21 मार्च, 2011

आँखें


तुम्‍हारी

डबडबाई आँखों से

जब

टपक रहा था

दर्द

मौन था मैं

पर शिराओं में उग गये थे

जख्‍म मेरे भी।

तमाशबीन बने

मित्रों की

उपहास मुद्राओं में

घिरी तुम

कहने को आतुर कुछ

कह गयी थी कुछ

छूट गयी वह

बात

और

जीवन भी।

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