तुम
कब तक सोती रहोगी
निस्पंद अपनी कब्रगाह में
देखो
बहुत दिनों बाद
जमुना पुकारती हुई चली आयी है
तुम्हारे कदमों के इतने करीब
ताज़
तुम्हारे सपनों का घर
आदमकद
उतर आया है
बहते पानी में
झिलमिलाता
जैसे
कभी-कभी तुम उदास होती थीं
तुम्हारी आँखों के कोटर
आँसुओं से भर उठते थे लबालब
और सदियों की वेदना के बिंब
झिलमिला उठते थे
उन नन्हीं मासूम
अश्रु बूँदों में।
जमुना बाँहें पसार
अपनी उत्ताल
भूंवर खाती लहरों के साथ
बहुत दिनों बाद
आयी है तुमसे मिलने
और तुम हो कि
तनिक भी जुंबिश नहीं लेती
ऐसे भी कोई सोता है
निरपेक्ष
अनादर-सा करता हुआ
अपने आगंतुक मेहनान का।
तुम इस तरह क्यों रूठी हो
कभी तुम्हारी निगाहें न थकती थीं
जमुना को निहारते हुए
मुझसे भी ज्यादा मुखातिब रहती थीं तुम उससे
फिर आज
ऐसी भी क्या नाराजगी
अपनी उसी चिरपरिचित सखी से।
माना
मेरी किसी गुस्ताखी से
गुस्सा हो तुम चल पड़ी थीं ज़न्नत की राह
पर
अब तो उठ जाओ
जमुनाकी टेर पर।
मैं भी थका-सा हो चला हूँ
मनुहार की
ऊर्जा अधिक नहीं है मेरे पास
अब मान भी जाओ
आसमान में नीरव निर्विकार ताकते
शाहजहाँ
की आँखों में
एक बूँद आ गिरी
और
बादशाह की पुतलियाँ बंद हो गयीं
अचानक।
मनुहार का स्वर थम गया
शाहजहाँ खामोश हो गया
बारिश में तरबतर।
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