ की शक्‍ल देकर अपनी रिपोर्ट पेश किया करते थे। श्रोताओं का कहना होता था उन्‍हें जिस टॉपिक पर बोलने के लिए बुलाया जाता है वे उस पर न बोलकर उस जुम्‍मे को पेश की गयी रिपोर्ट को ही दुबारा जबानी पेश कर देते थे और अपना टीए डीए लेकर चलता बनते थे। उन दिनों रवीश का मानना था कि चार-आठ लोगों को बुलाकर चर्चा करने से कुछ नहीं निकलता और यह सब कोरी गॉशिप है। अब एन डी टी वी इंडिया के प्रबंधन के दबाव या उनकी स्‍वयं की इच्‍छा कहिए गप्‍प मारने का जिम्‍मा उनके सिर आ पड़ा है। जब देश के लोगों ने अग्निवेश को गंभीरता से लेना बंद कर दिया तो रवीश जी की नजर उन पर पड़ गयी और एहसान चुकता करने वाले पैनेलिस्‍टों को जोड़कर प्राइम टाइम का एक घंटा पीट दिया।

पूरे कार्यक्रम में न तो कोई कोहेरेंस थी न ही दृष्टि। अब दर्शकों को कब तक उल्‍लू बनाने का गोरखधंधा चलेगा। जिस समय रवीश अपने इस कार्यक्रम के जरिए गॉशिप कर रहे थे उसी समय टाइम्‍स नॉउ पर अर्णव गोस्‍वामी पेटोलियम पदार्थो और मँहगाई के मसले पर मनमोहन सिंह का गच्‍चा खाकर लौटे तृणमूल कांग्रेस के सांसदों और ममता बैनर्जी की जवाबदेही सुनिश्चित कर रहे थे। वहाँ इन सांसदों की कथनी-करनी का लेखा जोखा हो रहा था। ममता को एक गंभीर राजनेता के तौर पर बंगाल की जनता ने अपना समर्थन दिया है लेकिन उनकी कलई खुलनी शुरू हो गयी है। अब रवीश ने या एन डी टी वी इंडिया ने इस मुददे को छोड़ गप्‍प मारने की ठानी तो भगवान ही उनका भला करे दर्शक तो नहीं ही करेगा।

बिग बॉस पर एक गंभीर और मजेदार बहस हो सकती थी बशर्ते रवीश पर ऐसे पैनल को बनाने का दबाव न होता जिन्‍होंने उन पर एहसान किया है या निजी जान‍कार हैं। यह एक जुगाड़ू पैनल था। कोई अग्निवेश की आलोचना कर रहा है तो कोई बिग बोस से पिटकर अपना दुखड़ा रो रहा था। लाइव इंडिया और आजतक में काम कर चुके विनीत कुमार (हालांकि यह उनका खुद का दावा है और इसकी कोई प्रामाणिक पुष्टि आज तक नहीं हो पायी है) कुछ का कुछ बोल रहे थे अपनी लेखनी के मुकाबले बेहद प्रभावहीन दिखे और रवीश फँसा हुआ महसूस कर रहे थे। क्‍योंकि चर्चा में कोई जान नहीं आ पा रही थी दर्शक चैनल छोड़कर भाग खड़ा हुआ था। रवीश भाई जुगाड़ू पैनल से बहस बेजान हो जाती है और आप तो यह अच्‍छी तरह से जानते ही है कि एक ही खूँटी पर कोट से लेकर लँगोट तक टांगने का अंजाम क्‍या होता है।