िंहदी अकादमी में सुश्री अर्चना वर्मा ने ‘विदूषक के अधीन’ काम करने से मना कर दिया है। उनकी ही राह पर चलते हुए श्री ज्योतिष जोशी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री को अपना त्यागपत्र सौंप दिया है।नित्यानंद तिवारी को भी यह भय व्याप्त हो गया है कि हिंदी अकादमी मनोरंजन उद्योग न बन जाय।अब इस स्थिति पर माननीया मुख्यमंत्री को विचार करना है।
इस घटना के कई विमर्श हिंदी जगत में पैदा हुए हैं-
नंबर १- यह कम्युनिस्टों की तगड़ी गिरोहबंदी का परिणाम है अौर वे एक कुजात कम्युनिस्ट को नहीं पचा पा रहे हैं।
नंबर २- यह शीला दीक्षित अौर कपिल सिब्बल की लड़ाई का प्रतीकात्मक प्रतिफलन है।
नंबर ३- यह पूर्वी अौर पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के ब्राह्मणों की हिंदी जगत पर वर्चस्व के संघर्ष का परिचायक है।
मुझे नहीं पता, वास्तविकता क्या है?
पर कुछ सवाल पैदा होते हैं-
जब ज्योतिष जोशी अकादमी के सचिव बने तो उनसे भी योग्य साहित्यकार दिल्ली में इस पद के इच्छुक थे अौर उन्हेँ दरकिनार कर दिया गया था।
संचालन समिति में अनेक नौसिखुआ लोगों का नाम है जो इसके कतई योग्य नहीं हैं।
अकादमी की संचालन समिति में वाम-सरोकारों वाले बुद्धिजीवियों को पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिये क्योंकि वे इस देश में नकली आजादी,आर्थिक दिवालियेपन आदि-आदि के लिये कांग्रेस को जिम्मेदार मानते हैं। तो फिर कांग्रेस(शीला दीक्षित) की अध्यक्षता वाली अकादमी में वे कैसे काम कर सकते हैं!
साँप केंचुल बदलते हैं पर हमारे बुद्धिजीवी क्या बदलते हैं?
यह आप बता सके तो जरूर बताइए।
2 टिप्पणियां:
तुकबंदी करते हुए कहूं तो-
सांप केंचुल बदलते हैं,बुद्धिजीवी लेबल बदलते हैं...
साहित्य अकादमी में हुई ये नवनियुक्ति मीडिया में काफी सुर्खिया बटोरे रही है साहित्यकारों की अपनी तरह की राय है पर ये कहना गलत न होगा की पहले किसी को काम करने तो दे हंगामा बरपाने से हल तो मिल नहीं जायगा
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