बिल्लेसुर अवधिया
(जापानी लोककथा वाराशिबे चोजा पर आधारित नाटक)
तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज के हिन्दी (द्वितीय
वर्ष) के छात्रों की प्रस्तुति
: पात्र :
सलीम: यूता कुराहाता
अनारकली:कुमिको यामागुचि
बिल्लेसुर:मारियो कोयामा
लतिका:कुमिको यामागुचि
माँ लक्ष्मी:कोतो इवाई
जमींदार:शुइचि तानि
धनवान पिता:
उसकी बेटी: ममी किमुरा
बुढि़या: र् योतारो मात्सुओका
योद्धा 2: शोगो इशितोबिख, यूकि त्सुचिया
साहूकार: बबा तकुया
उसकी पत्नी: नमिको यामाशिरो
घोड़ा: हिरोकी अबे आदि
नाट्य –सामग्री
तलवार, चाबुक, धागा, संतरे, लक्ष्मी जी का चित्र, धागा, रेशम का कपड़ा, पूजा की सामग्री, दीपक, पानी का वर्तन, मक्खी का खिलौना, घोड़े का मुखौटा आदि
मार्गदर्शन
प्रो0 ताकेशी फुजिइ
प्रो0 योशिफुमि मिज़ुनो
परामर्श
श्रीमती शिराइ जी
विशेष सहयोग
हुयुको इशिजावा
सतो यूता
लेखन व निर्देशन
राम प्रकाश द्विवेदी
अंक 1
दृश्य 1
(मंच पर हल्की रोशनी ।
सलीम हुक्का पीते हुए उदास बैठा है। रोशनी धीरे-धीरे तेज होती है। सलीम चहल-कदमी
करते हुए अनारकली को आवाज देता है।)
सलीम: अनारकली अनारकली कहाँ हो
(इंतजार करता है और फिर
आवाज देता है)
सलीम: अनारकली अनारकली कहाँ हो, कहाँ चली गईं तुम
(मंच पर सतो का ठहाका लगाते
हुए प्रवेश)
सतो: अरे सलीम मियां किसे आवाज दे रहे हो
सलीम: अपनी अनारकली को सतो भाई, सुबह से ही न जाने कहाँ
चली गई है
सतो:(जोर का ठहाका लगाते हुए) जानना चाहते हो कहाँ चली है तुम्हारी अनारकली
सलीम: (आश्चर्य से) हाँ हाँ बताओ, तुम्हे पता है क्या
सतो: (व्यंग्य के स्वर में) पता तो जरूर है देखना
चाहते हो अपनी अनारकली को
सलीम: हाँ सतो भाई दिखाओ न मेरी अनारकली को
सतो: तो देखो वो रही तुम्हारी अनारकली
(मंच पर अनारकली का अपने साथियों
के साथ प्रवेश, सतो और सलीम एक कोने से यह कारवाँ देखते हुए )
(गीत और नृत्य)
(सतो और सलीम पुन:
मंच के बीच में आ जाते है। सलीम अब थोड़ा लड़खड़ाता है जैसे उसका दिल टूट गया हो)
सतो: तो सलीम भाई देख लिया
सलीम: हाँ कमबख्त ये दिन भी देखना था
सतो: कोई बात नहीं सलीम मियां आपके टूट दिल को बहलाने के लिए एक
कहानी सुनाता हूँ
सलीम: यही ठीक रहेगा
सतो: तो सुनो
दृश्य 2
(मंच पर अंधेरा और धीरे-धीरे
सतो के कथन के साथ-साथ नए दृश्य का उदय ) (पृष्ठभूमि में सतो की आवाज-‘’भारत तब भी गाँवों का देश था। लोग गरीब तो थे पर उनकी आँखों में अदभुत सपने
जिंदा रहते थे। ऐसे ही अपने सपनों में जीने वाला एक ग्रामीण युवक था बिल्लेसुर।
यह उसी की कहानी है। एक दिन बिल्लेसुर बड़ा उदास था।‘’)
( दृश्य , बिल्लेसुर अपने आप से बात करता हुआ,)
बिल्लेसुर: (आत्मगत) मैं कब तक दूसरों
के सहारे अपनी जिंदगी बिताता रहूँगा । मुझे कुछ काम करना चाहिए ।
(मंच के दूसरे कोने से
लतिका धीरे-धीरे आती हुई)
लतिका: हाँ बिल्लेसुर, यदि
तुम मुझसे प्यार करते हो तो तुम्हे कुछ तो कमाना ही पड़ेगा।
बिल्लेसुर: हाँ ठीक कहती हो लतिका प्यार के लिए पैसा भी तो चाहिए ही चलता
हूँ गाँव की ओर किसी के खेत पर काम करूँगा और सम्मान की जिंदगी जिउँगा।
(एक लोकगीत गुनगुनाते हुए
निकल पड़ता है )
दृश्य 3
(गाँव का दृश्य , एक जमींदार अपने खेत को देखते हुए, खेत के किनारे एक
झोपड़ी भी है)
जमींदार: काश कोई मजदूर मिलता तो मैं और अच्छी खेती कर पाता
(लोकगीत गाते बिल्लेसुर का
प्रवेश, जमींदार को देखकर प्रार्थना के स्वर में)
बिल्लेसुर: मालिक कोई काम मिलेगा क्या
जमींदार: (प्रसन्न होते हुए) काम चाहते हो
बिल्लेसुर: जी मालिक
जमींदार: तो देखो मेरे खेतों में काम करना पड़ेगा और मैं तुम्हें
ज्यादा पैसे तो नही दूँगा पर तुम्हारी जिंदगी ठीक ठाक चल जाएगी
बिल्लेसुर: जी मंजूर है और मैं यहीं इस झोपड़ी में रह लूंगा
जमींदार: तो चलो लग जाओ काम पर मैं शाम को आउंगा।
(जमींदार जाता है, बिल्लेसुर कपडे उतारकर खेत के काम में जुट जाता है)
बिल्लेसुर: (आत्मगत ) हे माँ लक्ष्मी । मैं तुम्हारा बड़ा आभारी हूँ। तुम्हारी
कृपा से मुझे यह काम मिला।
माँ मुझे अपनी शरण में ले ले, मेरा जीवन सुखी कर दे
(काम करने के बाद अंगड़ाई लेता हुआ)
बिल्लेसुर: (आत्मगत ) थक गया हूँ। थोड़ा सो लेता हूँ।
(बिल्लेसुर की झपकी का दृश्य, बिल्लेसुर सपना
देखता हुआ, लक्ष्मी देवी का प्रकट होना )
देवी लक्ष्मी: ओ मेरे पुत्र बिल्लेसुर चिंता
मत कर। तू मेरा सच्चा भक्त है। कल से ही तेरे जीवन में बदलाव आने लगेगा। जा कल
जो भी चीज तेरे हाथ आए उसे ही अपना सौभाग्य मान उसके साथ आगे चलते जाना।
बिल्लेसुर: (नींद से जागते हुए) आह कैसा सपना था। काम पर लगता हूँ, मालिक आते ही होंगे।
जमींदार: (दूर से आते
हुए) कैसे हो बिल्लेसुर।
बिल्लेसुर: जी मालिक ठीक
हॅूं
जमींदार: आज तो तुम्हें
शहर जाना होगा और मंडी की खबर लानी होगी
बिल्लेसुर: तो मैं जाता
हूँ
अंक 2
दृश्य 1
(मंच पर अंधेरा, गाँव के रास्ते
का दृश्य, मंच पर रोशनी )
बिल्लेसुर: (लोकगीत गाता
हुआ) चलो बिल्लेसुर मीठा सपना खत्म, शहर चलो मंडी की खबर लाओ। (चलता है)
(अचानक एक धागा उड़ता
हुआ आता है, विस्मय से धागे को देखकर)
बिल्लेसुर: अरे यह धागा
कैसा है। कहीं लक्ष्मी माँ की प्रेरणा से तो कुछ नहीं। चलो पकड़ ही लेता हूँ।
(धागा पकड़ता है और
प्रसन्नता प्रकट करता है, आगे चलते हुए)
बिल्लेसुर: चलो कुछ तो
हाथ आया
(एक मक्खी/ग्रासहॉपर
का आ जाना और बिल्लेसुर के आसपास जोर से मडराना)
बिल्लेसुर: (मक्खी
को भगाते हुए) चलो जाओ, जाओ यहाँ से(मक्खी का और जोर से मंडराना) कोई बात
नहीं मैं तुम्हें इस धागे से ही बांध लेता हूँ (मक्खी को पकड़ता है और धागे
से बाँध लेता है वह उड़ने की कोशिश करती है पर उड़़ नहीं पाती और इससे एक
खिलौना-सा बन जाता है, इसे देखकर बिल्लेसुर खुश हो जाता है,गाना
गुनगुनाता है और आगे चल देता है) अरे फिरकी वाली तू कल फिर आना नहीं फिर
जाना तू अपनी जुबान से तेरे नैना, नैना हो नैना नैना हैं बड़े बईमान से-------------
दृश्य 2
(रास्ते में एक धनवान
की पालकी जिसमें उसकी बेटी बेठी है)
बेटी : (बिल्लेसुर
के खिलौने को देखकर ) पिताजी मुझे खिलौना चाहिए।
पिता: (डांटते हुए )अरे चुपकर
बेटी: (और जोर
से रोते हुए) नहीं मुझे चाहिए, मुझे चाहिए बस
पिता: (थोड़ा
शांत होकर बिल्लेसुर को देखते हुए ) अरे भाई यह खिलौना बेचोगे क्या
बिल्लेसुर: (अपने से
बात करते हुए) अरे इससे तो अच्छे पैसे ऐंठे जा सकते हैं, मालदार भी
है। (फिर धन वान पिता की ओर मुखातिब होते हुए) बोलो कितने पैसे दोगे
पिता: जितने तुम
चाहो मैं देने को तैयार हूँ।
बिल्लेसुर: ( अचानक भाव
बदलकर आत्मगत) किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाना चाहिए। (धनवान पिता
से) जो चाहो वो दे दो
पिता: तो मेरे पास
ये तीन संतरें हैं इन्हें ले लो
बिल्लेसुर: (संतरे लेकर
खिलौना देते हुए ) ठीक है
(आगे चलते हुए) ओ माँ लक्ष्मी
मैं तेरा आभारी हूं। न जाने क्या लिखा है मेरी किस्मत में
(बाहर जाता है)
दृश्य 3
(एक जंगल, सुनसान और वीरान, रास्ते में एक बूढ़ी
औरत प्यास से तड़पती हुई)
बूढ़ी: अरे कोई पानी
पिला दो (दुहराती है)
(बिल्लेसुर आता हुआ)
बिल्लेसुर: क्या हुआ
माता जी इतनी बेचैन क्यों हो
बूढ़ी: बेटा बड़ी प्यास
लगी है। पानी पिला दे, ला दे कहीं से पानी बेटा
बिल्लेसुर: माता जी मेरे
पास पानी तो नहीं ये तीन संतरे हैं आप इनसे अपनी प्यास बुझा लीजिए
बूढ़ी: (संतरों को
लालच से देखते हुए) दे बेटा जल्दी दे
(बूढ़ी संतरों को जल्दी-जल्दी
चूसती हुई, बिल्लेसुर प्रसन्नता से निहारता हुआ)
बूढ़ी: तेरा लाख लाख
शुक्रिया बेटा, सदा सुखी रहो अब मेरी जान में जान आयी
बूढ़ी: (मुँह पोंछती
हुई) ले बेटा मेरे पास ये रेशम के कपड़े का थान है तू रख ले
बिल्लेसुर: (संकोच से) नहीं माता जी
मैं यह तो बिल्कुल नहीं लूँगा
बूढ़ी: नहीं लेना
पड़ेगा
बिल्लेसुर: न बिल्कुल
नहीं
बूढ़ी: तुझे मेरी कसम, अब मना मत
करियो
बिल्लेसुर: अरे माता जी
जब आप इतनी जिद कर रही हैं तो मै ले लेता हूँ
(कपड़ा ले लेता है और
गुनगुनाते हुए आगे चल देता है )
बिल्लेसुर: दुनिया दो दिन का मेला। सब चला चली का खेला। हो भाई सब चला चली का खेला
अंक 3
दृश्य 1
(गाँव के किनारे जंगल का एक दृश्य, दो योद्धा अपने घेाड़े को चाबुक से पीटते हुए)
योद्धा1 : खाएगा सेर भर
और चलेगा चींटी की चाल
(घोड़े को और भी पीटता
है और अपने साथी से कहता है )
योद्धा1 : देखो तो इसे ज़रा
भी हिल नहीं रहा।
योद्धा2 : कहाँ की
मुसीबत गले आ पड़ी, रूक ये चाबुक से नहीं मानेगा पेड़ से एक डंडा तोड़ता हूँ
(डंडा तोड़ने के लिए
पेड़ के पास जाता है, तोड़ नहीं पाता और फिर चाबुक से ही पीटना शुरू कर देता है, उधर से
बिल्लेसुर गीत गाता हुआ आता है )
बिल्लेसुर : (यह दृश्य
देखते हुए आहत भाव से) अरे भाई बेचारे बेजुबान को काहे पीटे जा रहे हो
योद्धा1 : (खीझते
हुए ) तुझे क्या मेरा घोड़ा मैं ही मारूँ (फिर पीटता है)
बिल्लेसुर: अरे भाई
थोड़ी दया तो दिखाओ
योद्धा2 : (गुस्से
से आग बबूला होकर) जाता है या तेरी भी
धुनाई शुरू करूँ
बिल्लेसुर: ओ योद्धाओं
अगर एैसा ही तो पहले मुझसे लड़ो और अगर जीत गए तो ठीक नहीं तो इस रेशम के कपड़े के
बदले घोड़ा मेरा।
दोनों योद्धा एक स्वर
में: (ललकारते हुए) तो सावधान
(तलवारें
निकलती हैं और दोनों तरफ से युद्ध होता है, युद्ध में
दोनेां योद्धा बिल्लेसुर से पराजित हो जाते हैं )
योद्धा1 : (आश्चर्य से) सुनो भाई यह
घोड़ा तुम्हारा हुआ।
योद्धा2 : यह घोड़ा अब
आपका।
बिल्लेसुर: लो ये रेशम
का कपड़ा है इसे ले लो और घोड़ा मेरे हवाले करो समझे
दोनो योद्धा : (खिसियाने
से, आत्मगत) इस मरयिल घोड़े के बदले जो मिल जाय वही
अच्छा है और इसका रेशमी कपड़ा तो बेहतरीन है। (बिल्लेसुर को देखते हुए)
चलो ठीक है अब यह घोड़ा तुम्हारा हुआ
( बिल्लेसुर रेशम का
कपड़ा उसे देता है, योद्धा खुशी से आगे निकल जाता है, बिल्लेसुर
घोड़े को पुचकारता है)
बिल्लेसुर: (घोड़े पर हाथ
फेरते हुए) अब सब ठीक हो जाएगा, मैं कहीं से
पानी लाता हूँ
(पास में ही उसे पानी
मिल जाता है)
बिल्लेसुर: (पुचकारते हुए) लो पानी पी लो
(घोड़ा पानी पीता है
और हिनहिनाकर उठ खड़ा होता है)
(बिल्लेसुर खुशी से
उसके ऊपर सवार हो जाता है, घोड़ा सरपट दौड़ने लगता है )
बिल्लेसुर: (गीत गाता
है) अबके बरस तुझको अपने सपनों की रानी बना लेंगे, बना लेंगे।
(आत्मगत) पर बनाओगे
कहाँ से न खाने के लिए कुछ है न ही पास में फूटी कौड़ी बस घोड़े की सवारी से तो
काम नहीं चलेगा (बाहर चला जाता है)
दृश्य 2
( गाँव का एक दृश्य, साहूकार का घर
जो कि बड़ा समृद्ध है, घर के अंदर खाने-पीने की तमाम चीजें रखी हैं, एक साहूकार परेशानी में बोलता हुआ)
साहूकार: न जाने कहाँ
चला गया चरते-चरते
(मंच पर बिल्लेसुर
अपने घोड़े के साथ आता हुआ)
साहूकार: (बिल्लेसुर
की ओर देखता हुआ) अरे भाई मेरी आपसे एक विनती है
बिल्लेसुर: हाँ हाँ
बताइए
साहूकार: यह घोड़ा कुछ
दिनों के लिए मुझे दे दो। आज मेरे रिश्ते में एक शादी है। मेरा घोड़ा न जाने कहाँ
चला गया है। मेरा वहाँ जाना बहुत जरूरी है। अभी मेरे पास तुम्हे देने के लिए पैसे
तो नहीं है पर यह सामने मेरा घर है चाहो तो इसमें रह लो खाने-पीने की सब चीजें
भरपूर हैं
बिल्लेसुर : (मन ही मन
माँ लक्ष्मी का धन्यवाद करते हुए) चलो ठीक है जैसी प्रभु की इच्छा
( बिल्लेसुर साहूकार
को घेाड़ा सौंपता है, साहूकार अपनी पत्नी के साथ घोड़े पर सवार हो कर बाहर चला जाता है)
बिल्लेसुर: (घर के अंदर
पहुँचकर) अरे क्या आलीशान घर है।
(कई चीजें खाता है, फिर पानी
पीता है, डकार लेते हुए)
बिल्लेसुर: हे माँ लक्ष्मी
ये सब तुम्हारी ही कृपा है
(घर के बाहर साहूकार
का घोड़ा वापस लौट आता है, घोड़ा हिनहिनाता है )
बिल्लेसुर: तो तुम लौट
आए
(घोड़ा फिर हिनहिनाता
है )
(बिल्लेसुर घोड़े की
खूब सेवा करता है और उसे चारा डालकर घर के अंदर जाता है)
(घर को देखते हुए)
बिल्लेसुर : क्यों न घर
साफ कर दूँ और माँ लक्ष्मी की पूजा करूँ बहुत दिन हुए इस मायाजाल में पूजा भी
नहीं कर पाया
(घर की सफाई दो तीन
दिन तक करता है और फिर चौथे दिन लक्ष्मी की पूजा करता है)
(पूजा के बाद, साहूकार का
आगमन, घर को देखकर पति-पत्नी अत्यंत प्रसन्न होते हैं)
साहूकार पत्नी : (पति से
कम आवाज में) ए जी सुनते हो
साहूकार: हाँ बोलो न
साहूकार पत्नी: लड़का तो
शरीफ लगता है क्यों न इसे अपने पास रख लें आखिर हमारे कोई संतान भी नहीं और इस
बुढ़ापे में हमें कोई सहारा भी तो चाहिए।
साहूकार: हाँ तुम ठीक
कहती हो, मै बात करके देखता हूँ
साहूकार: (बिल्लेसुर से) अरे बेटा एक
बात पूछू पर संकोच भी हो रहा है
बिल्लेसुर: नहीं कहिए
साहूकार: अगर बुरा न
मानों तो तुम यहीं रह जाओ हमारे साथ हमारे बेटे की तरह
बिल्लेसुर: (सोचते हुए
और माँ लक्ष्मी के वरदान को याद करते हुए) जी जैसा आप चाहें
साहूकार: अजी सुनती हो
माँ लक्ष्मी की कृपा से आज हमें बेटा मिल गया
साहूकार पत्नी: (बिल्लेसुर
को गले लगाती हुई) तो बेटा अब तुम इसे अपना ही घर समझो
बिल्लेसुर : जी माता जी
(सब एक दूसरे के गले
मिलते हैं, तभी बिल्लेसुर की जेब से लतिका फोटो गिरता है और उसको
लतिका की याद आ जाती है , बिल्लेसुर चौंकते हुए)
बिल्लेसुर: पर मेरी एक
शर्त है
साहूकार और साहूकार
पत्नी: (एक साथ) क्या बेटा
बिल्लेसुर: मेरी एक
मित्र गाँव में रहती है मैंने उससे वादा किया था कि मैं उससे शादी करूंगा।
साहूकार और साहूकार
पत्नी: (एक साथ)
अरे यह तो और भी खुशी की बात है हमें बेटे के साथ-साथ बहू भी मिल जाएगी । चलो बेटा
परसों दिवाली है वह बेचारी बहुत दिनों से तुम्हारा इंतजार कर रही होगी उसे जल्द
से ब्याह कर लाते हैं ।
(सब चल देते हैं)
दृश्य 3
( बिल्लेसुर के गांव
का दृश्य , लतिका उदास बैठी है , तभी हलचल
सुनाई देती है )
लतिका: (बिल्लेसुर
को देखते हुए दौड़ती है और गले लग जाती है) कहाँ थे इतने दिन
बिल्लेसुर: बस अब सब ठीक
हो गया है मुझे मेरे माता-पिता भी मिल गए हैं
लतिका: सच
(साहूकार और पत्नी की ओर देखती है और उनके पैर छूती है)
साहूकार और पत्नी: बेटी हम तुझे
ब्याहने आए हैं
(लतिका, बिल्लेुसर
और साहूकार और पत्नी सब एक दूसरे के गले मिलते है)
साहूकार और पत्नी: चलो शादी की
तैयारी करो
(मंच पर अंधेरा, शादी और
दीपावली के उत्सव की तैयारी और शुरूआत )
(उत्सव
नृत्य)
(पर्दा गिरता है)
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