एक राजनीतिक काम से उड़ीसा का दौरा करने का अवसर मिला। 22 की सुबह उड़ान भरकर हम भुबनेश्वर पहुँच गए थे। भुबनेश्वर से लगभग 170 कि0मी0 की दूरी पर बरहामपुर स्थित है। उड़ीसा का एक प्राचीन कस्बा।यह गंजाम जिले के अंतर्गत आता है। भुबनेश्वर से लगभग 3 घंटे की यात्रा कर हम यहाँ पहुँचे। अगले दिन अपना काम खत्म कर हम गोपालपुर गए और उसके सागर तट को देखा। वैसे तो मुंबई-गोवा समेत दक्षिण के लगभग सभी तटों को मैंने देखा है लेकिन गोपालपुर का तट वाकई निर्जन है। लहरेां की तीव्रता और अपने आगोश में लेने का उनका निमंत्रण मोहक था। मछुआरे दूर क्रैब और प्रोन की तलाश में चले जाते हैं। प्रोन खाने के लिए यह सर्वोतम जगह है। मेरे जैसा शाकाहारी व्यक्ति सिर्फ स्वाद-चर्चा में ही आनंद लेता रहा। मेरे मित्र बालन मणि ने विश्राम के लिए स्वोस्ती रिजार्ट में जुगाड़ कर लिया था। जुगाड़ इसलिए कि उनके बैच मैट मि0 मोहंती ही उस होटल के मालिक हैं।
गोपालपुर में एक पुराना पोर्ट है।मछुआरों की बस्ती । करीने से बसी हुई। डेनियल दास यहाँ के नेता हैं। कर्मठ और श्रमशील। एक खास अनुभ्व। पोर्ट की अपनी ही संस्कृति होती है।इसे पोर्ट पर आकर ही जाना जा सकता है।
इसी रास्ते में पड़ती है चिल्का। चिल्का झील का विस्तार अद्भुत है। प्रकृति की अनूठी रचना। हजारों लोगों को जीवन देने वाली चिल्का के बारे में प्रो0 एस0 सी0 पांडा बताया कि एक उडि़या कवि (जो आजादी आंदोलन में भाग के कारण गिरफ्तार हो गया था ) ने लिखा है कि ‘मुझे थोड़ी देर चिल्का के चित्रपट को निहार लेने दो, फिर तो अंधेरी कोठरी में रहना ही है’ वाकई चिल्का में यह ताकत है कि वह कष्टकारी राह को भी आसान बना दे।
इस बीच मैंने अनुपम मिश्र की पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ पढ़ी। उड़ीसा के देहात इन तालाबों पर सर्वाधिक निर्भर हैं। जीवन शैली का अधिकांश भाग इन के इर्द-गिर्द घूमता है। खास तौर पर महिलाओं और बच्चों के आनंदक्रीड़ा का केन्द्र तो यही तालाब हैं। एक ही तालाब में स्नान करती महिलाएँ ओर बच्चे फुलवारी जैसे खिल उठते हैं।उनके मवेशी घंटों उसमें तैरते रहते हैं। कमल दल इन तालाबों में प्रचुर मात्रा दिखाई देते हैं। इन तालाबों को देख चित्त प्रसन्न हो उठा। जहाँ गए नारियल पानी से स्वागत हुआ । कोल्ड ड्रिंक का सर्वोत्तम विकल्प।
गजपति बरहामपुर के साथ लगा हुआ जिला है। आधा मैदान आधा पहाड़। आदिवासी बहुल ।इसके सीमांत पर एक कस्बा है- तप्ता पानी। गंधक का एक बहता सोता। यहाँ सही अर्थों में ट्री-हाउस ‘पंथानिवास’ ने बनाए हैं।
कोरापुट,बोलंगीर और कालाहांडी ये तीन जिले अत्यंत पिछड़े हैं। कोरापुट उड़ीसा का कश्मीर कहा जा सकता है। चारों ओर हरियाली और वनस्पतियों का साम्राज्य । मनुष्य , प्रकृति के हाथ का खिलौना। सत्ता को चुनौती देते नक्सली । प्रकृति की तरह निद्वन्द्व और बेखौफ।
गरीबी और प्राकृतिक सौन्दर्य में जैसे आपसी होड़ है इस क्षेत्र में । दुनिया तेजी से बदल रही है लेकिन न तो आदिवासी बदल रहे हैं न उनकी दुनिया और तमाम आर्थिक प्रगति के बावजूद उनकी स्थिति यथावत है। आप सोचे सभ्यता के इस मानव-समूह के बारे में भी। इस पड़ाव में सारथी रहे प्रो0 कृष्ण लाल। उनका आभार।
गोपालपुर में एक पुराना पोर्ट है।मछुआरों की बस्ती । करीने से बसी हुई। डेनियल दास यहाँ के नेता हैं। कर्मठ और श्रमशील। एक खास अनुभ्व। पोर्ट की अपनी ही संस्कृति होती है।इसे पोर्ट पर आकर ही जाना जा सकता है।
इसी रास्ते में पड़ती है चिल्का। चिल्का झील का विस्तार अद्भुत है। प्रकृति की अनूठी रचना। हजारों लोगों को जीवन देने वाली चिल्का के बारे में प्रो0 एस0 सी0 पांडा बताया कि एक उडि़या कवि (जो आजादी आंदोलन में भाग के कारण गिरफ्तार हो गया था ) ने लिखा है कि ‘मुझे थोड़ी देर चिल्का के चित्रपट को निहार लेने दो, फिर तो अंधेरी कोठरी में रहना ही है’ वाकई चिल्का में यह ताकत है कि वह कष्टकारी राह को भी आसान बना दे।
इस बीच मैंने अनुपम मिश्र की पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ पढ़ी। उड़ीसा के देहात इन तालाबों पर सर्वाधिक निर्भर हैं। जीवन शैली का अधिकांश भाग इन के इर्द-गिर्द घूमता है। खास तौर पर महिलाओं और बच्चों के आनंदक्रीड़ा का केन्द्र तो यही तालाब हैं। एक ही तालाब में स्नान करती महिलाएँ ओर बच्चे फुलवारी जैसे खिल उठते हैं।उनके मवेशी घंटों उसमें तैरते रहते हैं। कमल दल इन तालाबों में प्रचुर मात्रा दिखाई देते हैं। इन तालाबों को देख चित्त प्रसन्न हो उठा। जहाँ गए नारियल पानी से स्वागत हुआ । कोल्ड ड्रिंक का सर्वोत्तम विकल्प।
गजपति बरहामपुर के साथ लगा हुआ जिला है। आधा मैदान आधा पहाड़। आदिवासी बहुल ।इसके सीमांत पर एक कस्बा है- तप्ता पानी। गंधक का एक बहता सोता। यहाँ सही अर्थों में ट्री-हाउस ‘पंथानिवास’ ने बनाए हैं।
कोरापुट,बोलंगीर और कालाहांडी ये तीन जिले अत्यंत पिछड़े हैं। कोरापुट उड़ीसा का कश्मीर कहा जा सकता है। चारों ओर हरियाली और वनस्पतियों का साम्राज्य । मनुष्य , प्रकृति के हाथ का खिलौना। सत्ता को चुनौती देते नक्सली । प्रकृति की तरह निद्वन्द्व और बेखौफ।
गरीबी और प्राकृतिक सौन्दर्य में जैसे आपसी होड़ है इस क्षेत्र में । दुनिया तेजी से बदल रही है लेकिन न तो आदिवासी बदल रहे हैं न उनकी दुनिया और तमाम आर्थिक प्रगति के बावजूद उनकी स्थिति यथावत है। आप सोचे सभ्यता के इस मानव-समूह के बारे में भी। इस पड़ाव में सारथी रहे प्रो0 कृष्ण लाल। उनका आभार।
2 टिप्पणियां:
अच्छा लगा आपको पढ़ना.
TAJA,ALAG AUR MARMSPARSHI
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