15 फ़रवरी, 2008

राम जी यादव : फिल्मा मेकर से सब्‍जी विक्रेता

राम जी यादव : फिल्‍म मेकर सब्‍जी विक्रेता
राम जी से मेरी मुलाकात लगभग 3 साल पहले हुई थी । वृत्‍तचित्र पर एक अतिथि व्‍याख्‍यान के लिए उन्‍हें कॉलेज़ बुलाया गया था । बातचीत में बड़े जीवंत दिखने वाले राम जी डाक्‍यूमेंट्री निर्माण पर लगातार सोचने-समझने में भिड़े रहते थे । देश के बहुत से सम्‍मेलनों में उनकी भागीदारी होती थी। मेरी और प्रदीप जी की बातचीत से उन्‍हे खयाल आया कि क्‍यों न भीमराव अंबेडकर कॉलेज पर एक डाक्‍यूमेंट्री बनायी जाय । तत्‍कालीन प्राचार्य डा0 राजबीर सोलंकी ने एक कमेटी बना दी और फिल्‍म निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गयी । बाद में डा0 प्रेमचंद पातंजलि ने बड़े मनोयोग से उसमें वांछित परिवर्तन करवाए और फिल्‍म अंतिम रुप में आ गयी । राम जी के काम को सराहना मिली और हमें राहत कि कॉलेज के परिदृश्‍य को उभारने वाला एक दस्‍ताबेज तैयार हो गया ।
फिल्‍म निर्माण एक खर्चीला शौक है । राम जी का कुछ पैसा कॉलेज पर बकाया रह गया था । उसे निकालने के लिए वे लगातार चक्‍कर काटते रहे । लेकिन जहॉ तक मुझे याद आता है उनकी बकाया रकम उन्‍हें कभी नहीं मिली । धीरे-धीरे हमारी उनकी मुलाकात बहुत कम हो गयी और उनके खुद को स्‍थापित करने की चर्चा जरूर होती रही । आखिर प्रखर वक्‍ता और डाक्‍यूमेंट्री मेकर राम जी आज कल कहॉ हैं। ताजा़ खबर मिली है कि वे रोहिणी में सब्‍जी बेंच रहे हैं और सबसे बड़ी बात है कि सुखी हैं।
मेरे एक अन्‍य मित्र संजय जोशी फिल्‍मों के दीवाने हैं। फिल्‍म बनाने के साथ ही उस पर टीका-टिप्‍पणी करने में दक्ष हैं । हर वर्ष देश के किसी न किसी भाग में घूमकर फिल्‍म संस्‍कृति की अलख जगाते हैं । आजकल उनका अड्डा गोरखपुर है। आम लोगों के चंदे से गोरखपुर फिल्‍म फेस्‍टीवल आयोजित होता है और हर तरह से सफल भी । एक कॉलेज से उन्‍हें भी बकाया रकम नहीं मिली ।
दिल्‍ली के महाविद्यालयों में धन की कमी नहीं है लेकिन व्‍यवस्‍था ऐसी जटिल है कि आप आप फॅसे तो फॅसे । भाई संजय जोशी को भी अपनी राह बनानी होगी । शिक्षा और कलाऍ दुकानदारी में तब्‍दील होती जा रहीं हैं, ऐसे में हमें संजीदा होने के साथ –साथ समझदार भी होना पड़ेगा।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Dear Mr.Diwedi,

This is for your esteemed information and reconcilliation, that sabji bechate हुए ramji Yadav Ji, raidas और कबीर की परम्परा का hissa ho गए हैं. आज के लूट tantra मैं अपनी izzat bachana सबसे mushkil काम है. यदि सच कहकर जीना chahate hain तोः mehnat करने से नहीं कतराना चाहिए. yahi vah taquat hai jo aapko jhukne aur tootne se bacha sakati hai. anyatha jhoothe logon ki zamat ka ang ban Jaiye. Bhartiya arthvyavastha ka seedha tatparya hai _ karnewala aaath pae karanewala barah baithe baithe jhant ukhade vo pae attharah . is soch aur sanskriti ko ukhad fenkne ke lie sarvhara kranti ki zaroorat hai. ramji hi nahin poore desh ka pratibhashali aadami sabji bech sakta hai yadi use lagega ki yah bhi samman se jeene aur apane lakshya tak pahoonchane ka rasta hai.

With very warm wishes and bestest regards,

बेगम आबिदा अहमद - न्यू यार्क