17 मार्च, 2011

सच सच बतलाना*


तुम्‍हीं ने सिखलाया था
चाँद से बाते करना
चलना सितारों के साथ
उनकी झिलमिलाती रोशनी में
नहा उठना
अंधेरों की काली गहरी नदी में
गुलाबी पंखुरियों की
नर्म चादर पर
उनींदे सोना।

ढलते शाम के शर्मीले धुंधलके में
लजा जाना
मार्क्‍स, मलार्मे और मलयज को पढ़ना
गुनना महात्‍मा की सोच को।

दूर आकाश की नीली उँचाइयों में
चिडि़या बन उड़ जाना
खो जाना
सागर की असीम गहराइयों में।

अंतरीप के किनारे रह जाना
अकेले

सिखलाया था तुम्‍हीं ने
सर्द हवाओं से भरी ठंडी रातों में
सिकुड़ना
सकुचाना।

दर्द को पी जाना

तुम्‍ही ने कहा था-
'पागल प्रवाहों में,
तरंगों के साथ कौतुक करना'।

सच सच बतलाना
तुमने यह सब सच कहा था ।


*शीर्षक के लिए कव‍ि नागार्जुन का

1 टिप्पणी:

USHMA ने कहा…
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